दक्षिण भारत में जनसंख्या बढ़ाने पर जोर…

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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एक तरफ जहाँ राष्ट्रीय स्तर देश की बढती हुई जन संख्या को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाये जाने की मांग हो रही है, वहीँ दक्षिण के दो राज्यों तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश– ऐसे है जो जनसंख्या बढ़ाये जाने की वकालत कर रहे हैं। दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ दल के नेता जनसँख्या बढाए जाने के लिए अपने-अपने कारण बता रहे हैं। इसके लिए तर्क भी दे रहे है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने तो यह तक कहा है कि राज्य की आबादी को बढाने को प्रोत्साहन देने के लिए उनकी सरकार जल्दी ही एक कानून लायेगी।
यह सब तब हो रहा है जब कुछ राज्यों में ऐसे कानून हैं जिनके अनुसार अगर किसी के दो से अधिक बच्चे है तो वह पंचायत और शहरी निकायों के चुनाव नहीं लड़ सकते। कुछ राज्यों ऐसा भी प्रावधान है कि जिस सरकारी कर्मचारी के यहाँ अगर तीसरा बच्चा होता हैं तो उसे तरक्की से वंचित किया जा सकता है या हर साल होने वाली वेतन वृद्धि रोकी जा सकती है।
जनसंख्या बढाने के यह बहस शुरू करने वाले चंद्रबाबू नायडू का कहना है कि कम बच्चे पैदा करने की वजह से राज्य में जनसंख्या का सारा संतुलन ही बिगड़ रहा है। वृद्धों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है वहीं युवकों की संख्या लगातार कम हो रही है। अगर वृद्धों की आबादी बढ़ने का क्रम यही रहा तो वर्ष 2047 में प्रदेश में युवकों की तुलना में बुजुर्गो की संख्या अधिक हो जायेगी। उनके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार आंध्र प्रदेश में ग्रामीण इलाकों में अब वृद्ध ही वृद्ध नजर आते है। ऐसे बुजुर्गों के बच्चे या तो शहरों में चले गए या फिर विदेशों में जा बस गए है। ऐसे बुजुर्गों की देख भाल करने वाला उनके पास कोई नहीं है। इन सब ने अपनी जवानी में कम बच्चे पैदा करने की सलाह मानते हुए या तो दो या फिर केवल एक ही बच्चा किया ताकि उसकी अच्छी परवरिश होआ सके। अच्छी पढाई हो सके और उसे अच्छी नौकरी मिल सके। उन्होंने आंकडे देकर बताया कि आंध्र प्रदेश में बच्चे पैदा करने का प्रतिशत अन्य राज्यों की तुलना में काफी कम है। जहाँ राष्ट्रीय स्तर पर बच्चे पैदा करने की दर 2.1प्रतिशत है वहां राज्य में यह दर 1.6 प्रतिशत है।
नायडू ने यह साफ तौर पर कहा कि उनकी सरकार इस स्थिति को अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकती। इस दिशा में पहले कदम के तौर पर उनकी सरकार पुराने कानून, जिसके अंतर्गत केवल दो ही बच्चे रखना जरूरी है, के स्थान पर नया कानून लायेगी। नए क़ानून के अनुसार अब पंचायत राज संस्थायों और शहरी निकायों का चुनाव वही लोग लड़ सकेंगे जिनके दो से अधिक बच्चे होंगे।
अब चलते है तमिलनाडु की ओर यहाँ के मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ दल द्रमुक के सुप्रीमो एम के स्टालिन पिछले कुछ समय से 2026 में लोकसभा की सीटों का नया परिसीमन करने का विरोध कर रहे है। उनका कहना है तमिलनाडु में जनसंख्या बढ़ने की दर उत्तर भारत के राज्यों से बहुत कम है। चूँकि परिसीमन का एक आधार जनसंख्या भी है इसलिए इस बात की संभावना है कि परिसीमन के बाद तमिलनाडु में लोकसभा की सीटें वर्तमान सीटों से घटकर कुछ कम हो सकती है। इसके चलते राष्ट्रीय स्तर पर तमिलनाडु की भूमिका भी काम हो जायेगी।
नायडू द्वारा राज्य की आबादी बढाई जाने के प्रस्ताव के अगले दिन ही स्टालिन ने सरकार के हिन्दू धर्म विभाग से संबधित एक समारोह में खुलकर राज्य की आबादी बढाये जाने पर जोर दिया। इस समारोह में 31 हिन्दू जोड़ों की शादी थी। उन्होंने कई हिन्दू ग्रथों का हवाला देते हुए कहा कि पुरातन काल में हिन्दू नव विवाहित जोड़ों को यह आशीर्वाद दियां जाता था कि उनके यहाँ 16 संतानें हों। स्टालिन ने नव विवाहित जोड़ों को यह सलाह दी कि वे भी पुरातन परम्परा की इस सोच को आगे बढ़ाते हुए 16 -16 संताने पैदा करें
दक्षिण के इन दोनों राज्यों के सरकारों के मुख्यमंत्रियों की इस सलाह के बाद संतानों की संख्यां को लेकर के नई बहस छिड़ गई है जो लम्बी चलेगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत अपने भाषणों में अक्सर कहते रहते है इस भारत में हिन्दू आबादी लगातार कम हो रही है जबकि मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ रही है। वे इसे एक चिंता का विषय बताते है। वे परोक्ष रूप से कहना चाहते हैं कि हिंदुओं को भी अधिक संतानें पैदा करनी चाहिये। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

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