भाग्यशाली मैं….

व्यंग लेख

लेखक : अतुल मलिकराम
लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार
www.daylifenews.in
आज कल जीवन जीने का ढंग किसी राजा महाराजा जैसा हो गया है। जब से स्मार्ट फ़ोन लिया है एक अलग ही अनुभूति होती है। सुबह उठते ही ना जाने कितने गुड मॉर्निंग और सुप्रभात के मैसेज राह देखते हैं, जैसे मेरी प्रभात के शुभ हुए बिना तो मेरे मित्रों का दिन नहीं निकलेगा। इतनी इज्जत पाकर जो अनुभूति होती है उसकी बात ही अलग है। फिर यह दौर सारा दिन चलता है। कभी कोई देवी-देवताओं के दर्शन का लाभ देता है तो कोई प्रवचन और उपदेश देता है, तो कोई फ्रॉड से बचने के तरीके बताता है। इन सभी मैसेजों को पाकर विचार आता है किहर किसी को कितनी चिंता है मेरी और फिर अपने-आप को भाग्यशाली मानने का मन करता है।
बात सिर्फ यहीं ख़त्म नहीं होती इसके अलावा वाट्सऐपयूनिवर्सिटी में सारा दिन ज्ञान मुफ्त में बंटता रहता है। यहाँ ज्ञानी लोग इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, नैतिक शिक्षा, दर्शनशास्त्र और न जाने कितने सुने-अनसुने विषयों पर व्याख्यान देते रहते हैं। लेकिन मेरे शुभचिंतक भी इतने ईमानदार हैं कि वे कोई भी ज्ञान अपने तक सीमित नहीं रखते हैं। वे याद से मेरे साथ ये सारा ज्ञान बांटते हैं ताकि इस ज्ञान से मैं वंचित ना रह जाऊं। अब बताइए इस बात पर स्वयं को किस्मतवाला मानूं या नहीं…..।
सौ साल जीने के नुस्खे से लेकर खाने-पीने के तरीकों तक, सारा दिन मुझे इन सब का ज्ञान तो दिया ही जाता है।फिर रात में भी जब तक मेरे हितैषी मुझे शुभरात्रि कहकर, मेरी रात्रि शुभ होगी यह सुनिश्चित नहीं कर लेते हैं वे सोते नहीं हैं। इस पर महाराजाओं जैसा अनुभव ना हो तो और क्या होगा…..। आप ही बताइए। यह तो बात हुई रोजमर्रा कीलेकिनत्यौहारों और जन्मदिन पर तो जैसे शुभकामनाओं की झड़ी सी लग जाती है। हर कोई मेरे सौ साल जीने की कामना करता है।इनमें कुछ जाननेवाले तो ऐसे भी होते हैं, जिन्होंने पूरे साल भले ही कई बार मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ाया हो लेकिन वे भी लम्बी उम्र की कामना करते दिखाई देते हैं।
इतना परोपकार देखकर एक बार मेरे मन में भी ऐसा ही विचार आया कि जो ज्ञान मुझे बांटा जा रहा है। उसे अपने तक रखना तो कोई बात नहीं होती। इस ज्ञान को आगे बढ़ाना चाहिए। इस बीच किसी ग्रुप में मैसेज आया कि नए साल में दुर्लभ संयोग बनने वाला है। ऐसा अद्भुत साल न पहले कभी आया था, न भविष्य में कभी आएगा। बस फिर क्या था, दूसरों पर अपनी विद्वत्ता का रुआब झाड़ने के लिए मैंने भी तुरंत दस-बीस ग्रुपों में उसे फॉरवर्ड कर दिया। फिर ख्याल आया कि मैं अपने ज्ञान की धाक जमाने के साथ कितने लोगों को इस दुर्लभता का ज्ञान देने का महती कार्य कर रहा हूं। फॉर्वर्डेड मैसेज को फॉर्वर्ड करके कितनी संतुष्टि और गर्व का अहसास होता है, इसे कोई मैसेज फॉर्वर्ड करने वाला ही समझ सकता है। उस दिन समझ में आया कि मेरे मित्रगण जो मुझे मैसेज फॉर्वर्ड करते हैं। उनकी मनोदशा क्या रहती होगी।
खैर, ऐसा परोपकारी काम कितनी तेजी से फैलता है इसका अनुभव भी तुरंत ही हो गया। कुछ घंटों में ही वही मैसेज फिर मेरे मोबाइल में फॉर्वर्ड होकर आ गया। यहाँ यह जानकारी पहले से पता होने पर मैं गर्व कर ही रहा था किकुछ ही देर बाद ही मेरी होशियारी का यह भ्रम तोड़ते हुए, मेरे एक मित्र ने कहा, कि हर साल नया साल ही आता है जो न पहले कभी आया था, न आगे कभी आएगा। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है और प्रतिवर्ष घटित होती है।उसके यह कहने पर मैने भी थोड़ा दिमाग लगाया और सोचा कि बात तो सही है।इस पर अपनी समझदारी पर मुझे ही शर्मिंदगी सी हुई कि मैसेज भेजने से पहले उस पर कम से कम विचार तो करना था। लेकिनमैसेज फॉर्वर्ड करने की हमें इतनी जल्दी होती है कि हम उस पर एक बार विचार तक नहीं करते हैं। तब से मैंने निश्चय किया कि वाट्सऐप यूनिवर्सिटी का ज्ञान और भाग्यशाली होने का यह भान अब अपने तक ही रखूँगा… (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *