विधानसभा उपचुनाव : दक्षिण में कांग्रेस का दबदबा

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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पिछले हफ्ते देश में महाराष्ट्र और झारखण्ड में विधानसभा के चुनावों के साथ-साथ 15 राज्यों में दो लोकसभा उपचुनाव तथा 46 विधानसभा उपचुनाव हुए। इन उप चुनावों में उत्तर के राज्यों में तो बीजेपी का दबदबा रहा लेकिन दक्षिण में कांग्रेस पार्टी अपना दबदबा कायम रखने में सफल रही।
कर्नाटक में तीन विधान सभा उप चुनाव हुए थे। ये तीनों के तीनों उप चुनाव कांग्रेस जीतने में सफल रही। इसमें से लोकसभा चुनावों से पहले केवल एक सीट ही कांग्रेस के पास थी जबकि अन्य दो सीटें बीजेपी और जनता दल (एस) के गठबंधन की थी।
केरल में एक लोकसभा उपचुनाव वायनाड में हुआ। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पांच महीने पहले हुए लोकसभा में रायबरेली और वायनाड दोनों चुनाव क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। वे दोनों स्थानों से जीत गए थे। बाद में उन्होंने वायनाड सीट खाली कर दी थी। उसी समय यह संकेत मिलने लगे थे कि पार्टी की महामंत्री तथा राहुल गाँधी के बहिन प्रियंका गाँधी वाड्रा यहाँ से उप चुनाव लड़ सकती हैं। यहाँ हुए उप चुनाव में के केवल चुनाव ही नहीं लड़ीं बल्कि भरी बहुमत से जीत भी हासिल की।
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारामिया तथा उप मुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार, जो प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं, ने चेन्नपतनम, शिगओं तथा संदूर उप चुनावों का अपनी प्रतिष्ठा और साख का मुद्दा बना रखा था। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस कुल 26 सीटों में 8 सीटें ही जीत सकी थी बाकी पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। इससे लग रहा था कि राज्य में पार्टी के लोकप्रियता घटती जा रही है। वे साबित करना चाहते थे कि राज्य में कांग्रेस पार्टी की साख अभी भी बरकरार है। कांटे की लड़ाई चेन्नपतनम और शिगओं में थी। चेन्नपटनम सीट जनता दल (एस) के नेता तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, जो इस समय केंद्रीय उद्योग मंत्री है, के लोकसभा का चुनाव जीतने से खाली हुई थी। इसी प्रकार शिगओं सीट बीजेपी के नेता तथा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एस आर बोम्मई के लोकसभा में चले जाने से खाली हुई। बंगलुरु से लगता चेन्नपटनम देश के पूर्व प्रधानमंत्री जनता दल (एस) के सुप्रीमो एच डी देवेगौडा, जो कुमारस्वामी के पिता है, के परिवार का गढ़ माना जाता है। वे राज्य के प्रभावशाली समुदाय वोक्कालिंगा के बड़े नेता उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार भी इसी समुदाय के है।
बीजेपी चाहतीं थी कि इस सीट पर उनको दे दी जाये। यह पार्टी अपने पुराने नेता तथा पांच बार विधानसभा सदस्य रहे योगेश्वर को यहाँ से मैदान में उतारना चाहती थी जबकि कुमारस्वामी अपने बेटे निखिल कुमारस्वामी, जो पहले भी दो बार विधानसभा का चुनाव हार चुके है, को चुनाव लडवाना चाहते थे। आखिर में निखिल कुमारस्वामी को यहाँ उम्मीदवार बनाया गया। इससे नाराज़ होकर बीजेपी नेता योगेश्वर ने पार्टी त्यागपत्र दे दिया। कांग्रेस पार्टी ने बिना समय खोये न केवल उनको अपनी पार्टी से शामिल कर लिया बल्कि उनको यहाँ से पार्टी का उम्मीदवार भी बना दिया। वास्तव में शिवकुमार, अपने छोटे भाईतथा पूर्व सांसद डी के सुरेश, जो पिछला लोकसभा चुनाव हर चुके थे, को मैदान में उतरना चाहते थे लेकिन इस सीट पर पार्टी के जीत सुनिश्चित करने के लिए शिवकुमार ने योगेश्वर को यहान से मैदान में उत्तारना तय किया। शिगओं में बोम्मई के बेटे भारत को उम्मीदवार बनाया था। उका यह पहला चुनाव था, जो वे हार गए। बोम्मई परिवार के यह सीट उनके हाथ्बसे चली गई।
वायनाड में प्रियंका गाँधी वाड्रा का मुकाबला वाम मोर्चे के उम्मीदवार मोकेरी तथा बीजेपी की युवा नेता नव्या से था। 2024 के लोकसभा चुनावों में राहुल गाँधी को 2019 के लोकसभा चुनावों की तुलना लगभग 20 प्रतिशत कम वोट मिले थे। इसलिए यह कहा जा रहा था कि प्रियंका गाँधी को इससे भी कुछ कम वोट मिलेंगे। लेकिन जब नतीजे सामने आये तो सबको आश्चर्य हुआ। प्रियंका गाँधी को अपने भाई से लगभग पचास हज़ार अधिक वोट मिले। इस राज्य में इंडियन मुस्लिम लीग कांग्रेस के नेतृत्व वाले लोकतान्त्रिक गठबंधन का हिस्सा है। यह इलाका मुस्लिम बहुल इलाका है और यहाँ के आबादी में 60 प्रतिशत मुसलमान है। इसी के चलते पहले 2019 तथा फिर 2024 में राहुल गाँधी ने यहाँ से चुनाव लड़ने का निर्णय किया था। चुनाव प्रचार के दौरान, जमात-ए–इस्लामी तथा पी ऍफ़ आई जैसे प्रतिबन्धित संगठनों ने यहाँ के चुनावों में बड़ी भूमिका निभाई। इसको लेकर राज्य के सत्तारूढ़ वाम मोर्चे और बीजेपी के नेताओं इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

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