
लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
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दुनिया में पेयजल की समस्या दिनों दिन विकराल होती चली जा रही है। इसकी भयावहता का सबूत यह है कि दुनिया में आज लगभग 4.4 अरब लोग पीने के साफ पानी से महरूम हैं। यह भीषण खतरे का संकेत है। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ एक्वाटिक साइन्स एण्ड टेक्नोलाजी के अध्ययन कर्ता एस्टर ग्रीनबुड की मानें तो यह स्थिति बेहद भयावह और अस्वीकार्य है कि दुनिया में इतनी बड़ी आबादी की पीने के साफ पानी तक पहुंच नहीं है। इन हालात को तत्काल बदले जाने की जरूरत है। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद दुनिया की सरकारें पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति क्यों गंभीर नहीं हैं, यह समझ से परे है। जबकि संयुक्त राष्ट्र बरसों से चेतावनी दे रहा है कि जल संकट समूची दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन जायेगा और अगर अभी से पानी की बढ़ती बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया गया तथा जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गये तो हालात और खराब हो जायेंगे जिसकी भरपायी असंभव हो जायेगी। अब यह स्पष्ट है कि दुनिया अपने बुनियादी लक्ष्यों तक को पाने के मामले में बहुत पीछे है। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। इन हालातों में 2015 में संयुक्त राष्ट्र का मानव कल्याण में सुधार के लिए सतत विकास लक्ष्य के तहत सभी के लिए 2030 तक सुरक्षित और किफायती पेयजल की आपूर्ति सपना ही रहेगा । संयुक्त राष्ट्र की मानें तो साफ पानी की पहुंच से दूर देशों के मामले में दक्षिण एशिया शीर्ष पर है जहां 1200 मिलियन लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं, वहीं उप सहारा अफ्रीकी देशों के 1000 मिलियन, दक्षिण पूर्व एशिया के 500 मिलियन और लैटिन अमेरिकी देशों के 400 मिलियन लोग आज भी साफ पानी से महरूम हैं। यह पानी के मामले में दुनिया की शर्मनाक स्थिति है। हकीकत यह है कि इन क्षेत्रों में पानी में दूषित पदार्थों की मौजूदगी सबसे बड़ी समस्या है। गौर करने वाली बात यह है कि दुनिया में आज हालत यह है कि लगभग 61 फीसदी आबादी एशिया में साफ पानी के संकट से जूझ रही है।

जहां तक भारत का सवाल है, यहां की 35 मिलियन से भी ज्यादा आबादी साफ पानी से दूर है। नीति आयोग ने तो यह तादाद 60 करोड़ से भी ज्यादा बतायी है। देश के दूरदराज के और ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो दीगर है, देश की राजधानी दिल्ली के लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। हकीकत यह है कि राजधानी के नये इलाकों में ही नहीं, पुराने इलाकों में भी लोग पीने के पानी की भारी किल्लत से बेहाल हैं। दक्षिण दिल्ली के अम्बेडकर नगर इलाके में लोग पानी की मांग को लेकर धरना दे रहे हैं। देवली इलाके के लोग पानी की किल्लत के चलते जल बोर्ड के दफ्तर के आगे मटका फोड़कर प्रदर्शन कर रहे हैं। बदरपुर विधानसभा क्षेत्र के लोग पानी के लिए पूरी-पूरी रात जाग रहे हैं। संगम विहार में एक साल से पाइप के जरिये पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है। प्राइवेट पाइप लाइन से महीने में एक बार पानी की सप्लाई होती है। जिसके पास घर में वाटर टैंक बना है वह अपना टैंक और जिनके पास पानी स्टोर करने का संसाधन नहीं है, वे ड्रम, बाल्टियों में जितना पानी भर सकते हैं, उतना भर लेते हैं। थोड़ा -थोड़ा करके पानी इस्तेमाल करते हैं। लोगों का कहना है कि बाकी पीने के लिए बोतलबंद पानी खरीदना पड़ता है। देवली इलाके में लोग निजी टैंकरों से 500 से 800 रुपये में प्रति टैंकर के हिसाब से पानी खरीदने को मजबूर हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि हां कई जगहों पर लगे बोरवेल महीनों से खराब पड़े हैं। जल बोर्ड में शिकायत के बाद भी उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। और तो और अधिकारी टैंकर से पानी मंगाने को कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। तुगलकाबाद में पानी की कमी के साथ टैंकरों की संख्या भी आधी कर दी गयी है। जल बोर्ड से पानी का टैंकर मंगाने के लिए शर्त लगा दी गयी है जिसे पूरा करना लोगों के लिए मुश्किल हो रहा है। नतीजतन लोग प्राइवेट टैंकर से पानी खरीद रहे हैं। पीने का पानी अलग से खरीदना पड़ रहा है। बुराड़ी की बात करें तो यहां नियमित पानी नहीं आता। कभी सुबह तो कभी शाम के समय पानी आता है। कभी-कभी तो एक-दो दिन बाद में भी पानी आता है। महिलाओं का कहना है कि कभी-कभी तो उन्हें तड़के उठकर पानी भरना पड़ता है। इसके अलावा यह भी देखना पड़ता है कि कहीं गंदा पानी तो नहीं आ रहा है। जनकपुरी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने तो एनजीटी से इलाके में जल बोर्ड द्वारा बदबूदार सीवर मिले हुए पीने के पानी की आपूर्ति की शिकायत की है। अपनी शिकायत में एसोसिएशन ने कहा है कि इससे लोगों की सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। इस स्थिति में आज भी कोई सुधार नही है। सीवर मिले पानी की सप्लाई से लोगों को हेपेटाइटिस,हैजा, आंत्रशोध, यूरोसेप्सिस, टाइफाइड और पीलिया जैसी बीमारियां होने का खतरा है। गौरतलब है कि सीपीसीबी द्वारा इस इलाके के पानी के सैम्पिल परीक्षण में गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं। दुखदायी यह है कि जल बोर्ड द्वारा एनजीटी को जल की गुणवत्ता में सुधार लाने के भरोसे के बाद भी हालात में कोई बदलाव नहीं आया है।

पानी की किल्लत से वह चाहे ग्रेटर कैलाश हो, छतरपुर हो, महरौली हो, पालम या बिजवासन हो, तिमारपुर या माडल टाउन, राजौरी गार्डन हो या जनकपुरी हो, पानी की हर जगह मारामारी है। यह हालत तब है जबकि दिल्ली की नयी भाजपा की रेखा गुप्ता सरकार दिल्ली वालों को पानी की समुचित आपूर्ति का दावा करते नहीं थकती। लेकिन फिर भी संकट बरकरार है। उस हालत में जबकि दिल्ली जल बोर्ड रोजाना लगभग 90 मिलियन गैलन भूजल नलकूपों के जरिए निकाल कर और लगभग 1100 टैंकरों के जरिये दिल्ली वालों की पानी की प्यास बुझाने को पानी की आपूर्ति करता है। सबसे बड़ी बात यह कि दिल्ली वालों को जरूरत के मुताबिक जल बोर्ड द्वारा पानी न मिल पाने की स्थिति में वे सबमर्सिबल के जरिये बेतहाशा भूजल निकाल अपनी जरूरत पूरी करते हैं। फिर प्राइवेट संस्थान, छोटे -छोटे धंधे वाले, निजी अस्पताल , वर्कशाप, आटोमोबाइल सेंटर, वाहन धुलाई केंद्र और भवन निर्माण में भूजल का दोहन कीर्तिमान बनाये हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक और दिल्ली जल बोर्ड द्वारा विधानसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में तकरीबन 22,000 से ज्यादा अवैध सबमर्सिबल चल रहे हैं। इसके चलते दिल्ली के कई इलाकों में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है। इस समस्या को देखते हुए एनजीटी भी दिल्ली सरकार और दिल्ली प्राधिकरण से लुप्त हो चुके जल निकायों की बहाली के तात्कालिक उपाय करने का निर्देश दे चुकी है। जरूरत है विलुप्त हो चुके प्राकृतिक जल संसाधनों को पुनर्जीवित करने की और तालाब, पोखर समेत पारंपरिक जल स्रोतों को बचाने की। फिर सरकारी संस्थाओं, निजी प्रतिष्ठानों, आवासीय समितियों व नागरिकों द्वारा वर्षा जल संचयन के उपायों को अनिवार्य किए जाने और जल की बर्बादी पर अंकुश से जल संकट में काफी हद तक राहत मिल सकती है। इस हेतु जनजागरण बेहद जरूरी है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड की ताज़ा रिपोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते जल संकट की जो तस्वीर पेश की है, वह जहां गंभीर खतरे का संकेत है, वहीं वह चेतावनी भी है कि अब भी समय है संभल जाओ। रिपोर्ट की मानें तो दिल्ली के पास भविष्य में इस्तेमाल के लिए बहुत ही कम भूजल है। रिपोर्ट कहती है कि राजधानी में 34 में से 14 इलाके ऐसे हैं जहां सालभर में जितना भूजल संचयन होता है,उससे ज्यादा निकाल लिया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 2024 में 34,1905 क्यूबिक हेक्टेयर भूजल रिचार्ज किया गया जबकि 34,453.6 क्यूबिक हैक्टेयर मीटर निकाल लिया गया। तात्पर्य यह कि भूजल निकासी की दर 100.77 फीसदी रही है। दिल्ली के इन 34 इलाकों में से सिर्फ 14 को अति दोहित क्षेत्र, 13 को गंभीर रूप से दोहित क्षेत्र, 2 को अर्द्ध गंभीर क्षेत्र में शामिल किया गया है। जबकि केवल 5 इलाके ऐसे हैं जो सुरक्षित श्रेणी में शामिल हैं। घनी आबादी वाले इलाके भूजल के अत्यधिक दोहन और जल प्रदूषण के मामले में शीर्ष पर हैं। नयी दिल्ली जिला भूजल दोहन में शिखर पर है। इसके अलावा शाहदरा, उत्तर, दक्षिण और उत्तर -पूर्वी ज़िलों में ज्यादा जल दोहन किया जा रहा है जबकि नरेला, कापसहेड़ा, महरौली, चाणक्यपुरी, हौज खास, कालकाजी, डिफेंस कॉलोनी, सरिता विहार, वसंत विहार, राजौरी गार्डन, करोलबाग, पटेल नगर, पंजाबी बाग, मयूर विहार,विवेक विहार , प्रीत विहार, माडल टाउन, अलीपुर, दिल्ली कैंट, द्वारका, यमुना विहार, करावल नगर, गांधी नगर और सीमापुरी ऐसे इलाके हैं जहां भूजल दोहन बड़े पैमाने पर जारी है। भूजल केअत्याधिक दोहन की जल संकट की भयावहता को बढ़ाने में अहम भूमिका है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।

यह जगजाहिर है कि जल का हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह भी कि जल संकट से एक ओर कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। आखिरकार इस वैश्विक समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है? जाहिर है इसके पीछे मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं जिसमें कहीं न कहीं उसके लोभ, स्वार्थ और भौतिकवादी जीवनशैली की अहम भूमिका है।। वैश्विक स्तर पर देखें तो अभी तक यह स्थिति थी कि दुनिया में दो अरब लोगों को यानी 26 फीसदी आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं था। पूरी दुनिया में 43.6 करोड़ और भारत में 13.38 करोड़ बच्चों के पास हर दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। फिर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हालात और खराब होने की आशंका है। दुनिया में वह शीर्ष 10 देश जहां के बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं, उसमें भारत शीर्ष पर है जिसके 13.38 फीसदी बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं। जल संकट के लिए दुनिया में अति संवेदनशील माने जाने वाले 37 देशों की सूची में भारत भी शामिल हैं। यह सबसे चिंतनीय है। यूनीसेफ की मानें तो 2050 तक भारत में मौजूद जल का 40 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका होगा। यही चिंता का विषय है कि तब क्या होगा ? (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)