
लेखिका : ममता सिंह ‘मीत’
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जिंदगी की कीमत आज भी बरकरार है
कितना भी आसमान छू लो चार कंधों की दरकार है
दो मीठे बलों को जिंदगी
आज भी मोहताज है
टूटती हुई सांसों को किसी अपने का इंतजार है
यूं तो
जिंदगी के रंग मंच में अनगिनत किरदार हैं पर
जो जाने के बाद भी रह जाए वो सच्चा फनकार है
मोहब्बत से बढ़कर जहां में कौन सी बाहर है हर
उम्र में जिंदगी इसकी तलबगार है