आज़ादी का उत्सव नहीं, ज़िम्मेदारी का संकल्प बने

लेखक : डॉ. रघुराज प्रताप सिंह
पीपल मैन ऑफ़ इंडिया
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“तिरंगे को केवल लहराइए मत,
उसे अपने आचरण में भी बसाइए।”
15 अगस्त की सुबह तिरंगा जब आसमान में लहराता है तो हर भारतीय का हृदय गर्व से भर उठता है। यह वह दिन है जब हमें याद दिलाया जाता है कि हमारी आज़ादी किसी संयोग से नहीं, बल्कि अनगिनत बलिदानों की कीमत पर मिली है। लेकिन हमें खुद से यह सवाल भी पूछना चाहिए—क्या हमने उस बलिदान की क़द्र की है? क्या हम आज़ादी को केवल छुट्टी और औपचारिकता तक सीमित कर चुके हैं, या हम सच में उन शहीदों के सपनों का भारत गढ़ रहे हैं?
आज़ादी का सही अर्थ — ज़िम्मेदारी।आज़ादी का मतलब सिर्फ़ बेड़ियाँ टूटना नहीं, बल्कि अपने भीतर की ज़िम्मेदारी को जागृत करना है।अगर हम गंदगी फैलाएँ और सरकार से स्वच्छता की उम्मीद करें — तो यह कैसी आज़ादी है?अगर हम पानी बर्बाद करें और बारिश को कोसें — तो यह कैसी आज़ादी है?अगर हम भ्रष्टाचार को देखते हुए चुप रहें — तो यह कैसी आज़ादी है?भारत को अब दूसरी आज़ादी चाहिए —भ्रष्टाचार, प्रदूषण, अन्याय और अपनी ही उदासीनता से।
देशभक्ति का नया अर्थ सिर्फ सीमा पर लड़ना ही देशभक्ति नहीं।
एक पेड़ लगाना भी देशभक्ति है।
किसी बच्चे को पढ़ाना भी देशभक्ति है।किसी गलत काम के खिलाफ़ आवाज़ उठाना भी देशभक्ति है।
इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रण लें:
“मैं भारत को केवल महान नहीं, बल्कि हरियाली, ईमानदारी और मानवता का प्रतीक बनाऊँगा।”
सच्ची श्रद्धांजलि
जब हर नागरिक अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी उठाएगा, तभी भारत वह बनेगा जिसका सपना भगत सिंह, गांधी, नेहरू, सुभाष और अनगिनत शहीदों ने देखा था।आइए, तिरंगे को केवल लहराएँ नहीं —उसे अपने जीवन में भी उतारें।यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी,यही सच्ची आज़ादी होगी।जय हिंद! जय भारत! (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
डॉ. रघुराज प्रताप सिंह
पीपल मैन ऑफ़ इंडिया

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