असली रावण का दहन करें

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रावण के पुतले का दहन कर दिया गया। दशहरा पर्व धूमधाम से मना लिया गया। कभी किसी ने इस विषय पर गंभीर चिंतन किया कि लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक काटकर उसका अपमान किया। अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए रावण सीता को उठा लाया पर फिर भी 14 साल तक मर्यादा बनाए रखी। हाथ तक नहीं लगाया। उस विद्वान, ज्ञानी पुरुष, शिव भक्त का पुतला दहन किया जाता है। इससे क्या साबित होता है समाज का वातावरण बदला, लोगों की मानसिकता बदली? वर्तमान समय में हर गली, हर गांव, हर शहर ,हर परिवार में ऐसे रावण मौजूद है। छोटी-छोटी बच्चियों से लेकर 70,80 साल तक की बुजुर्ग महिलाओं के साथ दुष्कर्म कर इज्जत को तार तार कर रहे है। माननीय सुप्रीम कोर्ट और सरकार को दशहरे के दिन ऐसे रावण की याद नही आती। अगर महिलाएं जोहर कर अपनी इज्जत बचा सकती है। सती प्रथा के नाम पर जिंदा चिता पर जलाई जा सकती हैं। तो इन जिंदा रावण को क्यों नही जलाया जा सकता है? अगर दो चार ऐसे जिंदा रावण का पुतले के साथ साथ दहन कर दिया जाए तो नारी शक्ति सुरक्षित रह सकेगी। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।

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