अंतरिक्ष भी अछूता नहीं है प्रदूषण से – ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।

अंतरिक्ष में खोज में लगे उपग्रह
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दुनिया में प्रगति का अब कोई न तो मापदंड रहा है और न ही कोई मानदंड। इसका अहम कारण होड है जो थमने का नाम नहीं ले रही। प्रगति और विभिन्न क्षेत्रों में सबसे पहले कामयाबी हासिल कर उन्नति के शिखर पर पहुंचने की होड ने ही खोज कहें या अनुसंधान की महती महत्वाकांक्षा ने इंसान को राकेटों – सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने हेतु प्रोत्साहित किया। अब तो अंतरिक्ष ही क्या चंद्रमा और मंगल नामक ग्रह भी इंसान की इस महत्वाकांक्षा के आगे नतमस्तक हैं। उन पर भी पहुंच बनाने में उसने कामयाबी पा ली है। वह बात दीगर है कि उसके इन अभियानों से लाभ कितना होता है और हानि कितनी इसकी चिंता किसी को नहीं है। इंसान की कारगुजारी का ही दुष्परिणाम है कि उसने अपने ग्रह को तो प्रदूषित किया ही है,अब अंतरिक्ष को भी प्रदूषित कर डाला है। अंतरिक्ष में प्रदूषण इसका जीता-जागता सबूत है।
हकीकत यह है कि इंसान, वायु, जल, धरती, नदी, मृदा, खान-पान की वस्तुएं ही क्या प्रदूषण की मार से कोई बचा नहीं है। यहां तक अंतरिक्ष भी प्रदूषण से अछूता नहीं रहा है। वैज्ञानिकों के हालिया अध्ययन इसके जीते-जागते सबूत हैं। लंदन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने हालिया अध्ययन में इस बात का खुलासा किया है। उनके अनुसार अंतरिक्ष का यह प्रदूषण धरती के ऊपर वायुमंडल में 500 गुणा अधिक नकारात्मक असर छोड़ रहा है। इसमें धरती से छोड़े गये रॉकेटों और सैटेलाइट की अहम भूमिका है। भले ही यह उत्सर्जन दूसरे उद्योगों से कम क्यों न हो लेकिन वायुमंडल में पहले से ज्यादा प्रदूषण फैल रहा है। यह काफी चिंताजनक है। लंदन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वैज्ञानिकों का कहना है कि राकेट और सैटेलाइट से पहले कभी इतना प्रदूषण वायुमंडल की ऊपरी परत में नहीं छोड़ा गया । यह परत लम्बे समय तक प्रदूषण को रोककर रखती है। गौरतलब यह है कि इंसानों ने इससे पहले कभी भी वायुमंडल की ऊपरी परतों में इतना प्रदूषण नहीं फैलाया जितना अभी फैल रहा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि समय रहते इसे नहीं रोका गया तो पृथ्वी के वायुमंडल में इसके गंभीर परिणाम होंगे। अध्ययन में यह स्पष्ट हो गया है कि स्पेसएक्स का स्टारलिंक, वनवेब जैसे बड़े सैटेलाइटों ने प्रदूषण को तीन गुणा बढ़ाने में अहम योगदान दिया है। इसका जीपीएस, संचार और मौसम के पूर्वानुमान सहित अंतरिक्ष आधारित तकनीकों पर निर्भर उद्योगों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा।
इसमें दो राय नहीं है कि अंतरिक्ष में भेजे राकेटों- सैटेलाइटों से समूची दुनिया को टेलिविजन प्रसारण, डायरेक्ट टू होम, ए टी एम, मोबाइल व संचार, दूर शिक्षा, दूर चिकित्सा और मौसम,कीट संक्रमण, कृषि- मौसम विज्ञान, मत्स्य पालन आदि क्षेत्रों में सलाह मिलती है। यही नहीं उपग्रह डेटा का इस्तेमाल फसल उत्पादन व अनुमान, फसल की गहनता, सूखा आकलन, बंजर भूमि सूची, भूजल संभावित क्षेत्रो की पहचान, अंतर्देशीय जलीय चक्र और कृषि की उपयुक्तता, आपदा जोखिम न्यूनीकरण, महासागरीय स्थिति की सूचना के साथ भूजल पुनर्भरण संभाव्यता आदि के लिए भी किया जाता है। लेकिन इसके लाभ के साथ साथ खतरे भी अनेक हैं। सबसे बड़ा खतरा तो इनके द्वारा छोड़े गये अनुपयुक्त या समय सीमा समाप्ति के बाद कबाड सामानों से अंतरिक्ष में हो रहे प्रदूषण का है जिसने समूची दुनिया के वैज्ञानिकों और पर्यावरणवेत्ताओं की चिंता को और बढ़ा दिया है। असलियत में दुनिया के देशों द्वारा प्रक्षेपित किये गये उपग्रहों, राकेट, बूस्टर और हथियार परीक्षणों के मलबे के हजारों टुकड़े कक्षा में फंस गये हैं जो न केवल पृथ्वी की निगरानी के लिए जरूरी सक्रिय उपग्रहों से टकरा सकते हैं, बल्कि पुन: प्रवेश करते समय जलने पर हानिकारक रसायन भी वायुमंडल में छोड़ सकते हैं। इससे ओजोन परत का क्षरण हो रहा है। साथ ही आगामी बरसों में प्रक्षेपास्त्र और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए बड़ी समस्यायें पैदा हो रही हैं। गौरतलब है कि 2021 के नवम्बर महीने में रूस ने एक एन्टीसैटेलाइट प्रक्षेपास्त्र के जरिये अपने एक पुराने उपग्रह को उड़ा दिया था। परिणामस्वरूप उसके मलबे के हजारों टुकड़े फैल गये थे जिससे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से टकराने का खतरा पैदा हो गया था। सिक्योर वर्ल्ड फाउंडेशन की मानें तो आजतक कम से कम 16 मलबा पैदा करने वाले एसैट हथियार परीक्षण किये गये हैं जिनमें सबसे ज्यादा हानिकारक 2007 में चीन द्वारा किया गया था जिससे 3000 के करीब मलबे के टुकड़े बने थे। तब से अभीतक तीन मलबा बनाने वाले परीक्षण किये गये हैं और आने वाले बरसों में कई अंतरिक्ष मिशनों की योजना की मिली है।
गौरतलब यह है कि इस समय अंतरिक्ष में अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन, जापान, भारत, फ्रांस, जर्मनी, इटली और कनाडा मिलाकर इन दस देशों के सर्वाधिक सैटेलाइट हैं। इन तकरीब 12,952 सैटेलाइटों में से सबसे ज्यादा 8530 अमेरिका के हैं। उसके बाद रूस के 1559, चीन के 906, ब्रिटेन के 763, जापान के 203, भारत के 136, फ्रांस के 100, जर्मनी के 82, इटली के 66 और सबसे कम 64 कनाडा के हैं। मौजूदा दौर में 2200 से ज्यादा उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं। ये पृथ्वी के भूमध्य रेखीय तल में पृथ्वी की सतह से लगभग 30,000 किलोमीटर ऊपर भूस्थिर कक्षा में हैं जो अधिकांशत: संचार और मौसम की जानकारी से संबंधित उपग्रह हैं। जहां तक भारत का सवाल है, केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार भारत ने इसरो के द्वारा अबतक 1975 से भरतीय मूल के 129 के। अलावा 36 देशों के 342 विदेशी उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं। राज्यसभा में दी जानकारी के मुताबिक भारत के अंतरिक्ष में कुल 53 परिचालन उपग्रह हैं जो राष्ट्र को विभिन्न सेवायें दे रहे हैं। इनमें 21 संचार, 8 नेविगेशन, 21 पृथ्वी अवलोकन और 3 विज्ञान उपग्रह हैं। भारत ने बीती 2 नवम्बर को 4,410 किलो वजन वाला देश का सबसे भारी संचार उपग्रह जी सैट-7 आर बाहुबली राकेट एल बी एम 3 – एम 5 के जरिये छोड़ा है। कहा जा रहा है इससे नौसेना की कनेक्टिविटी युद्ध पोतों, विमानों और पनडुब्बियों सहित नौसेना के समुद्री संचालन केन्द्र में निर्बाध व सुरक्षित संचार संपर्क रखने में कई गुणा बढ जायेगी।
सबसे अहम सवाल तो अंतरिक्ष में दिनोंदिन बढ़ रहे कचरे का है। वह बात दीगर है कि अंतरिक्ष की कक्षा में मौजूद कचरे की मात्रा पृथ्वी के वायुमंडल से ठीक ऊपर, उसकी सतह से 2000 किलोमीटर ऊपर तक फैले क्षेत्र में मौजूद उपग्रहों और मलबे की तुलना में नगण्य हैं। उसको पृथ्वी की निम्न कक्षा या लियो कहते हैं। अक्सर उच्चतर कक्षाओं, चंद्रमा या अन्य ग्रहों तक पहुंचने के लिए अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निम्न कक्षा से ही गुजरना पड़ता है। यहां मलबा सबसे ज्यादा और सघन मात्रा में होता है। यहां कक्षीय वेग सबसे ज्यादा होता है। यही वह अहम कारण है कि अंतरिक्ष का यह कचरा या जिसे मलबा कहें, लियो में मौजूद अंतरिक्ष यान के लिए ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष यात्रा के सभी रूपों के लिए बड़ा खतरा है। अंतरिक्ष का कचरा परिचालन अंतरिक्ष यान पर प्रभाव डाल सकता है। इससे सभी आकारों का और भी अधिक मलबा पैदा हो सकता है जिससे जोखिम का असर और बढ़ सकता है जिसे केप्लर सिंड्रोम कहते हैं।
यहां सबसे बड़ी चिंता तो निष्क्रिय उपग्रहों और रॉकेटों के मलबे को लेकर है जो इस क्षेत्र में फैले हुए हैं और जो अंतरिक्ष में अव्यवस्था फैला रहे हैं। यहां इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि 1957 में जब सबसे पहले अंतरिक्ष में स्पूतनिक पहुंचा, तभी से अंतरिक्ष में मलबा जमा होना शुरू हुआ है। 2020 तक उन 2200 सक्रिय उपग्रहों के साथ लगभग 34,000 दस सेंटीमीटर या उससे भी अधिक व्यास के मलबे के टुकड़े, एक सेंटीमीटर से दस सेंटीमीटर तक की तकरीबन 9,00,000 वस्तुएं और एक सेंटीमीटर से भी छोटे आकार के 1,28,000,000 टुकड़े अंतरिक्ष में हैं जिनका वजन लगभग 70 लाख किलोग्राम के बराबर है। दरअसल राकेट प्रक्षेपण से बूस्टर, फेयरिंग, इंटरस्टेज और दूसरा मलबा लियो में रह जाता है। रॉकेटों के विस्फोट से भी ऐसा ही होता है।इसके अलावा इंसान की मौजूदगी से भी अंतरिक्ष में कैमरा, प्लायर्स, अंतरिक्ष यात्रियों के दस्ताने , रिंच, स्पैचुला, यहां तक कि अंतरिक्ष में भ्रमण के दौरान खोये उपकरण, बैग आदि भी रह जाते हैं। कुछ मलबा प्राकृतिक तौर पर भी सूक्ष्म उल्कापात के प्रभाव से भी पैदा होता है। उपग्रहों के संचालन, ईंधन समाप्त होने, बैटरियों के पैनल खराब होने से एकपक्षीय मलबे से प्रतिक्रिया चक्र बनता है। मलबे के और छोटे कण यानी सबसे छोटा मलबा भी जैसे धूल के कण भी भीषण खतरा बनते हैं।
अब लियो में ज्यादा सैटेलाइटों और रॉकेटों के चलते ज्यादा भीड़-भाड हो रही है। यही नहीं अंतरिक्ष यान और मौजूदा कबाड के बीच भी नजदीकी चूक पहले से ज्यादा हो रही है जो भयावह खतरे का संकेत है। ऐसी स्थिति में अंतरिक्ष यान और कक्षीय मलबा एक ऐसे घनत्व तक पहुंचता है जिसके हर एक प्रभाव से और अधिक मलबा पैदा होता है जिसकी दूसरी वस्तुओं से टकराने की संभावना बढ़ जाती है। नतीजतन लियो का उपयोग दशकों तक असंभव हो जाता है। यह भी भयावह खतरे की चेतावनी है।
इसमें दो राय नहीं है कि अंतरिक्ष में प्रदूषण के लिए खासतौर से विभिन्न देशों की सरकारें तो जिम्मेदार हैं ही, अंतरिक्ष ऐजेंसियां और निजी कंपनियां भी काफी हदतक जिम्मेदार हैं। यह प्रदूषण मुख्यत: उपग्रहों व राकेटों के हिस्सों और प्रक्षेपणों के दौरान पैदा हुए मलबे के रूप में होता है। इसके लिए स्पेसएक्स, एरियान के साथ लाकहीड व मार्टीन जैसी कंपनियों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। इस बारे में अनुसंधान कर्ता प्रोफेसर ऐलाएस मौरिस कहते हैं कि इस स्थिति से हम एक ऐसी जगह पर आ गये हैं जहां हम इससे पहले कभी भी नहीं थे। अंतरिक्ष यान और राकेटों का प्रक्षेपण दिनोंदिन तेजी से बढ़ रहा है। अकेले 2024 में 259 और 2023 में 223 राकेट लांच किये गये। इनमें कुल मिलाकर 453,000 मीट्रिक टन से ज्यादा ईंधन खर्च हुआ। कुछ दिनों से केन्या सहित दूसरी जगहों से वहां अंतरिक्ष से मलबा गिरने की खबरें आ रहीं हैं। स्वाभाविक है कि अंतरिक्ष में भी मलबा जमा होने की सीमा है। दुनिया में अनुसंधान, मौसमी गतिविधियों, संचार के विभिन्न आयामों की पहचान और ग्रहों की खोज हेतु सेटेलाइट और रॉकेटों को भेजने की होड लगी है, ऐसी दशा में ऐसा होना स्वाभाविक है। आज केन्या में अंतरिक्ष का मलबा गिरने की खबर है, हो सकता है कल कहीं और ऐसी ही मलबे के गिरने की खबर आये। यह सिलसिला जारी रहेगा और खतरा लगातार बढ़ता ही चला जायेगा। जबतक यह होड जारी रहेगी। भविष्य में अमेजन का
कुईपर प्रोजेक्ट यूरोपीय स्पेस एजेंसी के ठोस राकेट ईंधन का उपयोग करेगा। इससे क्लोरीन यौगिक निकलेंगे जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। दुनिया के विशेषज्ञ सहमत हैं कि इससे इस संकट के हल के लिए तकनीकी नवाचार और सख्त नियम दोनों की बेहद जरूरत है। यह भी कि अंतरिक्ष के मलबे की समस्या का शीघ्र निपटान किया जाये। कारण
बोइंग कंपनियां और स्पेसएक्स जैसी कंपनियां पृथ्वी की निचली कक्षा में लगभग 65,000 अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण की तैयारी में हैं जिससे भविष्य में अंतरिक्ष में और भी अधिक मलबा पैदा होगा। जाहिरहै इससे अंतरिक्ष में मलबे की समस्या और भयावह रूप अख्तियार करेगी।इसमें दो राय नहीं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

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