लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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एक दशक से कुछ पहले जब आन्ध्र प्रदेश का विभाजन करके नए राज्य तेलंगाना का गठन किया गया तो उस अविभाजित आन्ध्र प्रदेश का राजधानी ऐतिहासिक शहर हैदराबाद राजधानी था। विभाजन के समय यह तय हुआ कि हैदराबाद तेलंगाना की राजधानी होगा तथा आन्ध्र प्रदेश को अपनी नई राजधानी बनानी होगी। इसके लिए केंद्र आन्ध्र प्रदेश को आर्थिक सहायता देगा। यह भी निर्णय हुआ कि जब तक आन्ध्र प्रदेश की नई राजधानी के निर्माण का काम पूरा नहीं होता तब हैदराबाद दोनों प्रदेशों की संयुक्त राजधानी बना रहेगा। संयुक्त राजधानी बनी रहने की समय सीमा 10 वर्ष रखी गई थी। इसका अर्थ यह था कि आन्ध्र प्रदेश को अपनी राजधानी एक दशक की भीतर बनानी होगी।
विभाजन के समय अविभाजित आन्ध्र प्रदेश में तेलगु देशम की सरकार थी तथा चंद्रबाबू नायडू राज्य के मुख्यमंत्री थे। विभाजन के तुरंत बाद चंद्रबाबू नायडू सरकार ने नई राजधानी के लिए सही स्थान की तलाश शुरू करदी। लम्बे विचार विमर्श के बाद अमरावती को प्रदेश की नई राजधानी बनाने का निर्णय हुआ। सिंगापुर एक कंपनी को राजधानी परियोजना का प्रारूप बनाने का जिम्मेदारी दी गई। परियोजना का पहले चरण का निर्माण के लिए 50 हज़ार करोड़ रूपये खर्च होने का अनुमान था। इसके लिए कुछ साधन राज्य सरकार ने जुटाने थे। कुछ केंद्र से मिलने वाले थे। शेष धन राशि के लिए विश्व बैंक तथा एशिया डेवलपमेंट से बात की गई। नायडू ने दावा किया कि प्रदेश का राजधानी एक विश्व स्तरीय मेट्रो शहर होगा। नायडू को पूरा विश्वास था कि 2019 में होने वाले विधान सभा चुनावों में उनकी पार्टी फिर सत्ता आयेगी इसलिए उन्होंने राजधानी के निर्माण के लिया उसी तरह की समय सीमा को सामने रखा। लेकिन लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गई सरकारों के बारे में कोई भविष्य वाणी नहीं की जा सकती। ऐसा ही कुछ नायडू और उनकी पार्टी तेलगु देशम के साथ हुआ। उनकी पार्टी विधान सभा चुनाव बुरी तरह से हार गई , वाई एस आर पार्टी 2019 के चुनावों के बाद भारी बहुमत से सत्ता में आई। राज्य के नए मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने सत्ता संभालते ही राजधानी परियोजना पर काम रोकने का आदेश जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि वे शासन के विकेंद्रीकरण में विश्वास रखते है इसलिए अब राज्य में एक के स्थान पर तीन राजधानियां होंगी। विशाखापटन, प्रशासनिक राजधानी होगी। करनूल न्यायपालिका राजधानी तथा अमरावती विधायिका की राजधानी होगी। विधानसभा में एक विधेयक के जरिये पह्ले के राजधानी कानून को रद्द कर दिया गया तथा तीन राजधानियों वाला कानून को पारित किया गया। इसका लेकर लम्बी राजनीतिक बहस चली। फिर राज्य के हाई कोर्ट में तीन राजधानियों वाले कानून को चुनौती दी गई। न्यायालय ने तीन राजधानियों वाले कानून को रद्द कर दिया। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई जहाँ मामला अभी लंबित है।
उधर चंद्रबाबू नायडू पिछले दिसम्बर में जब फिर सत्ता में आये तो उन्होंने राज्य राजधानी प्राधिकरण का फिर काम शुरू करने का कहा। 2019 के चुनावों में जब नायडू के पार्टी की सरकार हार गई तब नई राजधानी के निर्माण का एक तिहाई काम पूरा हो चुका था। सचिवालय भवन और विधान सभा भवन पर काफी काम हो चुका था। नायडू ने पहले से इस परियोजना से जुड़े लोगों को फिर काम करने के लिए कहा गया। सिंगापुर की पुरानी फर्म से फिर संपर्क किया गया। इसी प्रकार विश्व बैंक और एशिया डेवलपमेंट बैंक को बताया गया कि परियोजना फिर आरंभ की जा रही है। अर्ध निर्मित भवनों का फिर से सर्वेक्षण किया गया। पिछले महीने विश्व बैंकऔर एशिया डेवलपमेंट बैंक के अधिकारियों के दलों यहाँ का दौरा कर सारी योजना का आंकलन किया। नायडू सरकार को आशा है कि जल्दी ही ये दोनों बैंक परियोजना के लिए धन देने को तैयार हो जायेंगे। तेलगु देशम पार्टी वर्तमान में केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन का हिस्सा है। तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आई इस गठबंधन की सरकार में वित्तमंत्री सीतारमण ने अपने पहले ही बजट में अमरावती राजधानी परियोजना के लिए 15,000 करोड़ रूपये देने का घोषणा की। यह भी कहा कि जरूरत पड़ने और इस परियोजना के लिए और भी धन दिया जा सकता है। उधर चंद्रबाबू नायडू इस बात को पुख्ता करने में लगे है कि 2028 में होने वाले अगले विधान सभा चुनावों पहले ने केवल राजधानी परियोजना के पहले चरण का काम पूरा हो जाये बल्कि राज्य की नई राजधानी का काम भी करने लगे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)