
लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारामिया का परिवार सरकारी जमीन के कथित अवैध आवंटन के घोटाले में बुरी तरह फंसा हुआ है। उन पर जमीन आवंटन का विवाद चल ही रहा था कि इसी बीच कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के परिवार को भी ऐसे ही कथित रूप से अवैध जमीन आवंटित किये जाने का मामला सामने आया। यह मामला बीजेपी के राज्य सभा सदस्य लहर सिंह सरोया ने उजागर किया। इसको लेकर मल्लिकार्जुन और उनके बेटे राहुल खरगे के खिलाफ मुकाम चलाये जाने की अनुमति देने के एक याचिका राज्यपाल थेवरचंद गहलोत के यहाँ लंबित है। राज्यपाल ने राज्य के मुख्य सचिव को एक पत्र लिख कर इस मामले से संबधित सारा विवरण माँगा है। उल्लेखनीय है कि मल्लिकार्जुन के बड़े बेटे प्रियांक खरगे राज्य के पंचायत राज विभाग के मंत्री है। यह परिवार सिद्धार्थ विहार के नाम से एक ट्रस्ट चलाता है। यह ट्रस्ट अपने स्तर पर राज्य में कई शैक्षणिक संस्थाएं चलाता है। ट्रस्ट का उद्देश्य समाजसेवा है न कि लाभ अर्जित करना।
इन कथित घोटालों से कानूनी रूप से बचने के लिए सिद्धारामिया परिवार और खरगे परिवार ने उनको आवंटित जमीनें सरकार को वापिस करने का निर्णय किया है। बताया जाता है इन दो परिवारों ने दिल्ली के नामी गिरामी वकील, जो कांग्रेस के नेता भी है, कि सलाह पर ही यह जमीनें सरकार को वापिस लौटने का निर्णय किया। कानूनी विशेषज्ञों की राय इस तरह जमीन लौटने को लेकर अलग-अलग है। कुछ का कहना है जब विवादित जमीन सरकार को वापिस लौटा ही दी गयी है तो इस पर आगे कोई अपराध की कार्यवाही हो ही नहीं सकती। अगर होती भी है तो सरकार का पक्ष कमजोर पड़ेगा। दूसरी राय यहहै कि अपराध और उसमें लिप्तता तो ही इसलिए कानून रूप से मुकदमा चलाया जा सकता है। यह ठीक ऐसे ही है कि अगर कोई चोर चोरी का सामना वापिस लौटा दे तो इसका मतलब यह नहीं कि उसके विरुद्ध कोई कानून कार्यवाही नहीं हो सकती। चोर ने अपराध तो किया ही है इसलिए उसको सजा तो होनी ही चाहिए भले ही उसने चोरी कबूल कर चोरी का सामान वापिस लौटा दिया हो।
पहले बात करते है सिद्धारामिया के मामले की। लगभग के दशक पूर्व सिद्धारमिया के साले ने मैसूरू शहर के बाहरी इलाके में 3.16 एकड़ जमीन अपनी बहिन पार्वती को तोहफे मुआवजे के रूप दे दी। कुछ समय साल बाद मैसूरू शहर विकास प्राधिकरण ने शहरी आबादी की जरूरत के रूप इस जमीन का अधिग्रहण कर लिया। इस जमीन के मुआवज़े के रूप पार्वती को शहर के एक महंगे इलाके में 14 आवासीय भूखंड आवंटित कर दिए। इनकी इस समय बाज़ार के हिसाब से कीमत लगभग 66 करोड़ रूपये है। सूचना के अधिकार से जुड़े एक कार्यकर्ता ने मामले को उजागर करते हुए कहा कि यह आवंटन नियमों के खिलाफ हुआ है। सिद्धारमिया ने इस मामले में अपने प्रभाव का दुरूपयोग किया है। उन्होंने यह भी कहना कि नियमानुसार अगर कोई चुनाव लड़ता है उसे नामांकन पत्र के साथ अपनी और अपने परिवार की सम्पति का विवरण देना होता है। लेकिन सिद्धारमिया ऐसा नहीं किया। कार्यकर्ता ने राज्यपाल को पत्र लिख सिद्धारामिया के खिलाफ मुकदमा चलने की अनुमति मांगी। राज्यपाल ने जब अनुमति दे दी तो सिद्धारामिया ने इसे कर्नाटक हाई कोर्ट में चुनौती। लेकिन कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया। इसका बाद विशेष अदालत में सिद्धारामिया के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया गया। इसी के चलते पार्वती ने 14 आवासीय भूखंड सरकार को वापिस कर दिए।
उधर खरगे परिवार को कर्नाटक औद्योगिक विकास बोर्ड ने हाईटेक डिफेन्स पार्क में 5 एकड़ का एक भूखंड राहुल खरगे द्वारा संचालित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट को आवंटित कर दिया। यह ट्रस्ट ने यहाँ कौशल विकास संस्थान स्थापित करना था। यह आवंटन आनन फानन में किया गया। बीजेपी सांसद सरोया का आरोप है कि इस आवंटन में नियमों का पालन नहीं किया गया। इस मामले में उनके भाई प्रियांक खरगे, जो राज्य सरकार में मंत्री हैं, ने अपने प्रभाव का दुरूपयोग किया।सरोया का आरोप है जब से उन्होंने मामले को उजागर किया है तब से उनको लगातार धमकियाँ मिल रही है।
इन दोनों जमीन घोटालों को लेकर कांग्रेस पार्टी की आला कमान नाराज़ थी। उधर कानून के जानकारों का कहना था कि दोनों इस मामले में बुरी तरह फंसे हुए है। इसके बाद ही पार्टी आला कमान ने और कानून के जानकारों के कहने पर इन दोनों को अपनी-अपनी जमीने सरकार को लौटने का निदेश दिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)