
बिहार में महिला डॉक्टर के हिजाब की घटना को संवैधानिक मूल्यों का गंभीर उल्लंघन माना
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जयपुर। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (APCR) बिहार में एक सरकारी कार्यक्रम के दौरान एक मुस्लिम महिला आयुष डॉक्टर के हिजाब में जबरन हस्तक्षेप किए जाने की घटना को संवैधानिक मूल्यों का गंभीर उल्लंघन मानता है। यह कृत्य न केवल महिला की व्यक्तिगत गरिमा और निजता पर आघात है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(a), 21 तथा 25 के प्रत्यक्ष उल्लंघन के दायरे में आता है।
APCR के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट सैयद सआदत अली है ने कहा कि किसी महिला के धार्मिक परिधान को सार्वजनिक मंच पर बिना उसकी सहमति हटाना अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार, जिसमें गरिमा, निजता और शारीरिक स्वायत्तता (bodily autonomy) सम्मिलित है, का घोर हनन है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जस्टिस के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में निजता और गरिमा को जीवन के मौलिक अधिकार का अभिन्न अंग माना गया है।
इसके अतिरिक्त, यह घटना अनुच्छेद 25 के तहत प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता में अवैध हस्तक्षेप है। राज्य या उसके प्रतिनिधि को किसी भी परिस्थिति में किसी भी नागरिक की धार्मिक पहचान को सार्वजनिक रूप से अपमानित या बाधित करने का अधिकार नहीं है, विशेषकर तब जब न तो कोई सार्वजनिक सुरक्षा का प्रश्न हो और न ही कोई कानूनी आवश्यकता।
APCR यह भी रेखांकित करता है कि यह कृत्य अनुच्छेद 15 के अंतर्गत लिंग और धर्म के आधार पर भेदभाव की श्रेणी में आता है। किसी महिला को उसके धार्मिक पहनावे के कारण सार्वजनिक रूप से अपमानित करना राज्य की सकारात्मक जिम्मेदारी—महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा—के पूर्णतः विपरीत है।
साथ ही, यह आचरण भारतीय दंड संहिता (IPC)/भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत महिला की मर्यादा भंग करने, जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने तथा आपराधिक बल के तत्वों की जांच की आवश्यकता भी उत्पन्न करता है। पद की गरिमा में रहते हुए किया गया ऐसा कृत्य अधिक गंभीर उत्तरदायित्व तय करता है, न कि छूट।
APCR की स्पष्ट मांगें हैं: पीड़ित महिला डॉक्टर से सार्वजनिक, बिना शर्त और लिखित माफी। घटना की स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक/प्रशासनिक जांच। महिलाओं की गरिमा और धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए उत्तरदायित्व तय किया जाए। भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की रोकथाम हेतु स्पष्ट SOP और संवेदनशीलता दिशानिर्देश जारी किए जाएँ।
APCR यह स्पष्ट करता है कि यह मामला किसी राजनीतिक मतभेद का नहीं, बल्कि संविधान, कानून के शासन और महिलाओं के मौलिक अधिकारों का है। यदि राज्य स्वयं नागरिकों की गरिमा की रक्षा करने में विफल रहता है, तो यह लोकतांत्रिक शासन की आत्मा पर आघात है। संगठन इस प्रकरण पर निरंतर निगरानी रखेगा और आवश्यक होने पर कानूनी हस्तक्षेप से भी पीछे नहीं हटेगा।यह जानकारी महासचिव मुजम्मिल रिज़वी ने प्रेस नोट में दी।