
लेखक : संजय राणा
लेखक पर्यावरण विषयक मामलों के जानकार और ख्यात प्रकृति प्रेमी हैं।
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जलवायु परिवर्तन पर वार्ता के लिये अमेजन जैसे विशाल वन क्षेत्र से 3500 हेक्टेयर वन हटाया जाना कहां तक न्यायसंगत !
दुनिया के सबसे बड़े पर्यावरणीय सम्मेलनों में से एक—“संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन – काप – 30 — वर्ष 2025 में ब्राज़ील के अमेज़न क्षेत्र स्थित बेलम शहर में आयोजित हो रहा है। यह सम्मेलन 10 नवम्बर से शुरु होकर 21 नवंबर 2025 तक चलेगा और इसमें 190 से अधिक देशों के प्रतिनिधि, उद्योगपति, वैज्ञानिक और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे।
पर सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे आयोजन वास्तव में जलवायु संकट को सुलझाने में कारगर हैं, या ये केवल राजनीतिक और आर्थिक दिखावा बनकर रह गए हैं?
ब्राज़ील ने काप – 30 की मेज़बानी को “अमेज़न की रक्षा” के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। परंतु इसी अमेज़न के एक हिस्से में, सम्मेलन की तैयारियों के नाम पर लाखो पेड़ों की कटाई, सड़कों के चौड़ीकरण और नए भवनों के निर्माण की रिपोर्टें सामने आई हैं। एक स्वतंत्र जाँच में सामने आया है कि बेलम और उसके आस-पास 3,500 हेक्टेयर से अधिक भूमि को साफ किया गया यानी समतल कर दिया गया है, ताकि सम्मेलन केंद्र, मीडिया जोन, वी आई पी मार्ग और होटल परिसर तैयार किए जा सकें। यह वही क्षेत्र है जहाँ जैव विविधता सबसे अधिक है और जहाँ पहले से ही अवैध लकड़ी-कटाई और खनन की समस्या बनी हुई थी। अर्थात् जिस वन की रक्षा के नाम पर सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है, उसी वन की जड़ों में तैयारी की कुल्हाड़ी चल रही है।
काप – 30 की तैयारियों पर अब तक लगभग 3 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए जा चुके हैं जिसमें से अधिकतर राशि इन्फ्रास्ट्रक्चर, सुरक्षा, होटल-निर्माण और वीआईपी आवास पर खर्च हुई है। इसके विपरीत, जलवायु ,शिक्षा, स्थानीय समुदायों की भागीदारी या सतत आजीविका परियोजनाओं के लिए निर्धारित बजट बेहद सीमित है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बेलम शहर में होटल-दरें 400 फीसदी तक बढ़ गई हैं। परिणामस्वरूप, कई छोटे द्वीपीय देशों (जैसे सोलोमन द्वीप, मलावी, सेनेगल आदि) के प्रतिनिधि वित्तीय कारणों से सीमित प्रतिनिधिमंडल ही भेज पा रहे हैं। यानी जो देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं, वही इस सम्मेलन में प्रतिनिधित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
पिछले काप सम्मेलनों की तरह ही, काप – 30 में भी वैश्विक वादों की लंबी सूची तैयार होगी — “नेट-ज़ीरो लक्ष्य”, “क्लाइमेट फाइनेंस”, “री-फॉरेस्टेशन” आदि।
लेकिन प्रश्न यह है कि क्या ये वादे धरातल पर उतरते हैं?
काप -26 (ग्लासगो, 2021) में 130 देशों ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटाने का वादा किया था। पर 2024 तक कोयला-उपयोग विश्व स्तर पर 3 फीसदी बढ़ा।
काप – 27 (मिस्र, 2022) में “हानि एवं भरपायी कोष ” की घोषणा हुई पर अब तक उसका आधे से कम हिस्सा ही कार्यान्वित हुआ।
काप -28 (दुबई, 2023) में तेल उत्पादक देशों की लॉबी ने फॉसिल फ्यूल फेज-आउट पर सहमति नहीं बनने दी। ब्राज़ील का उदाहरण भी अलग नहीं — एक ओर सरकार “अमेज़न बचाओ” की बात करती है, दूसरी ओर तेल-खनन और कृषि विस्तार के लिए नीतियाँ अनुमोदित करती है।
बेलम क्षेत्र के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के कारण — लगभग 1.2 लाख पेड़ों की कटाई हुई (स्थानीय NGO “Observatório do Clima” के अनुसार)। कई स्वदेशी समुदायों की ज़मीन अधिग्रहीत की गई। जलस्तर और मिट्टी की गुणवत्ता पर असर पड़ा, जिससे स्थानीय जैव-विविधता को खतरा हुआ। यही कारण है कि कई स्थानीय संगठनों और इंडिजिनस लीडर्स ने इस आयोजन को “ग्रीनवॉशिंग” कहा — अर्थात् “पर्यावरण बचाने के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना।”
हकीकत में काप जैसे आयोजन अब अपने मूल उद्देश्य वैश्विक नीति-निर्माण और जन-साझेदारी से हटकर एक कॉर्पोरेट इवेंट बनते जा रहे हैं। इन सम्मेलनों में बड़ी कंपनियाँ “कार्बन ऑफसेट” और “ग्रीन फाइनेंस” जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर अपने उत्सर्जन को वैध ठहराती हैं, जबकि ज़मीनी सुधार बहुत सीमित हैं। जलवायु संकट का समाधान काग़ज़ पर नहीं, धरातल पर होना चाहिए और धरातल पर इन आयोजनों की कीमत पेड़ों, जलस्रोतों और स्थानीय समुदायों को चुकानी पड़ती है।
विगत 6 बार के काप आयोजनों और उनके आयोजकों पर नजर डालें तो “दूध की रखवाली बिल्ली” वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आती है। ऐसे में जीवन के साथ खिलवाड़ स्पष्ट नजर आता है।
2018—काप-24 का आयोजन-पोलैंड देश में किया गया, जिसके आयोजन की जिम्मेदारी पोलैंड की कोयला कंपनियों पर रही।
गौरतलब है कि आयोजन के होस्ट देश ने कोयला उद्योग को “राष्ट्रीय गौरव” बताकर प्रमुख साझेदार बनाया; सिविल सोसायटी ने कहा — “कोयला राजधानी में जलवायु वार्ता का अर्थहीनता”। 2019- काप – 25 का आयोजन-स्पेन में किया गया, जिसके आयोजन की जिम्मेदारी स्पेन की बड़ी ऊर्जा कंपनियाँ (यूरोपियन यूनियन आधारित) रहीं। यह भी गौर करने वाली बात यह है कि बड़ी ऊर्जा कंपनियों ने साइड-इवेंट्स और पैवेलियन स्पेस पर नियंत्रण किया; सिविल सोसायटी ने कहा—कि “कॉर्पोरेट कल्चर” ने युवा और नागरिक आवाजों को पीछे धकेला।
2021 काप – 26 का आयोजन-यूनाइटेड किंगडम देश में किया गया, जिसके आयोजन की जिम्मेदारी यूनिलीवर, एस एस ई,, स्काटिश पावर, हिताची, माइक्रोसाफ्ट आदि कंपनियों ने की।
जबकि स्पॉन्सरशिप हेतु यूनाइटेड किंगडम सरकार ने ‘नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धता’ की शर्त रखी, पर आलोचना हुई कि बड़ी कंपनियाँ ग्रीनवॉशिंग कर रही हैं। जबकि लगभग 500 + फॉसल-फ्यूल लॉबीस्ट्स की मौजूदगी रिपोर्ट हुई।
2022— काप-27 का आयोजन-मिस्र में किया गया, जिसके आयोजन की जिम्मेदारी कोकोला (आधिकारिक स्पॉन्सर), माइक्रोसाफ्ट, आई बी एम आदि रहीं। गौरतलब है कि कोका-कोला दुनिया की सबसे बड़ी प्लास्टिक प्रदूषक कंपनी है। उसके बावजूद वह स्पॉन्सर बनी और विडम्बना कि इसे “ग्रीनवॉशिंग” का प्रतीक कहा गया। और साथ ही साथ रिकॉर्ड संख्या में तेल और गैस लॉबीस्ट्स की उपस्थिति (636) आंकी गयी।
2023 काप -28 का आयोजन दुबई में किया गया, जिसके आयोजन की जिम्मेदारी एडनाक, मसदर, कोकोला, माइक्रोसाफ्ट और एक्सेंचर आदि रहीं। तेल कंपनी के CEO, यानी सीधा हित-संघर्ष ; साथ ही बड़े कॉर्पोरेट स्पॉन्सरों की आलोचना, “तेल-गैस और प्लास्टिक लॉबी द्वारा क्लाइमेट एजेंडा कब्जाने की कोशिश”। 2024—काप -29 का आयोजन-अज़रबैजान में किया गया, जिसके आयोजन की जिम्मेदारी स्टेट आयल कंपनी आफ अजरबैजान, बी पी, ल्यूकाइल आदि रहीं। विशेषत: तेल उद्योग लॉबी ही इन आयोजनों की आयोजक रही हैं, जबकि देश की अर्थव्यवस्था तेल-गैस निर्यात पर ही आधारित रही है।
आलोचना का अहम पहलू “तेल साम्राज्य के भीतर जलवायु वार्ता का नैतिक द्वंद्व” है।काप -30 के आयोजन से यह साफ़ झलकता है कि “पर्यावरणीय चिंता अब एक महँगा ब्रांड बन चुकी है।” जहाँ जलवायु परिवर्तन पर बहस के लिए अरबों डॉलर खर्च किए जा रहे हैं, वहीं धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। बेलम जैसे शहर में सम्मेलन आयोजित कर “अमेज़न की रक्षा” का प्रतीक गढ़ना शायद अच्छा विचार था, पर वास्तविकता यह है कि इस प्रतीक की नींव ही कटी हुई जड़ों पर रखी जा रही है। इससे किसी बदलाव की उम्मीद बेमानी है।
आओ प्रकृति की ओर लौटे।
(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)