परियोजनाओं हेतु वन विनाश चिंताजनक : रामभरोस मीणा

लेखक : रामभरोस मीणा
लेखक पर्यावरणविद् व स्वतंत्र लेखक हैं।
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ग्लोबल वार्मिंग की भयावहता तो चिंताजनक है ही, दूसरी तरफ वन विनाश चिंता का सबब बन गया है। इसके चलते मानव ने स्वयं विनाशकारी आपदाओं को न्योता देने का काम किया है। विडम्बना यह कि इसके बावजूद मानव खुद को ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देकर अपने को विकास की मुख्य धारा से जुडा़ होने का दंभ भरते नहीं थक रहा है। यही नहीं इस तरह वह जहां भौतिकवादी विचार धाराओं को बढ़ावा दे रहा है, वहीं वह पूंजीवादी व्यवस्थाओं का पोषक होने की दिशा में येन केन खुद को साबित करने की जुगत में जोर-शोर से जुटा है। अपने इन्हीं कार्यकलापों से वह उन्हें अपना आन्तरिक तथा बाहरी सहयोग देकर प्रोत्साहित करने में जी जान से जुटा हुआ है। इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता। इसके साथ ही यह भी कटु सत्य है कि वर्ष के किसी भी मौसम में जंगलों के अवैध कटान की गति भी सुरसा के मुंह की भांति लगातार बढ़ती ही जा रही है। आये दिन सड़कों पर ट्रकों-ट्रैक्टरों पर हरे पेड़ों के कटे लट्ठों का अनगिनत कारवान इसका जीता जागता सबूत है। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। हकीकत यह है कि जंगलों को उजाड़कर नित नई-नई परियोजनाओं की स्थापना राजस्थान में आम बात है। वर्तमान में राजस्थान के मरु क्षेत्र के जैसलमेर और बाड़मेर जिले की स्थिति देख कर हैरानी होती है । आज के दौर में देखा जाये तो वहां 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान होने के बावजूद हजारों हैक्टेयर भूमि से लाखों पेड़ों -झाड़ियों को उजाड़ कर विकास के नाम पर सोलर पावर प्लांट लगाए जा रहे हैं। जहां वन- वनस्पति प्राकृतिक संतुलन बनाने में अहम भूमिका निबाहते हैं, वहां विकास के नाम पर करोड़ों पेड़ों की बलि चढ़ाने की तैयारी हो रही है। बारां जिले में लागाए जा रहे ग्रीन सोलर एनर्जी प्लांट के लिए जो जंगल उजाड़े जा रहे हैं, उससे यह सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि वर्तमान परिस्थितियों में जंगलों को उजाड़ना कितना सही है और कितना ग़लत।
वर्तमान में राजस्थान में तापमान की स्थिति इस समय बेहद खराब है। वर्तमान में तापमान 2 से 5 डिग्री सेल्सियस अन्य वर्षों के मुकाबले और बढ़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता। तापमान में 123 वर्षों का रिकार्ड तोड़ कर यह साबित भी कर दिखाया है कि वनों- वनस्पतियों की ताबड़तोड़ कटाई का दुष्परिणाम कितना भयावह हो सकता है। सूर्य ने अपने तेवरों से दुनिया को साफ संकेत भी दे दिया है कि अब भी समय है चेत जाओ। अब भी प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद कर दो अन्यथा परिणाम भयंकर होंगे जिसकी भरपाई तुम्हारे बस के बाहर की बात होगी। दरअसल धरती का ताप बढ़ने के साथ साथ वर्तमान परिस्थितियों में स्वमं व्यक्ति यह महसूस करने लगा है कि बढ़ते तापमान को यदि नहीं रोका गया तो हालात बेहद खतरनाक होंगे। यह भी सत्य है कि जंगलों के सिमटने से एक तरफ़ आबोहवा खराब हो रही है, फसलों को ताप बढ़ने से पानी की आवश्यकता अधिकाधिक होने के साथ पारिस्थितिकी तंत्र भी लड़खड़ाने लगा है।यही नहीं अनेकों प्रकार की वनस्पतियां, जड़ी-बूटियां विलुप्ति के कगार पर हैं। और तो और मौसम के दिन का चक्र भी बदलने लगा है।
असलियत में वन और वनस्पतियां हमारी वह सम्पदा है जिसको हमेशा संजोकर रखना चाहिए। इस सच्चाई को नकार नहीं जा सकता कि प्राकृतिक संपदा कहैं, वनस्पतियां कहैं या जैव विविधता की पर्याप्तता से प्राकृतिक तथा मानव निर्मित आपदाओं से हमेशा बचा जा सकता है। दैनंदिन बढ़ते ताप से बिगड़ती आबोहवा के साथ -साथ प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए आज जंगलों का बहुतायत में होना आवश्यक महसूस होने लगा है। इन्हें बचा कर रखना भी उतना ही जरूरी हो गया है जितना स्वयं व्यक्ति अपने को सुरक्षित रखना। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की मानें तो दीपावली पर्व पर एक्यूआई 347 तक पहुंच गया जबकि राजस्थान के कई शहरों की स्थिति बहुत खराब है। वह ख़तरे के निशान के करीब है। वायु गुणवत्ता सुचकांक दिनों दिन खतरनाक स्थिति में पहुंचा जा रहा है। तापमान के बढने के साथ धरती की नमीं खत्म होती जा रही है। पारिस्थितिकी सिस्टम गड़बड़ाने लगा है जिससे यह भी लगता है कि आगामी एक दशक में तिलहन फसलें होना बन्द हो जाएंगी। प्रदेश के बहुत बड़े क्षेत्र में दलहन का उत्पादन घट गया है।मसालों की खेती होना बंद हो गई है। वहीं हरे धनिए की फ़सल तापमान बढ़ने से ख़राब हो रही है। सरसों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता दिखाई दे रहा है। आर्द्र भूमि उष्ण हो चुकी है जिसका सीधा असर व्यक्ति व व्यक्ति की आजीविका पर पड़ने लगा है।
गंभीर स्थिति यह भी है कि बढ़ते तापमान तथा बिगड़ती आबोहवा का प्रभाव बच्चों तथा कामकाजी मजदूरों पर अत्यधिक पड़ने लगा है। दूषित वायु प्राणीमात्र के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। इससे विभिन्न प्रकार की बीमारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है। कुपोषित बच्चों की संख्या बतहाशा बढ़ने लगी है जो चिंता का बस है। परिस्थितियां समय रहते संभलने का साफ संकेत दे रही हैं कि अब भी समय है, संभल जाओ। अन्यथा बहुत देर हो जायेगी।
वर्तमान परिस्थितियों में हमें विकास की परिभाषा को बदलते हुए बढ़ते ग्लोबल वार्मिंग, बिगड़ती आबोहवा के साथ-साथ जंगलों को उजड़ने से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। वायु में स्थाई आर्द्रता पेड़ पौधों के माध्यम से आ सकती है ना कि एंटी स्मॉग गन मशीनों द्वारा पानी का छिड़काव करने से। खनन व औद्यौगिक परिवहन नीति में परिवर्तन करने के साथ प्रदूषण रोकने के क़दम उठाने और वन वनस्पतियों के संरक्षण की नीतियों कों लागू किया जाना चाहिए जिससे बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र को खत्म होने से बचाया जा सके। प्राणीमात्र को शुद्ध वायु मिल सके, सूर्य के घातक ताप से जीव बच सकें, धरती को हरियाली देकर ग्रीन एनर्जी प्राप्त कर सकें तथा विनाश से आगामी पीढि़यों को बचाया जा सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है।)

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