वैश्विक स्तर पर आर्थिक विषमता

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वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है। दुनिया की कुल संपत्ति का बहुत बड़ा हिस्सा मुट्ठी भर लोगों के पास है। बाकी आबादी के पास बहुत कम हिस्सेदारी है। इससे लोगों में सामाजिक असंतोष बढ़ रहा है। समाज दो भागों में विभाजित हो चुका है। अमीर और अमीर होता जा रहा है। गरीब और गरीब होता जा रहा है। इससे समावेशी विकास में बाधा आ रही है। रोजगार की कमी, अपर्याप्त वेतन आर्थिक असमानता को बढ़ाते हैं।

इस विषमता को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर समान संसाधन वितरण प्रणाली को लागू किया जाए। अमीरों पर वैश्विक स्तर पर न्यूनतम कर, टैक्स चोरी पर रोक लगाई जाए। श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की जाए। महिला भागीदारी को बढ़ावा दिया जाए। अगर धन का पुनर्वितरण हो सके तो आर्थिक असमानता को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर व्यापार नीतिया निष्पक्ष और समान रूप से लागू हो। विदेशी कंपनियों की बजाय लघु उद्योग, कुटीर उद्योग जो एक तरफ खड़े हैं उन समूहो को सशक्त बनाया जाए। प्रत्येक देश स्वदेशी को प्राथमिकता दें। शिक्षा व स्वास्थ्य पर अधिकतम निवेश किया जाए।सभी को समान अवसर मिले। भेदभाव न किया जाए ताकि मजबूत व न्याय संगत समाज का गठन हो सके। समाज से ही देश का निर्माण होता है और देश वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाता है। (लेखिका के अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।

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