तापमान में बढ़ोतरी खतरनाक संकेत : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
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देश में तापमान में हुयी बढ़ोतरी ने मौसम और पर्यावरण विज्ञानियों तथा पर्यावरणविदों को चिन्ता में डाल दिया है। उत्तर भारत में दिल्ली एनसीआर सहित उत्तर प्रदेश के कानपुर, झांसी, प्रयागराज, हमीरपुर आदि शहरों में मार्च के आखिर में ही तापमान 38.9 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाना इस साल अभी तक की सबसे भीषण गर्मी पड़ने का संकेत है। कई राज्यों में हीटवेव और गर्म रातों के असर ने इस खतरे को और बढा़ दिया है। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने उत्तर-पश्चिम भारत में इस बार गर्मी में रिकार्ड हीटवेव दिनों का अंदेशा जताया है। उसके अनुसार इस बार हीटवेव के दिनों की संख्या दोगुना से भी ज्यादा होने की उम्मीद है यानी सामान्य से अधिक गर्मी पड़ सकती है। गौरतलब है कि पिछले साल 2024 में गर्मियों में हीटवेव के सबसे ज्यादा दिन रिकार्ड किये गये थे जो 14 साल में सर्वाधिक थे। 2024 की फरवरी की बात करें तो वह 1901 के बाद से सबसे ज्यादा गर्म फरवरी रही। देखा जाये तो इस बार फरवरी महीने से ही गोवा और महाराष्ट्र में पहली बार हीटवेव दर्ज की गयी है। ओडिशा, गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र व तेलंगाना में तो मार्च के महीने में ही हीटवेव देखी गयी। इस बार उप्र, बिहार में मार्च के आखिर में बढ़ती गर्मी ने मौसम विज्ञानियों की चिंता बढा़ दी है। इसके मद्देनजर ही स्वास्थ्य विभाग ने राज्य के सभी अस्पतालों को हीटवेव के शिकार मरीजों के लिए अतिरिक्त पांच बैड आरक्षित रखने और चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं चुस्त-दुरुस्त रखने का निर्देश दिया है। उ०प्र० के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने हीटवेव को लेकर जिलाधिकारियों, मुख्य चिकित्सा अधिकारियों और समस्त मैडीकल कालेजों को विशेष सतर्कता बरतने और उससे निपटने के लिए तैयार रहने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने कहा है कि हीटवेव के कारण होने वाली जनहानि को हम स्वीकार नहीं कर सकते। इसकी भरपाई मुआवजा देकर तो किसी भी तरह नहीं की जा सकती है।
हिल स्टेशनों की बात करें तो उत्तराखंड के हिल स्टेशनों पर तो मार्च महीने के मध्य में ही गर्मी का अहसास होने लगा था। वहां इस दौरान दिन का तापमान 24 से 27-28 डिग्री सेल्सियस रहा जबकि इससे पहले हिल स्टेशनों पर इतना तापमान अप्रैल के पहले हफ्ते के बाद रहता रहा है। कुमांयू के हिल स्टेशनों पर इन दिनों रात में भले ठंड हो रही है लेकिन दिन में चमचमाती धूप से तपिश होने लगी है। यह इस बात का सबूत है कि इस साल पश्चिम और मध्य भारत में सामान्य से अधिक हीटवेव के दिन हो सकते हैं। आने वाले दिनों में यदि यही रुझान रहा तो यह साल पिछले साल से भी ज्यादा गर्म होगा। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की जारी हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2023 में कार्बन डाई आक्साइड का स्तर पिछले आठ लाख सालों में सबसे ज्यादा रहा है। यही नहीं 2015 से 2024 के बीच के साल रिकार्ड सबसे दस गर्म साल रहे हैं। वर्ष 2023 में कार्बन डाई आक्साइड का स्तर 420 पीपीएम तक पहुंच गया, जो 2022 से 2.3 पीपीएम अधिक है। यह वातावरण में 3,27,600 करोड़ टन कार्बन डाई आक्साइड की मौजूदगी के बराबर है। इसका असर शहरी क्षेत्रों में ज्यादा दिखाई दे रहा है। असलियत में शहरों में बढ़ते तापमान का कारण ‘ हीट आइलैंड इफैक्ट’ है। क्योंकि कंक्रीट की संरचनाएं दिन भर गर्मी सोखती हैं और रात में छोड़ती हैं। परिणामतः वातावरण और गर्म होता है। ऊंची – ऊंची इमारतें हवा के प्रवाह को रोकती हैं। उच्च तापमान और उमस शरीर की ठंडक बनाये रखने की प्रक्रिया को बाधित करती है जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
चिंता की बात यह है कि इस बार ‘ला नीना’ भी प्रचंड गर्मी से नहीं बचा पायेगा। दरअसल ‘ला नीना’ प्रशांत महासागर में समुद्री तापमान को ठंडाकर दुनिया के कई हिस्सों में ठंडक बढा़ता है लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ठंडक पहुंचाने वाला ‘ला नीना’ भी अपना असर खो रहा है। आई आई टी मुंबई और आई आई टी गांधीनगर के वैज्ञानिकों की एकमुश्त राय है कि वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोतरी से अब ‘ला नीना’ भी गर्मी से राहत नहीं दिला पायेगा। इससे आने वाले बरसों में हीटवेव का दौर और लंबा खिंचने की संभावना बलवती हुयी है। इसके चलते जहां गर्मियों की अवधि बढ़ सकती है, बुजुर्गों और बच्चों को स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरा बढ़ेगा, वहीं मानसून पर असर पड़ने से बारिश के पैटर्न बदलने की आशंका है। गर्मी का असर श्रमिकों और उद्योगों पर भी पड़ेगा। देखा जाये तो पिछले साल हीटवेव के 40 हजार से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे और करीब 733 लोगों की मौत हुयी थीं। अत्याधिक गर्मी से भारत 2030 तक सालाना 5.8 फीसदी काम के घंटे खो सकता है। हीटवेव से सबसे ज्यादा निर्माण श्रमिक, किसान और फैक्टरी मजदूर प्रभावित होंगे। यही नहीं खाद्य पदार्थ भी गर्मी की मार से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। इस साल खासकर टमाटर, प्याज, भिण्डी जैसी सब्जियां मंहगाई से ज्यादा प्रभावित होंगी जबकि पिछले साल अप्रैल-मई के महीनों में सब्जियों की कीमतों में 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुयी थी।
मौसम विज्ञानियों ने आने वाले दिनों में गर्मी और लू को लेकर चेतावनी जारी की है। इसका असर एनसीआर सहित देश के छह राज्यों में ज्यादा रहेगा। इसका अहम कारण सिंध और बलूचिस्तान की ओर से आने वाली गर्म और शुष्क रेगिस्तानी हवाएं हैं जो राजस्थान, गुजरात सहित मध्य और पूर्वी भारत में तेज गर्मी का कारण बनेंगीं। इन दिनों इन राज्यों के लोग लू के थपेडो़ं से दो-चार होंगे। इसका अहम कारण एक नया पश्चिमी विक्षोभ होगा। यह हिमालयी क्षेत्र को ज्यादा प्रभावित करेगा। मध्य और उत्तर भारत के कई हिस्सों में दो से चार डिग्री सेल्सियस तापमान में बढ़ोतरी होगी। राजस्थान का बाड़मेर जिले में तो अभी से ही तापमान 46 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच चुका है। जबकि अभी तो अप्रैल का पहला हफ्ता ही हुआ है। आगे गर्मी का आलम क्या होगा, उसकी आशंका से ही घबराहट होने लगती है।
सबसे दुखदायी और गंभीर चिंता की बात यह है कि भारतीय शहरों में हीटवेव कहें या लू का प्रकोप कहें, से निपटने की तैयारी अधूरी हैं। दिल्ली स्थित शोध संगठन सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलेबोरेटिव यानी एस एफ सी ने खुलासा किया है कि ग्रामीण क्षेत्रों की बात दीगर है, देश के दिल्ली, फरीदाबाद, मेरठ, ग्वालियर, बंगलूर, कोटा, लुधियाना, मुंबई और सूरत जैसे शहरों में ही हीटवेव से बचाव के प्रभावी दीर्घकालिक उपाय नहीं किए जाने से हीटवेव से होने वाली मौतों की आशंका ज्यादा व्यक्त की गयी है। इनमें देश की आबादी के लिहाज से 11 फीसदी से ज्यादा लोग रहते हैं और ये शहर गर्मी के लिहाज से देश के सबसे ज्यादा जोखिम वाले क्षेत्र हैं। इनमें हीटवेव से निपटने की दिशा में दीर्घकालिक नहीं, बल्कि अल्पकालिक उपायों पर ध्यान दिया जा रहा है। इससे भविष्य में तीव्र और लम्बे समय तक चलने वाली गर्मी से अधिक मौतें होने की संभावना बनी रहती है। कारण शहरी नियोजन सहित अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों ने अपनी नीतियों में गर्मी की चिंता को शामिल ही नहीं किया गया है। हकीकत यह है कि निम्न सामाजिक -आर्थिक वर्ग के लोग गर्मी के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इसलिये स्थानीय निकाय स्तर पर दीर्घकालिक समाधानों पर ध्यान केन्द्रित करने और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु हीट एक्शन प्लान को मजबूत बनाने की बेहद जरूरत है। उस स्थिति में तो यह और भी जरूरी है जबकि तापमान में दिनोंदिन हो रही बढो़तरी पर मौजूदा वैश्विक हालातों के मद्देनजर फिलहाल अंकुश की उम्मीद ही बेमानी है। इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस का आशावाद समझ से परे है कि पेरिस समझौते के लक्ष्य हासिल करना अभी भी संभव है और विश्व नेताओं को इसे साकार करने के लिए तत्काल कदम उठाना चाहिए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

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