खाने के मेन्यू को सीमित रखे

www.daylifenews.in
शादियों में अनेक प्रकार के व्यंजन और इतनी वैरायटी बनाई जाती है कि आधा से ज्यादा भोजन बर्बाद होता है। अलग-अलग स्टाल भी लगाई जाती है। पाश्चात्य खाने पिज़्ज़ा बर्गर चाऊमीन में लोगों की रुचि बढ़ रही है। और स्टाल पर ही लोग अपना पेट भर लेते हैं।उसके बाद भोजन में विभिन्न प्रकार की मिठाइयां, विभिन्न प्रकार की सब्जियां, रोटी, पूरी, मक्की की रोटी का स्वाद लेने के लिए बेवजह अपनी प्लेट भर लेते हैं। थोड़ा बहुत खाने का स्वाद ले कर ज्यादा खाना कचरा पात्र में चला जाता है। जहां भोजन की व्यवस्था है वहां पर बड़े-बड़े खाली बड़े बड़े पात्र रख दिए जाएं और सूचना लगा दी जाए कि बचे हुए भोजन को इन पात्रों में डालें।खाली प्लेट कचरा पात्र में डाले इससे भोजन व्यर्थ नहीं होगा। बाद में गरीबों के काम आ जाएगा।
सबसे मुख्य बात यह है कि अगर शादी समारोह में भोजन की बर्बादी रोकनी है तो बफेट पद्धति को बंद करना होगा। यह पाश्चात्य संस्कृति की देन है। वहां की संस्कृति के अनुकूल है वहां मात्र 400, 500 लोगों का खाना होता है। लेकिन भारतीय संस्कृति में इसका कोई स्थान नहीं है सदियों से हमारे ऋषि मुनि आंगन में सुखासन में बैठकर यानी की आलती पालती लगाकर भोजन करते थे। इससे हमारी पाचन क्रिया दुरूस्त रहती है। हृदय को ज्यादा जोर नहीं लगाना पड़ता हैं । रीढ की हड्डी एकदम सीधी रहती हैं और खाना पचाने के लिए उपयुक्त एसिड बनना शुरू हो जाता है। बफेट पद्धति में शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ खाने की भरपूर बर्बादी होती हैं। लोग दोबारा खाना लेने के लिए जाने की बजाय एक बार में ही अपनी प्लेट पूरी भर लेते है। बफेट पद्धति को छोड़कर पुरानी पद्धति के अनुसार जमीन पर दरी बिछाकर पंगत लगाकर भोजन को पत्तल दोने में आवश्यकता अनुसार परोस कर खाना खिलाया जाए तो इससे भोजन की बर्बादी रुकेगी।किसी न किसी को तो यह शुरुआत करनी होगी। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *