फ़क़ीर के दिल से निकली हर दुआ रंग लाती है – नदीम खान पठान

ख्वाजा के दर हेतू मलंगों की मोहब्बत भरी यात्रा
जाफ़र लोहानी
www.daylifenews.in
मनोहरपुर (जयपुर)। ख्वाज़ा गरीब सहित सभी वलियों से मोहब्बत करने वाले आँधी के नदीम खान पठान ने कहा कि “निगाहें वली मे व्व तासीर देखी बदलती हुई रोज हजारों की तक़दीर देखी”!
यह शब्द पठान ने ख़्वाजा गरीब नवाज के 814 वें उर्स पर शिरकत करने के लिए जारहे मलंग व फकीरों की सेवा करने के बाद में कहे। पठान ने बताया कि 2025 — सूफी संत हजरत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर इस साल का 814 वां उर्स मुबारक अपने रंग में है। लेकिन इस धार्मिक महोत्सव की सबसे अनोखी तस्वीर है — महरौली से निकले मलंग बाबाओं का जुनूनी कारवां, जो खुदा की मोहब्बत में सर्दी, गर्मी, और थकान को भूलकर, अजमेर की ओर बढ़ रहे हैं। पठान ने शायराना अंदाज़ में कहा कि “हद तपे सो औलिया, बे हद तपे सो पीर, हद बेहद तपे ताको नाम फ़क़ीर” ये मलंग बाबा, फकीरी के इस उच्चतम दर्जे को जीते हैं।
आँधी के नदीम खान पठान* कहते हैं, “फ़क़ीर के दिल से निकली हर दुआ रंग लाती है।” और ये मलंग उसी रंग में रंगे हुए हैं — एक ऐसा रंग, जिसमें सांसारिकता का नाम नहीं, सिर्फ वली की मोहब्बत है।
फकीरी की दुनिया, जहां दुनियादारी नहीं ये मलंग खुद की करामात छुपाकर, शान्ति से जीते हैं। न उन्हें पैसों की लालसा, न दुनिया के झमेले। ये खुदा के नाम पर फकीरी ओढ़े हुए हैं, और उसी के नाम से हर काम करते हैं। वलियों से इनकी मोहब्बत ऐसी है कि अगर कोई इनकी मदद करता है, तो उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। ये जंगल के अंधेरे रास्तों पर, कई दिनों तक बिना खाए-पिए चलते रहते हैं, लेकिन किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते। क्यों? क्योंकि उनका रखवाला खुद इनकी देखभाल करता है।
मोहब्बत का कठिन सफर, थकान का नाम नहीं ये मलंग बाबा महरौली (दिल्ली) से अपनी यात्रा शुरू करते हैं। दिल्ली की सड़कों से गुजरते हुए, आमेर घाटी के बाबा के मजार पर हाजिरी देते हैं, और फिर चार दरवाजे में स्थित हजरत मौलाना जियाउद्दीन साहब के दर पर इकठ्ठा होते हैं। यहां से, ये एक साथ छड़ियों का जुलूस लेकर निकल पड़ते हैं — अजमेर शरीफ की ओर।
सर्दी की कड़ाके वाली रातें, गर्मी की तपती धूप, बरसात के भिगोते रास्ते, पैरों में पड़ते छाले — इनमें से कुछ भी इनके कदमों को रोक नहीं पाता। क्यों? क्योंकि इनके दिल में गरीब नवाज की मोहब्बत है। ये अजमेर पहुंचकर अपनी छड़ियों को ख्वाजा के दर पर पेश कर ही दम लेते हैं।
हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक, ख्वाजा के दीवाने : ख्वाजा गरीब नवाज, जिन्होंने सदियों पहले कहा था, “मोहब्बत सबको सब से है, नफरत किसी से नहीं,” आज भी इन मलंगों के रग-रग में बसते हैं। ये जुलूस न सिर्फ एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह एक संदेश है — एकता, प्रेम, और आत्मसमर्पण का।
एक मलंग बाबा फकीरी लेठी पर झूमते हुए कहते हैं: “हमारे पास न धन है, न दौलत। हमारे पास गरीब नवाज का नाम है। हम उनके दर पर अपनी सांसें सौंपने जा रहे हैं।” दुआ का असली रंग, इनके चेहरे पर इन मलंगों की दुनिया अलग है। न इनके पास कुछ मांगने को, न देने को। ये सिर्फ मोहब्बत बांटते हैं। और जब ये ख्वाजा के दर पर पहुंचते हैं, तो लगता है जैसे पूरी कायनात उनकी दुआओं का इंतजार कर रही हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *