
लेखिका : ममता सिंह ‘मीत’
छल दंभ की भाषा हम ना पढ़ेंगे
शेर हैं हम बेखौफ लड़ेंगे
ना पीछे से वार करेंगे
न शोर तकरार करेंगे ना कोई संवाद करेंगे,
बहुत हो गई वार्तालापे वार्तालापें
अब वार पे वार करेंगे
दुश्मन की काली करतूतें बहुत हो गई बातें बुते
नहीं चलेंगी अब निंदा शर्मिंदा अब जो भी करेंगे
ढंग से करेंगे
आर करेंगे या पार करेंगे
गिद्ध नजर पर नजर धरेंगे जैसे के संग तैसा करेंगे
नहीं डरे हैं नहीं डरेंगे
एक ही बात बार-बार कहेंगे।
जय हिंद हैं जय हिंद रहेंगे बात यही हर बार कहेंगे
(लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)