बिल्डिंग से ज़्यादा अब बात मलबे की है…

और सरकार ने ये बात अब क़ानून बना दी है।
निशांत की रिपोर्ट
लखनऊ (यूपी) से
www.daylifenews.in
अब अगर आपने कोई बिल्डिंग गिराई या नया प्रोजेक्ट शुरू किया है, तो “क्या करेंगे मलबे का?” इस सवाल का जवाब आपके पास होना चाहिए — और वो भी लिखित में!
दरअसल सरकार ने हाल ही में Construction and Demolition Waste Management Rules, 2024 लागू कर दिए हैं, जो 1 अप्रैल 2026 से ज़मीन पर उतरेंगे। ये कानून पुराने 2016 वाले नियमों की जगह लेंगे — इस बार ज़्यादा सख्ती, ज़्यादा ज़िम्मेदारी, और ज़्यादा पारदर्शिता के साथ।
यह कानून अब तक के पुराने नियमों की तुलना में कहीं ज़्यादा सख्त, व्यावहारिक और जवाबदेही से भरपूर है। निर्माण, पुनर्निर्माण, मरम्मत या किसी भी प्रकार के तोड़फोड़ कार्यों से जो मलबा निकलता है, उसे अब यूं ही कहीं फेंका नहीं जा सकेगा।
तो क्या बदलेगा?
EPR लागू होगा – Extended Producer Responsibility
मतलब जो भी निर्माण या गिराने का काम कर रहा है — बिल्डर हो, सरकार हो, ठेकेदार हो या बिजली कंपनी — अब उन्हें अपने मलबे की ज़िम्मेदारी खुद उठानी होगी।
हर बड़े प्रोजेक्ट के लिए वेस्ट मैनेजमेंट प्लान ज़रूरी होगा
आपको बताना पड़ेगा कि कितना मलबा निकलेगा, उसका क्या करेंगे, कैसे रिसाइकल करेंगे।
रिसाइकलिंग के टारगेट तय कर दिए गए हैं
2026-27 तक 5% मलबा रिसाइकल करना अनिवार्य होगा। उसके बाद हास साल ये 5 प्रतिशत से बढ़ेगा, और 2030-31 तक और उसके बाद 25% हो जाएगा। मतलब जितना गिराया, उतना दोबारा इस्तेमाल।
रिसाइकल्ड मटीरियल का इस्तेमाल भी ज़रूरी
बड़े प्रोजेक्ट्स और रोड कंस्ट्रक्शन में अब रिसाइकल किए गए मटीरियल को phased तरीके से इस्तेमाल करना अनिवार्य होगा।
ऑनलाइन पोर्टल के ज़रिए रजिस्ट्रेशन और ट्रैकिंग
हर डिटेल दर्ज होगी — मलबा कितना, कहाँ स्टोर किया, क्या रिसाइकल हुआ, किसे भेजा गया — सब कुछ।
इन-साइट प्रोसेसिंग पर बोनस पॉइंट्स
अगर आप वहीं साइट पर मलबे को प्रोसेस करते हैं, तो आपको ज़्यादा क्रेडिट मिलेगा।
सरल भाषा में — पर्यावरण के लिए अच्छा काम, ज़्यादा रिवार्ड।
नियम तोड़ोगे तो भरना पड़ेगा जुर्माना
पेनाल्टी, रजिस्ट्रेशन रद्द, और environmental compensation — कानून अब सिर्फ कागज़ पर नहीं रहेगा।
छूट सिर्फ चुनिंदा रणनीतिक प्रोजेक्ट्स को मिलेगी
जैसे डिफेंस, परमाणु ऊर्जा, या प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े काम।
बिजली क्षेत्र के लिए क्या मायने हैं?
बिजली प्लांट्स, सोलर पार्क्स, ग्रीन एनर्जी वाले बड़े-बड़े EPC प्रोजेक्ट्स — सब इस कानून के दायरे में हैं।
अब प्रोजेक्ट सिर्फ बिजली पैदा करने तक सीमित नहीं रहेंगे — उन्हें ये भी सोचना पड़ेगा कि इंफ्रास्ट्रक्चर बनाते वक़्त पर्यावरण की जिम्मेदारी कैसे निभाई जाए।
इस नए कानून के दायरे में अब न केवल रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स आते हैं, बल्कि पावर सेक्टर के वो सभी खिलाड़ी भी शामिल हैं जो किसी भी तरह के निर्माण या तोड़फोड़ से जुड़े हैं — फिर चाहे वो कोयला आधारित बिजली परियोजना हो, या फिर कोई सौर ऊर्जा पार्क। यह नियम साफ़ तौर पर कहता है कि अब हर निर्माणकर्ता, चाहे वह सार्वजनिक हो या निजी, मलबे की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
इस बदलाव की सबसे अहम कड़ी है ईपीआर यानी एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR)। इसके तहत अब निर्माण करने वाले को अपने मलबे के निपटारे और रिसाइकलिंग की जिम्मेदारी उठानी होगी। हर प्रोजेक्ट के लिए एक वेस्ट मैनेजमेंट प्लान तैयार करना अनिवार्य होगा, जिसमें यह बताया जाएगा कि कितनी मात्रा में मलबा निकलेगा, उसे कैसे जमा किया जाएगा, और किस तरह से उसका निस्तारण या पुनर्चक्रण (recycling) किया जाएगा।
सरकार ने रिसाइकलिंग के लिए चरणबद्ध लक्ष्य भी तय किए हैं। 2026-27 तक 5% मलबा रिसाइकल करना अनिवार्य होगा। उसके बाद हास साल ये 5 प्रतिशत से बढ़ेगा, और 2030-31 तक और उसके बाद 25% हो जाएगा। मतलब जितना गिराया, उतना दोबारा इस्तेमाल। साथ ही, बड़े निर्माण और सड़क परियोजनाओं में रिसाइकल्ड मटीरियल का उपयोग भी अनिवार्य किया गया है, जो नियमों के Schedule II और III के तहत लागू होगा।
इन सबका हिसाब-किताब अब एक ऑनलाइन पोर्टल के ज़रिए रखा जाएगा, जिसमें सभी निर्माणकर्ता, ठेकेदार और संबंधित एजेंसियों को रजिस्टर होना होगा। मलबे की उत्पत्ति से लेकर उसके संग्रहण, प्रोसेसिंग, रिसाइकलिंग और अंतिम निस्तारण तक की पूरी जानकारी हर छह महीने में पोर्टल पर अपडेट करनी होगी। खास बात यह है कि यदि कोई संस्था साइट पर ही मलबे की प्रोसेसिंग करती है, तो उसे ज्यादा ‘क्रेडिट’ मिलेगा — एक तरह से टिकाऊ और ज़िम्मेदार प्रैक्टिस को प्रोत्साहन देने की कोशिश।
जो इस कानून का पालन नहीं करेंगे, उनके लिए भी सरकार ने कड़ा संदेश दिया है। जुर्माना, रजिस्ट्रेशन रद्द होना और पर्यावरणीय मुआवज़ा जैसी कार्यवाहियां नियम तोड़ने वालों का इंतज़ार करेंगी। हालांकि, कुछ चुनिंदा परियोजनाओं को इससे छूट दी गई है, जैसे रक्षा, परमाणु ऊर्जा या प्राकृतिक आपदाओं से जुड़ी परियोजनाएं।
बिजली और ऊर्जा क्षेत्र के लिए यह केवल एक और कंप्लायंस चेकलिस्ट नहीं है — यह एक स्पष्ट नीति संकेत है कि अब पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी को बाय-डिज़ाइन सोच में शामिल करना होगा। प्लानिंग से लेकर टेंडर दस्तावेज़ों और साइट पर कामकाज तक, हर स्तर पर बदलाव करना ज़रूरी होगा। खासकर ईपीसी (EPC) ठेकेदारों और डेवलपर्स को अपने मौजूदा वर्कफ़्लो, कॉन्ट्रैक्ट्स और ज़मीनी प्रथाओं की नए सिरे से समीक्षा करनी होगी।
यह नियम लागू होने में अभी एक साल का वक़्त है, लेकिन अगर तैयारी अभी से नहीं की गई, तो आगे चलकर यह कानून एक झटके की तरह सामने आ सकता है।
अब सवाल यह नहीं है कि क्या हम इसके लिए तैयार हैं, बल्कि यह है कि इस बदलाव को सही मायनों में लागू करने की ज़िम्मेदारी किसकी है — सख्त कानूनों की, संवेदनशील ठेकेदारों की, या जागरूक परियोजना प्रबंधकों की? (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

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