
लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं
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अभी दो दिन ही बीते हैं दीवाली को कि दुनिया में हमारे देश की राजधानी दिल्ली ने प्रदूषण के मामले में कीर्तिमान बनाकर यह साबित कर दिया है कि भले हमारी सर्वोच्च अदालत कुछ भी कहे, वह लाख निर्देश दे लेकिन हम नहीं सुधरेंगे। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को जहरीली हवा से बचाने के दावे पहले की तरह इस बार भी फिर फेल साबित हुये हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक में हमारी दिल्ली दुनियाभर में शीर्ष पर है। यह हमारे लिए गर्व की बात है। भला हो तेज हवाओं का जिन्होंने प्रदूषण को एक जगह ठहरने नहीं दिया वर्ना हालात और खराब होते। यह हालात तब रहे जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों के चलाये जाने की अनुमति दी थी लेकिन ग्रीन पटाखों के नाम पर जो पटाखे बेचे गये और चलाये गये, उनसे यह प्रदूषण हुआ। जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों-आदेशों का खुलेआम उल्लंघन हुआ। उसी का नतीजा रहा कि इस बार पिछले पांच सालों के मुकाबले दीवाली पर पी एम 2.5 की मात्रा सबसे ज्यादा रिकार्ड की गयी। यह हालात अकेले देश की राजधानी दिल्ली की ही नहीं रही, कमोबेश पूरा देश इसका शिकार हुआ है।
दुख तो इस बात का है कि जब वायु गुणवत्ता सूचकांक की बात की जाती है तो इस पर खेद व्यक्त करने की जगह हमारे देश के भावी कर्णधार कहें या पुरोधा गर्व से यह कहते हैं कि-” पटाखे तो ऐसे ही चलेंगे। पटाखे चलाने से कुत्ते डर जाते हैं। ऐसे लोगों के पेट में दर्द होता है। वायु प्रदूषण पर कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं, ऐसे लोगों को आगे देखेंगे,उनको सबक सिखाना पड़ेगा। ये कुत्ते तब नहीं बोलते जब ईद पर लाखों बकरे कुरबानी के नाम पर मौत के घाट उतार दिये जाते हैं। तब प्रकृति प्रेमी नहीं बोलते। जज साहब ने आजतक ज्ञान नहीं दिया कि कितने बकरे काटे जाने चाहिए। बकरों का काटा जाना और दावतें उड़ाना इनके लिए आनंद का विषय है। इन्हें दीपावली पर वायु प्रदूषण और होली पर जल प्रदूषण दिखाई देता है।” दरअसल यहां इस प्रकरण का हवाला देने का एकमात्र मकसद यह था कि ऐसा अलवर में एक प्रकृति प्रेमी द्वारा वायु गुणवत्ता सूचकांक के सीमा से अधिक बढ़ने पर खेद जताने पर उसे देश के पुरोधाओं द्वारा सोशल मीडिया पर ऐसी सम्मानजनक टिप्पणी और देख लेने की धमकियां तक दी गयीं। मेरे कहने का आशय मात्र यह है कि वायु प्रदूषण पर दुख व्यक्त करने पर लोगों का इस तरह का सोच है,उस हालत में वायु प्रदूषण से मुक्ति की आशा कैसे संभव है। ऐसे लोगों को न जनता के स्वास्थ्य की चिंता है,न पर्यावरण की और न देश की सुप्रीम कोर्ट की। ऐसे लोगों से देशहित की आशा करना ही बेमानी है।
दरअसल ग्रीन पटाखों से वायु प्रदूषण कम करने का दावा तो फुस्स हो ही चुका है क्योकि यदि ग्रीन पटाखे चले होते तो प्रदूषण 50 फीसदी तक कम होता लेकिन हुआ उसके बिल्कुल उलट। स्थिति यह रही कि प्रतिबंधित पटाखे न केवल खूब बिके बल्कि खुलेआम चले भी और जिस पुलिस पर इनके रोकथाम की जिम्मेवारी थी,वह ऐसा होते देखती रही या यूं कहें कि उसने कमाई के चक्कर में अपनी आंखें मूंद लीं। नतीजतन पटाखे 40 फीसदी ज्यादा बिके और दिल्लीवासी जहरीली हवा में सांस लेने को विवश हुए। हालात गवाह हैं कि दिल्ली में इस बार पिछले सालो के मुकाबले प्रदूषण सबसे ज्यादा रहा। सी एस आई आर भी इसकी पुष्टि करता है। यह पटाखों की गुणवत्ता तय मानक के अनुरूप रहे, इस पर अंकुश पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अमिताभ कांत का आशावाद बिल्कुल बेमानी है कि जब लास ऐंजिलिस,बीजिंग और लंदन प्रदूषण कम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं। उनका यह कहना कि दिल्ली की हवा बेहद खराब है। 38 में से 36 निगरानी केन्द्र रेड जोन में हैं और दिल्ली के प्रमुख इलाकों में एक्यूआई 400 के पार है। सुप्रीम कोर्ट ने समझदारी दिखाते हुए पटाखे जलाने के अधिकार को जीने और सांस लेने के अधिकार से ऊपर रखा है। इससे बचने के लिए और लगातार इस दिशा में काम करने और सख्ती से पहल करने की जरूरत है। इसके लिए ऐकीकृत कार्य योजना बेहद जरूरी है। उनकी राय है कि फसल और बायोमास जलाना बंद करना चाहिए। थर्मल पावर प्लांट और ईंट भट्टों को बंद करना चाहिए या फिर उनको क्लीन टेक से माडर्न बनाना चाहिए। 2030 तक सभी ट्रांसपोर्ट को इलैक्ट्रिक में बदलना,कंस्ट्रक्शन की धूल पर सख्ती बरतना,कचरे को पूरी तरह अलग करना और प्रोसेसिंग को जरूरी बनाना होगा। दिल्ली को ग्रीन, पैदल चलने लायक बनाना होगा। ट्रांजिट पर फोकस करने के हिसाब से कार्ययोजना बनाकर फिर से डिजाइन करनी होगी। तभी कुछ बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।
सीपीसीबी की मानें तो देश के 200 से ज्यादा शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर बेहद खराब रहा है। इनमें नोयडा, लखनऊ, गाजियाबाद, मेरठ जैसे शहर सर्वाधिक प्रभावित रहे। प्रदूषण बढ़ने से अस्पतालों में आंखों में जलन, गले में खराश,गले में दर्द की समस्या,सांस लेने में परेशानी,ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों का तांता लगा रहा। हार्ट अटैक का खतरा बढ़ा है। पी एम 10 व पी एम 2.5 के कण फेफड़े में प्रवेश करने से सूजन बढ़ने के मरीज बढ़े। पी एम 2.5 बढ़ने से धमनियों में ब्लाकेज का खतरा बढ़ जाता है जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ने तथा सांस लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। प्रदूषण से 8 से 18 फीसदी हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है और कभी कभार जानलेवा भी साबित हो जाता है। यह सब ग्रीन पटाखों की अनदेखी का परिणाम है। जबकि ग्रीन पटाखों से पी एम कण 30 फीसदी व हानिकारक गैसें दस फीसदी कम उत्सर्जित होती हैं। ऐसी स्थिति में घर के बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, पुराने रोगी और बच्चे घर में ही रहें। पर्याप्त पानी पियें। खानपान में कोल्डड्रिंक, ठंडी,खट्टी चीजों का परहेज करें। आवश्यक हो तो मास्क पहनकर बाहर जायें। गले में खराश होने पर गरारे करें और नाक जाम होने पर सुबह शाम भाप लें। पौष्टिक आहार लें व आंवले का सेवन करें। इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। घर में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें। आने वाले समय में पराली हमारे जीवन की प्रत्याशा पर ग्रहण लगाने वाली है। इसीलिए यह याद रखें सतर्कता ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूंजी और बचाव की प्रमुख विधि है। इसमें दो राय नहीं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)