
शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील। राजधानी से महज 75 किलोमीटर दूर सांभर नगर के पूर्व में स्थित राजस्थान के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार देवयानी तीर्थ स्थल आज भी सभी तीर्थों की नानी के नाम से विख्यात है। वर्ष 1984 से वर्ष 2010 तक पानी के इस तीर्थ स्थल को लंबा इंतजार करना पड़ा। विगत कुछ वर्षों से इस सरोवर मे बारिश का पानी आने से जहां देवयानी के कण्ठ तर हुए है, वहीं इस सरोवर का हृदय भी पूरी तरह से खिल उठा है। प्रशासन और सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रहे इस तीर्थ स्थल का कुदरती भाग्य उदय होने से अब हजारों श्रद्धालुओं का फिर से मोह जाग उठा है। हालांकि सरोवर अभी भी लबालब होने से वंचित है। करीब बीस हजार वर्गगज क्षेत्रफल में फैले इस सरोवर में महज कुछ दिनों के प्रयासों के बाद जन सहयोग से इस तीर्थ स्थल के उत्तरी दिशा में गुढा सॉल्ट जाने वाले रास्ते की तरफ बारिश के एकत्रित पानी को कृत्रित तरीके से इसे भरा जाना भी किसी अजूबे से कम नहीं था।
कौन है देवयानी : माना जाता है कि मारवाड़ के इस भू-भाग पर किसी समय नलियासर नामक सरोवर के तट पर वृषपवी नामक दानव राज्य करता था, उसकी पुत्री का नाम शर्मिष्ठा था और देवयानी दानव गुरू शुक्राचार्य की पुत्री थी। एक बार जब वे दोनों निकट के सरोवर में स्नान करने गई तो हड़बड़ाहट में शर्मिष्ठा ने देवयानी के वस्त्र पहन लिए, इस पर देवयानी अत्यधिक क्रोधित हो गई और शर्मिष्ठा ने देवयानी को धक्का देकर सरोवर में गिरा दिया। संयोवश चन्द्रवंशी राजा ययाति उस समय उधर से गुजर रहे थे तो उन्होंने देवयानी का हाथ पकड़ कर सरोवर से बाहर निकाला। हाथ पकड़ने के कारण देवधानी ने राजा ययाति को पति रूप में वरण कर लिया। चूंकि देवयानी से कुपित थी, इसीलिए उसके पिता शुक्राचार्य ने दानवराज वृषपर्वा को राज्य त्याग कर चले जाने को कहा। शुक्राचार्य संजीवनी बिद्या के ज्ञाता थे, इसलिए वे उन्हें छोड़कर जाना नहीं चाहते थे। आखिर देवयानी की शर्त के अनुसार शर्मिष्ठा को दासी बनकर देवयानी के साथ राजा ययाति के महल में जाना पड़ा। तद्नन्तर राजा ययाति ने मुग्ध होकर गुप्त रूप से शर्मिष्ठा से भी विवाह रचा लिया। जब इसकी जानकारी देवयानी को लगी तो वह कुपित होकर अपने पिता के पास लौट आई और पिता के आदेश पर तप करने लगी, बाद में तप के बल पर वह यहीं जलमग्न हो गई। मान्यता के अनुसार सरोवर का जल कुष्ठ रोग निवारक माना जाता है। माना जाता है कि सभी तीर्थों की यात्रा करने के पश्चात यदि देवयानी सरोवर में डुबकी नहीं लगाई जाती है तो उसकी धार्मिक यात्रा अधूरी ही मानी जाती है, यही वजह है कि इसे सभी तीर्थों की नानी के नाम से पुकारा जाता है। यही वजह है कि आज भी प्रतिवर्ष पीपला पूर्णिमा के वार्षिक मेले के आयोजन के दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस तीर्थ स्थल के प्रति अपनी गहरी आस्था रखते हैं।
ये है प्राचीन मन्दिर
इस तीर्थ स्थल के चारों और लक्ष्मीनारायणजी, देवयानीजी, गंगाजी, गणेशजी, गिरधारीजी, श्रीजी, बालाजी, बिहारीजी, अन्नपूर्णाजी, सत्यनारायणजी, गौरीशंकरजी, जागेश्वरीजी, कल्याणजी इत्यादि देवी देवताओं के प्राचीन मन्दिर मौजूद है, जहां भक्तगणों का आना जाना बना रहता है। इसी सरोवर पर सम्राट अकबर का शीशमहल तो मौजूद है, लेकिन इसका कहीं पर भी उल्लेख नहीं किए जाने से यह महत्वपूर्ण स्थल गुमनानी के साए में है। समीप ही स्थित गोमुख से बहते पानी में स्नान करने के लिए बरबस ही मन मचल उठता है।