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आगरा। बीती 29 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के प्रख्यात धार्मिक स्थल बटेश्वर में ग्रामीण पत्रकार सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस अवसर पर आगरा जिला ही नहीं, प्रदेश के प्रमुख ग्रामीण पत्रकारों ने भाग लिया। इस सम्मेलन में आगरा जिला पंचायत की अध्यक्ष डा० मंजू भदौरिया व ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव व समकालीन चौथी दुनिया के प्रधान संपादक प्रख्यात पत्रकार श्री प्रवीण चौहान मुख्य अतिथि व सिविल सोसाइटी आफ आगरा के सचिव श्री अनिल शर्मा, ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के प्रदेश महासचिव डा० नरेश पाल सिंह, श्री संतोष शुक्ला, एस डी एम,बाह, जिला सूचना अधिकारी श्री शैलेन्द्र कुमार शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार श्री राजीव सक्सैना आदि ने विशिष्ठ अतिथि के रूप में सहभागिता की। सम्मेलन का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित कर व अतिथियों, आगंतुक पत्रकार बंधुओं तथा ताज क्लब के पदाधिकारियों का स्वागत ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री शंकर देव तिवारी, सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष श्री श्याम सुंदर पाराशर, जिलाध्यक्ष श्री विष्णु सिकरवार एवं महासचिव श्री मुकेश शर्मा द्वारा माल्यार्पण के साथ हुआ।

सम्मेलन में मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्षा डा० मंजू भदौरिया ने अपने संबोधन में जिले की जल समस्या पर सिलसिलेवार प्रकाश डाला। उन्होंने ग्रामीण पत्रकारों की समस्याओं पर हर संभव सहयोग का भरोसा दिया और उटंगन नदी पर जनता तथा सिविल सोसाइटी आफ आगरा की स्लूस गेट व बांध बनाये सम्बंधी बरसों पुरानी मांग को समय की आवश्यकता बताते हुए उसके समर्थन में हर संभव सहयोग का आश्वासन दिया। उन्होंने ग्रामीण अंचल की समस्याओं को उठाने हेतु उपस्थित ग्रामीण पत्रकारों और उनके संगठन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि रिहावली में उटंगन नदी पर बांध बनाये जाने के संदर्भ में मैं कोई कसर नहीं रखूंगी। इसके अलावा मुख्य अतिथि श्री प्रवीण चौहान ने अपने संबोधन में सम्मेलन में ग्रामीण पत्रकार बंधुओं की भारी तादाद में मौजूदगी पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए एसोसिएशन के गठन से लेकर आजतक के संघर्ष और सफलताओं का वर्णन करते हुए कहा कि यह सब आप लोगों के कठिन श्रम और समर्पण का प्रतीक है। हम इसके विस्तार में आने वाली परेशानियों को दूर करने और भावी योजनाओं तथा संघर्ष को और तेज व जुझारू बनाने की दिशा में प्रयासरत हैं। आपका सहयोग-समर्थन ही हमारी ताकत है और हमें आशा और विश्वास है कि हम अपने उद्देश्य में कामयाब होंगे। इस सम्मेलन की सफलता हमारे विश्वास की जीती-जागती मिसाल है। इस हेतु प्रदेश व जिला संगठन के सभी पदाधिकारी व सदस्य बधाई के पात्र हैं।
सम्मेलन के मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद श्री ज्ञानेंद्र रावत ने अपने सम्बोधन में सम्मेलन में उपस्थित अतिथियों, सिविल सोसाइटी आफ आगरा के पदाधिकारियों एवं पत्रकार बंधुओं का वंदन-अभिनंदन करते हुए कहा कि बन्धुओ, मृत्युंजय महादेव बाबा की नगरी बटेश्वर में आयोजित ग्रामीण पत्रकार सम्मेलन में आकर मैं खुद को आज गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं। मुझे इस अवसर पर जल संकट पर अपने विचार रखने का आदेश हुआ है।बन्धुओ पानी का संकट केवल हमारे देश का ही नहीं, समूची दुनिया का है। हकीकत में दुनिया में पेयजल की समस्या दिनों दिन विकराल होती चली जा रही है। दैनंदिन कार्यों की बात छोड़ दें, इसकी भयावहता का सबूत यह है कि दुनिया में आज लगभग 4.4 अरब लोग केवल पीने के साफ पानी से महरूम हैं। यह भीषण खतरे का संकेत है। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट आफ एक्वाटिक साइन्स एण्ड टेक्नोलाजी के अध्ययन कर्ता एस्टर ग्रीनबुड की मानें तो यह स्थिति बेहद भयावह और अस्वीकार्य है कि दुनिया में इतनी बड़ी आबादी की पीने के साफ पानी तक पहुंच नहीं है। इन हालात को तत्काल बदले जाने की जरूरत है। विडम्बना यह है कि इसके बावजूद दुनिया की सरकारें पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति क्यों गंभीर नहीं हैं, यह समझ से परे है। जबकि संयुक्त राष्ट्र बरसों से चेतावनी दे रहा है कि जल संकट समूची दुनिया के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन जायेगा और अगर अभी से पानी की बढ़ती बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया गया तथा जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गये तो हालात और खराब हो जायेंगे जिसकी भरपायी असंभव हो जायेगी। हम दावे भले कुछ भी करें असलियत में अब यह स्पष्ट है कि दुनिया अपने बुनियादी लक्ष्यों तक को पाने के मामले में बहुत पीछे है। यह अच्छे संकेत नहीं हैं। इन हालातों में 2015 में संयुक्त राष्ट्र का मानव कल्याण में सुधार के लिए सतत विकास लक्ष्य के तहत सभी के लिए 2030 तक सुरक्षित और किफायती पेयजल की आपूर्ति सपना ही रहेगा । संयुक्त राष्ट्र की मानें तो साफ पानी की पहुंच से दूर देशों के मामले में दक्षिण एशिया शीर्ष पर है जहां 1200 मिलियन लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं, वहीं उप सहारा अफ्रीकी देशों के 1000 मिलियन, दक्षिण पूर्व एशिया के 500 मिलियन और लैटिन अमेरिकी देशों के 400 मिलियन लोग आज भी साफ पानी से महरूम हैं। यह पानी के मामले में दुनिया की शर्मनाक स्थिति है। हकीकत यह है कि इन क्षेत्रों में पानी में दूषित पदार्थों की मौजूदगी सबसे बड़ी समस्या है। गौर करने वाली बात यह है कि आज हालत यह है कि लगभग 61 फीसदी आबादी एशिया में साफ पानी के संकट से जूझ रही है।

जहां तक भारत का सवाल है, यहां की 35 मिलियन से भी ज्यादा आबादी साफ पानी से दूर है। नीति आयोग ने तो यह तादाद 60 करोड़ से भी ज्यादा बतायी है। देश के दूरदराज के और ग्रामीण क्षेत्रों की बात तो दीगर है, देश की राजधानी दिल्ली के लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। हकीकत यह है कि राजधानी के नये इलाकों में ही नहीं, पुराने इलाकों में भी लोग पीने के पानी की भारी किल्लत से बेहाल हैं।
यह हालत तब है जबकि दिल्ली की भाजपा की रेखा गुप्ता सरकार दिल्ली वालों को पानी की समुचित आपूर्ति का दावा करते नहीं थकती। लेकिन फिर भी संकट बरकरार है। क्यों? इसका जबाव किसी के पास नहीं है। सबसे बड़ी बात यह कि दिल्ली वालों को जरूरत के मुताबिक जल बोर्ड द्वारा पानी न मिल पाने की स्थिति में वे सबमर्सिबल के जरिये बेतहाशा भूजल निकाल अपनी जरूरत पूरी करते हैं। फिर प्राइवेट संस्थान, छोटे -छोटे धंधे वाले, निजी अस्पताल , वर्कशाप, आटोमोबाइल सेंटर, वाहन धुलाई केंद्र और भवन निर्माण में भूजल का दोहन कीर्तिमान बनाये हुए हैं। यह स्थिति अकेले देश की राजधानी की ही नहीं कमोबेश पूरे देश की है। एक अनुमान के मुताबिक और दिल्ली जल बोर्ड द्वारा विधानसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में तकरीबन 22,000 से ज्यादा अवैध सबमर्सिबल चल रहे हैं। ऐसे हालात में भूजल स्तर में कमी आयेगी ही।इस समस्या को देखते हुए एनजीटी कितने भी लुप्त हो चुके जल निकायों की बहाली के निर्देश दे लेकिन उस पर अमल करने की जिम्मेदारी जिनकी है, उनकी नाकामी इस समस्या को और बढ़ा रही है। यह पूरे देश में हो रहा है।
इसमें सरकारों को ही दोष देने से काम नहीं चलेगा, इस सबके लिए हम भी उतने ही दोषी हैं। इसके लिए हमारी जीवन शैली में आये बदलाव की अहम भूमिका है। समस्या की विकरालता की एक अहम वजह यह भी है। दूसरी वजह देश में अधिक अन्न उत्पादन की लालसा के पीछे रासायनिक खादों का बढ़ता उपयोग और उसके लिए साठ के दशक में डीजल पंपों के इस्तेमाल की बढ़ती प्रवृत्ति। जिसका दुष्परिणाम हमारी जमीन की उर्वरा शक्ति दिनोंदिन क्षीण होते जाने के रूप में और हमारे भूजल भंडार पर पड़ा। दिनोंदिन बंजर होती जमीन और भूजल भंडार का निरंतर नीचे चला जाना इसका जीता जागता सबूत है।
अब बात आगरा के जल संकट की आती है। आगरा के जल संकट का इतिहास काफी पुराना और गंभीर है। मेरे कहने का आशय मात्र आगरा शहर ही नहीं है, समूचा ग्रामीण अंचल इस समस्या से पीड़ित है। यहां के लोग दशकों से पीने के पानी के संकट का सामना कर रहे हैं। यहां का भूमिगत जल खारा है। जलस्तर भी यहां बराबर गिरता जा रहा है। प्रदूषण के चलते भूजल की गुणवत्ता भी लगातार प्रभावित हो रही है। इसमें कृषि कार्यों व घरेलू उपयोग हेतु भूजल पर अति निर्भरता भूजल के अति दोहन का प्रमुख कारण है। इसमें यमुना में भारी धातुओं और दूसरे प्रदूषक तत्वों की मौजूदगी की भी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। भूजल में टी डी एस और क्लोराइड की मात्रा सीमा को पार कर गयी है। रसायनों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी और भूजल का स्वास्थ्य बिगड रहा है। इससे जहां कृषि प्रभावित होती है, वहीं पीने के पानी की समस्या और विकराल होती जा रही है। यहां मेरा यह कहना है कि हम अक्सर पुरातन परंपराओं, मान्यताओं और संस्कृति की दुहाई देते हैं, लेकिन क्या हम अपने जीवन में उन्हें अमल में लाते हैं। नदियों को हम मां मानते हैं जो हमारे जीवन की आधार हैं। उनके किनारे ही सभ्यता पनपी। लेकिन क्या उनकी हम रक्षा कर पाते हैं। जबकि जीवनदायिनी नदियों को हम खुद प्रदूषित करते हैं। सरकार दावा भले करे लेकिन हकीकत यह है कि वह चाहे पुण्यसलिला गंगा हो, यमुना हो या फिर कोई और नदी। आज हालत यह है कि कमोबेश देश की अधिकांश नदियां प्रदूषित हैं। अब तो मैदानी इलाकों की छोडिए, पर्वतीय राज्यों में भी नदियां प्रदूषित हैं। सीपीसीबी और सी एस ई के आंकड़े इस बात के प्रमाण हैं। देखा जाये तो देश की 271 नदियों में 296 जगहों पर उनका पानी प्रदूषित है। उसकी मानें तो देश की कमोबेश 465 नदियां प्रदूषित हैं। जहां तक सरकारों का सवाल है, सरकारें तो अपने हिसाब से काम करती हैं और वे करेंगीं भी। उनपर पूरी तरह निर्भर रहना ठीक नहीं। आपको भी आगे आना होगा। भाई राजेंद्र सिंह जी जिन्हें आप जलपुरुष के नाम से जानते हैं ने जोहड, चैकडैम के माध्यम से मृतप्राय स्थानीय नदियों को पुनर्जीवित किया, पद्मश्री राजा लक्ष्मण सिंह जी जिन्होंने राजस्थान में तालाबों, टांका प्रणाली से, बुन्देलखण्ड में पद्मश्री उमाशंकर पांडेय जी ने मेंड का पानी मेंड पर और खेत का पानी खेत में यानी मेडबंदी के माध्यम से और श्री पुष्पेन्द्र भाई ने अपना तालाब योजना के चलते किसानों द्वारा अपने खेतों में तकरीबन 65 हजार से अधिक तालाब बनाकर जलसंकट से निजात पाने में जो भूमिका निबाही है, वह एक मिसाल है। यह सत्य है कि हर क्षेत्र की स्थिति भिन्न होती है। लेकिन आप प्रयास तो कर ही सकते हैं। आप भी श्री राजेन्द्र भाई, श्री लक्ष्मण सिंह जी व पुष्पेन्द्र भाई का अनुसरण कर सकते हैं। आप अपने खेत में तालाब बनायें जिससे जहां वर्षा जल संचित होगा, भूजल स्तर में बढोतरी होगी, आपकी पीने के पानी की परेशानी दूर होगी और सिंचाई के लिए आपको किसी पर निर्भर नहीं रहना होगा।
श्री रावत ने कहा कि अब रही बात उटंगन की, उटंगन के मामले में सिविल सोसाइटी आफ आगरा का प्रयास और आगरा जिला पंचायत की अध्यक्षा बहन डा. मंजू भदौरिया जी का सहयोग और समर्थन स्तुतियोग्य है। उन्होंने न केवल इस मुद्दे को उठाया है बल्कि प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से भेंटकर इसपर अमल किये जाने का अनुरोध किया है। मुझे मालूम हुआ है कि इस पर कार्यवाई का आदेश भी हुआ है। मुझे विश्वास है कि इस संबंध में जिलाधिकारी महोदय विशेष रूचि लेने और इसे अंतिम परिणिति तक पहुचाने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर जिले की जनता की आशाओं को पूरा करने का दायित्व पूरा करेगे। इस समस्या का अंतिम समाधान यही है कि उटंगन नदी पर स्लूस गेट युक्त बांध बनाया जाये जिससे इस अंचल में कृषि के साथ-साथ पीने के पानी की दशकों पुरानी समस्या का स्थायी समाधान हो सके। यदि ऐसा हुआ तभी जनता राहत की सांस ले सकेगी।
मेरा मानना है कि जरूरत है विलुप्त हो चुके प्राकृतिक जल संसाधनों को पुनर्जीवित करने की और तालाब, पोखर समेत पारंपरिक जल स्रोतों को बचाने की। फिर सरकारी संस्थाओं, निजी प्रतिष्ठानों, आवासीय समितियों व नागरिकों द्वारा वर्षा जल संचयन के उपायों को अनिवार्य किए जाने और जल की बर्बादी पर अंकुश से जल संकट में काफी हद तक राहत मिल सकती है। इस हेतु जनजागरण बेहद जरूरी है।
यह जगजाहिर है कि जल का हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह भी कि जल संकट से एक ओर कृषि उत्पादकता प्रभावित हो रही है, वहीं दूसरी ओर जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है। आखिरकार इस वैश्विक समस्या के लिए जिम्मेदार कौन है? जाहिर है इसके पीछे मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं जिसमें कहीं न कहीं उसके लोभ, स्वार्थ और भौतिकवादी जीवनशैली की अहम भूमिका है।। वैश्विक स्तर पर देखें तो अभी तक यह स्थिति थी कि दुनिया में दो अरब लोगों को यानी 26 फीसदी आबादी को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं था। पूरी दुनिया में 43.6 करोड़ और भारत में 13.38 करोड़ बच्चों के पास हर दिन की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। फिर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते हालात और खराब होने की आशंका है। दुनिया में वह शीर्ष 10 देश जहां के बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं, उसमें भारत शीर्ष पर है जिसके 13.38 फीसदी बच्चे पर्याप्त पानी से महरूम हैं। जल संकट के लिए दुनिया में अति संवेदनशील माने जाने वाले 37 देशों की सूची में भारत भी शामिल हैं। यह सबसे चिंतनीय है। यूनीसेफ की मानें तो 2050 तक भारत में मौजूद जल का 40 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका होगा। यही चिंता का विषय है कि तब क्या होगा ?
आज इस पत्रकार सम्मेलन में मौजूद पत्रकार भाइयों का हार्दिक वंदन, अभिनंदन और नमन। मेरी आप सभी से आशा है कि आप हिन्दी पत्रकारिता के जनक रहे भारतेन्दु हरिश्चंद, पत्रकारिता के शीर्ष पुरुष गणेश शंकर विद्यार्थी और माधवराव सप्रे बनो, चाटुकार पत्रकारिता का अनुसरण मत करो, निर्भीक बनो और समस्यओं को साहस के साथ प्रशासन और जनता के सामने उजागर करो। याद रखो इतिहास चाटुकारों का नहीं, हमेशा वीरों, निर्भीक और साहसी व्यक्तियों का होता है। आप अपने राष्ट्रीय नेतृत्व से प्रेरणा लें और उनका अनुसरण करें।इस आशा और विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं और आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं। जय भारत, जय जगत। भारत माता की जय।