द्रमुक की अलगाववाद और स्वायतत्ता में अंतर करने की कोशिश

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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उत्तर भारत में आमतौर पर यह धारणा है कि दक्षिण के प्रदेश तमिलनाडु के अधिकतर क्षेत्रीय दल, विशेषकर वर्तमान में सत्तारूढ़ द्रमुक, देश से अलग हो कर अपना पृथक देश द्रविड़ नाडु बनाना चाहते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि ये दल यह मान कर चलते है केन्द्र इस राज्य में कई ऐसी बातों को थोपना चाहता है जो यहाँ के लोग नहीं चाहते। इनमें से प्रमुख हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना है। इस बात को लेकर लगभग सभी द्रविड़ क्षेत्रीय दल एक मत से है कि वे यहाँ हिंदी को किसी भी तरह से स्वीकार नहीं करेंगे . इसी के चलते कांग्रेस और बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दल कई दशकों से यहाँ हाशिये पर चले आ रहे है।
लेकिन द्रमुक सहित सभी क्षेत्रीय दलों का कहना है वे किसी भी तरह भारत से अलग होने के पक्षधर नहीं है। संविधान के अनुसार भारत एक संघीय देश है जहाँ केंद्र और राज्य के विषयों और अधिकारों का स्पष्ट बंटवारा किया गया है.कुछ विषय समवर्ती सूची में हैं.यानि कुछ विषय ऐसे है जिनके बारे में दोनों ही समान अधिकार रखते है .इनमें एक विषय शिक्षा है। इन दलों का मानना है कि धीरे धीरे केंद्र राज्यों के अधिकारों को कम कर रहा है तथा इन पर अपनी बातें थोपना चाहता है। उनका कहना है कि अगर राज्य, विशेषकर तमिलनाड, इसका विरोध करता है, तो ऐसे दलों, जिनमें द्रमुक प्रमुख है,को अलगाव वादी घोषित कर दिया जाता है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जब भी देश में कोई संकट या आपदा आई तमिलनाडु ने अन्य राज्यों के तरह केंद्र का यानि देश का पूरा साथ दिया।
हाल के भारत – पाकिस्तान के बीच चार दिन की लड़ाई में द्रमुक के नेताओं ने पूरे दिल से यह कहा कि देश के अन्य राज्य की तरह तमिलनाडु पूरी तरह से देश और सरकार के साथ है। बीजेपी जब देश तिरंगा दिवस मनाने की तैयारी कर रही थी उससे पहले तमिलनाडु के सत्तारूढ़ दल द्रमुक ने राज्य की राजधानी चेन्नई में एक विशाल रैली आयोजित की। इसका नेतृत्व स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री एम् के स्टालिन ने किया। उन्होंने न केवल झंडा लहरा कर रैली को शुरू बल्कि खुद हाथ में देश का तिरंगा लेकर लगभग चार किलोमीटर पूरे मार्ग तक इसकी अगुयाई की। इस संकट काल में शायद तमिलनाडु पहला राज्य था जिसने सेना का हौसला बढाने के लिए इस तरह की रैली का आयोजन किया। राज्य तथा राजधानी के लोगों ने इसमें बड़ी संख्या में भाग लिया। ऐसा लगता ही नहीं था कि यह आयोजन उस पार्टी ने किया है जिसकी हर मुद्दे पर केंद्र की वर्तमान सरकार से टकराव है। पिछले कुछ समय से राज्य के राज्यपाल आर एन रवि और राज्य सरकार में ठनी हुई। लेकिन इस रैली को लेकर राज्यपाल ने द्रमुक के नेताओं की खुल कर प्रशंसा की।
द्रविड़ दलों की केंद्र की सरकार, चाहे वह किसी दल की रही हो, टकराव लगभग 6 दशक पुराना है जब राज्य में कांग्रेस का राजनीतिक कद छोटा होना शुरू हुआ था पहले डी. के. तथा बाद में इसके टूटने से बनी द्रमुक सत्ता में आई। इनकी मांग यह थी कि संघीय ढांचे में बदलाव कर राज्यों को और अधिकार यानि या स्वायतता दी जाये। उस समय राज्य के मुख्यमंत्री और द्रमुक के सुप्रीमो एम् करुणानिधि ने 1969 राजामन्नार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसका काम यह तय करना था कि केंद्र किस प्रकार के अधिकार राज्य को दे सकता है। इस समिति की रिपोर्ट 1971 सामने आई। इसकी सिफारिशों में कहा गया था कि केंद्र और राज्य की सरकारों में विषयों और अधिकारों का बंटवारा संतुलित नहीं हैराज्यों को कम अधिकार दिए गए है। इसके साथ ही केंद्र लगातार राज्य के अधिकारों में दखल दे रहा है. कुछ राजनीतिक हलकों में यह कहा गया कि समिति की रिपोर्ट यह आभास देती है कि तमिलनाडु स्वायतत्ता नहीं बल्कि स्वतंत्रता चाहता है। लेकिन केंद्र ने इस रिपोर्ट को गंभीरता से नहीं लिया।
राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री स्टालिन, जो करुणानिधि के बेटे हैं, ने कुछ समय पहले जस्टिस कुरियन जोसेफ के नेतृत्व में एक बार फिर नई समिति का गठन किया जिसको केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारों की समीक्षा करने के लिए कहा गया है। इस समिति की रिपोर्ट कब आयेगी यह अभी नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है द्रमुक इस समिति की रिपोर्ट को लेकर विधानसभा चुनावों में, जो अगले साल के शुरू में होने हैं ,उतरना चाहती है ताकि वह केंद्र और राज्य में टकराव एक बड़ा मुद्दा बना सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

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