स्वच्छता की पहल : राम भरोस मीणा

लेखक : राम भरोस मीणा

प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद्
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Email : lpsvikassansthan@gmail.com
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स्वच्छता अभियान भारत को स्वच्छ बनायेगा, यह सोचकर सोच बनाईं थी।
पहले स्वयं व्यक्ति स्वच्छ बनें, फिर आंगन ओर गलियारों को स्वच्छ बनायेगा, यह सोचकर सोच बनाईं थी।
रसोई ड्राइंग रूम से ज्यादा स्वच्छ सुंदर शौचालय वो रख पाएगा, यह सोचकर सोच बनाईं थी।
अपने अन्दर की स्वच्छता पहली कमाई थी, गलियारों को करेगा स्वयं साफ़,यह सोचकर सोच बनाईं थी।
ना स्वयं गन्दा होगा ना वो गंदगी फैलायेगा, मौहल्ले गलियारों को स्वच्छ बनाने में आगे वो आयेगा, यह सोचकर सोच बनाईं थी।
स्वच्छता को अपने आचरण में अपनायेगा ओर बदलाव कों आदत में डालेगा, यह सोच कर सोच बनाईं थी।
बेहतर होगी सा़फ सफाई नहीं पांव गंदगी के पड़ पाएंगे, भारत से हर रोग छू-मंतर हो जायेंगे, यह सोचकर सोच बनाईं थी।
नदियों नालों को जोहड़ तालाबों को रख साफ़ हम अपनी सभ्यताओं को बचा पायेंगे ना कचरा उनमें डलवायेंगे, यह सोचकर सोच बनाईं थी।
वर्तमान परिस्थितियों –
पड़ रहा उल्टा यहां हर कोई शिकायत करता है, अपनी आदतों में ना कोई परिवर्तन करता है।
कर इकट्ठा कचरा सारे वो नदी नालों में में डलवाते हैं, जोहड़ तालाबों कों जड़ से मिटवाते हैं।
स्वयं साफ़ सुथरे रहते घर के बहार कुंडा फैलाते हैं, स्वयं के सोचालय कों भी दुसरो से साफ़ कराते हैं।
गुटका जयंती पान प्राग बीड़ी सिगरेट तंबाकू वो खाते हैं घर मंदिर आफिस दुकान के कोने को कुंडा पात्र बनाते हैं।
सब्जी लेने जाते बैंग नहीं लाते वो पांच दस थैली लटका ले जाते हैं, याद आईं ननिहालों की फ़िर वो पिज्जा बर्गर बिस्कुट टाफी लें जातें हैं, श्याम होने तक दस किलो कचरा फैलाते हैं।
दो पांच हों एक जगह बस बातें सफ़ाई की करते हैं आम आदमी से ज्यादा नालों में कचरा वो भरते हैं।
रोज छपते अखबारों में ये कचरे के ढेर है नहीं छपते वो जो रास्तों में कचरा कों फैंकते हैं।
छापों अगर छापना है प्यारो उन्हे जो स्वच्छता के दूश्मन इस देश में है।
गांधी जी यूंही बापू नहीं बन पाये, आदर्श उनके अनमोल विचार थे जो रहा साथ उनकी वो बन बैठे महान थे।
स्वच्छता सुंदरता शुद्धता के गाते वो गीत थें, बापू गलियारों मौहल्लों गांवों शहरों में करते सफाई वो अपने हाथों स्वच्छता के वो पीर थे।

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