
लेखक : लोकपाल सेठी
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक है)
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हमारे देश में राजनीतिक सभाएं और रैलियां करने का इतिहास पुराना है . इस तरह के आयोजन के लिए स्थानीय प्रशासन की अनुमति जरूरी होती है, जो सामान्य तौर पर मिल जाती है। लेकिन पुलिस और प्रशासन इस बात पर कम ही गौर करता है कि जिस मैदान में सभा करने के अनुमति दी जा रही है उसकी क्षमता कितनी है तथा सभा में कितनी भीड़ आयेगी. तमिलनाडु में अगले साल शुरू में विधानसभा चुनाव होने है। इसको लेकर सभी राजनीतिक दलों ने सभायों का आयोजन करना शुरू कर दिया है।
इसी सिलसिले में तमिलनाडु के करूर शहर में तमिलगा वेत्री कड़गम (टी.वी के.) ने पिछले दिनों एक रैली का आयोजना किया था। इसके लिए पुराने शहर के भीतर एक मैदान में सभा करने की अनुमति ले ली गई थी। इस मैदान की क्षमता केवल कुछ हज़ार है। आयोजकों को भी पता नहीं था कि इसमें कितने लोग आएंगे। सभा का समय दोपहर के आस पास रखा गया था। लेकिन लोग इस मैदान में सवेरे 9 बजे से ही पहुँचाना शुरू हो गए थे। बताया जाता है कि यह भीड़ 25 हज़ार से भी अधिक हो चुकी थी। इसके बाद जो हुआ वह बहुत भयावह था।
इस पार्टी के संस्थापक विजय,जो तमिल सिनेमा के एक बहुत अभिनेता है, एक साल पहले यह घोषणा की थी कि वे राजनीति प्रवेश करने की तैयारी कर रहे है. कुछ दिनों बाद उन्होंने इस पार्टी की विधिवत घोषणा भी कर दी। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी जनता को एक नया विकल्प देगी। राज्य में इस समय सारी राजनीति दो धुरों में बंटी हुई है। एक तरफ द्रमुक नीत गठबंधन है जिसमें कुछ छोटे दलों के अलावा कांग्रेस भी शामिल है। दूसरा गंठबंधन अन्नाद्रमुक के नेतृत्व में काम कर रहा है। इसमें बीजेपी सहित कई अन्य क्षेत्रीय दल शामिल है। टी.वी.के. इन दोनों का विकल्प देना चाहती है। 2021 के चुनावों में द्रमुक और उनके सहयोगी दल सत्ता में आये थे तथा द्रमुक के मुखिया एम् .के. स्टालिन राज्य के मुख्यमंत्री बने।
यहाँ यह बताना समीचीन होगा कि राज्य की राजनीति में दशकों से फिल्म उद्योग का दबदबा रहा है, द्रमुक के पहले और बड़े नेता अन्नादुरई फिल्म उद्योग से जुड़े हुए थे। उनके समय एम् जी रामचद्रंन एक बड़े नेता के रूप में सामने आये। वे लम्बे समय तक दक्षिण भाषी फिल्मों पर छाये रहे। एक समय पार्टी में मतभेद शुरू हो गए। रामचंद्रन, जिन्हें एम्. जी. आर के नाम से जाना जाता है, समर्थकों ने पार्टी में विभाजन के बाद उन्होंने अपना अलग दल अन्नाद्रमुक बना लिया। उधर मूल द्रमुक के नेता करुणानिधी बने। वे राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे। वे भी लम्बे समय तक फिल्म उद्योग से जुड़े रहे थे। उधर रामचंद्रन के स्वर्गवास के बाद अन्नाद्रमुक पार्टी की बागडोर जयललिता के हाथ में आ गई , जो कभी एक बड़ी अभिनेत्री थी। आगे चल कर वे मुख्यमंत्री भी बनी। लम्बे समय तक दोनों दल बारी बारी से सत्ता में आते रहे। करूणानिधि के स्वर्गवास के बाद उनके बेटे स्टालिन को पार्टी की कमान मिली।
विजय, जिनका पूरा नाम विजय जोसफ है, के पिता तमिल फिल्मों के एक जाने माने निदेशक थे। अपने बेटे की लोकप्रियता को देखते हुए चाहते थे कि वह राजनीति में जाये। लेकिन तब वे इसके लिए तैयार नहीं थे। आखिर एक वर्ष पूर्व उन्होंने अपनी पार्टी बना ही ली। पिछले एक साल से उनकी बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित की जा रही थी।
करूर रैली का आयोजन भी सिलसिले में किया गया था। रैली का मुख्य आकर्षण खुद विजय ही थे। एक अभिनेता के रूप में उनकी उनके चाहने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। हर शहर और कस्बे में उनके फैन क्लब है. उनके पास अपार सम्पति बताई जाती हैं। पिछले साल जब पार्टी को शुरू की गई तो उस रैली पर करोड़ों रूपये खर्च किये गए थे इसमें कई लाखों की भीड़ जुटी थी
फिर वापिस लौटते हैं करूर के सभा पर जिसमें हुई भगदड़ में 40 लोग मारे गए और 60 से अधिक घायल हुए। करूर, जो जिला मुख्यालय है, की आबादी लगभग 4 लाख है। यह एक बहुत पुराना शहर है और इसका विस्तार हो रहा है। यहाँ बड़ी सभाएं शहर से बहार की जाती हैं। लेकिन राजनीतिक दल शहर के बीचों बीच एक छोटे मैदान में सभाएं आयोजित करने को प्राथमिकता देते है। यहीं अपनी सभा में विजय दोपहर की बजाये शाम के पांच बजे पहुंचे। उनकी झलक पाने के लिए होड़ से लग गई जिससे भगदड़ शुरू हो गई। पुलिस बल समुचित नहीं था जिससे भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सका। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)