विधायकों के झूंठे आश्वासन के कारण सांभर में नहीं खुला ए.डी.एम. का दफ्तर

शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील। उप जिला सांभर मुख्यालय पर करीब 40 साल से विधायकों के झूंठे आश्वासन के कारण ही एडीएम कार्यालय नहीं खुल सका है। इस महत्वपूर्ण कमी का सबसे बड़ा नुकसान क्षेत्र के लोगों को हो रहा है और इसकी पीड़ा यहां का बार एसोसिएशन लगातार सरकार के समक्ष उठाता आ रहा है। इसकी मुख्य वजह मोटे तौर पर जो सामने आई है और बताया जा रहा है कि इसका कारण यहां के दोनों दलों के राजनेताओं की लोकल लीडरशिप पूरी तरह से समाप्त हो गई है या फिर उनकी इच्छा शक्ति पूरी तरह से मर गई है। प्रयास किए होते तो ऐसा नहीं है की इन चार दशकों में सरकार इस पर को विचार नहीं करती, लेकिन सरकार को भी विधायक और लोकल लीडरशिप करने वाले राजनेताओं का एक ऐसा कुनबा चाहिए जो बाद में क्षेत्र की जनता पर यह मानसिक दबाव बना सके की देखो हमारी सरकार के कार्यकाल में हमने एडीएम का दफ्तर खुलवा दिया और आगमी चुनाव में उस पार्टी को लाभ भी मिल सके। विधानसभा क्षेत्र के लोगों का चाहे नुकसान हो जाए लेकिन सरकार को राजनीतिक फायदा मिले बिना वह कोई काम करना नहीं चाहती है, यही कारण है कि एडीएम का दफ्तर जो सांभर में खुलना चाहिए था निवर्तमान सरकार ने अपने फायदे के लिए दूदू में खुलवा दिया। यद्यपि सांभर उपखंड मुख्यालय पर अपर जिला कलेक्टर के कार्यालय को खुलवाने के लिए वर्ष 1984 में क्षेत्र के पक्षकारों को राहत एवं न्यायिक कार्य में सहूलियत प्रदान करने के उद्देश्य से विकल्प के तौर पर कोर्ट कैंप के आदेश प्रसारित किए थे, लेकिन बाद में इस व्यवस्था को भी समाप्त कर दिया गया और विगत 4 दशकों से राजस्व मुकदमों की सुनवाई एवं उसकी अपील के लिए क्षेत्र के पक्षकारों को अपने वकीलों के माध्यम से जिला कार्यालय जयपुर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि सांभर ए.डी.एम. कार्यालय नहीं होने की वजह से मुकदमों में अनावश्यक विलंब हो रहा है तथा लोगों को सही समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है। अभी तक भी सरकार ने सांभर उपखंड मुख्यालय पर एडीएम के दफ्तर को खुलवाने के लिए कोई संकेत नहीं दिए हैं। यह बताना जरूरी है कि बार एसोसिएशन को अब तक आम जनता की ओर से मिले समर्थन के बावजूद भाजपा और कांग्रेस के सक्षम राजनेता चार दशकों से एडीएम का दफ्तर खुलवाने में कमजोर ही साबित हो रहे है जिसका सबसे बड़ा नुकसान पक्षकारों के साथ-साथ वकीलों को भी उठाना पड़ रहा है।

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