
जाफर लोहानी की रिपोर्ट
daylifenews.in
मनोहरपुर (जयपुर)। दुर्गा पूजा व दशहरा समाप्ति के साथ ही कुम्हार (प्रजापति) समुदाय के लोग ज्योतिपर्व दीपावली के नजदीक आते ही मिट्टी के दीये बनाने के अपने पुश्तैनी धंधे में जुट गये है।
पारंपरिक युवा व्यवसायी व समाजसेवी जमवारामगढ़ (जयपुर) के ताला निवासी राकेश प्रजापत ने बताया की तीन दशक पूर्व यह व्यवसाय उनकी आजीविका का एक मात्र साधन हुआ करता था।
लोग धनतेरस,दीपावली के दिन अपने घरों,खेत-खलिहानों आदि स्थानों पर जलाने के लिये पर्याप्त मात्रा में दीये का उपयोग करते थे। साथ ही व्यवसायी वर्ग अपने अपने कारोबार की उन्नति के लिए धनतेरस एवं दीपावली को गणेश पूजन करते है। इससे उनके परिवार का भरण पोषण हो जाता था। बाद के वर्षों में मोमबत्ती,चीनी बल्बों की भरमार एवं उसके बेहिसाब चलन बढ़ने से उनके इस व्यवसाय को ग्रहण लग गया। जिस कारण लोग मिट्टी के दीये का उपयोग सिर्फ रस्म निभाने के लिए करने लगे। इससे कुम्हार जाति के अधिकांश परिवार इस व्यवसाय को छोड़ परदेश कमाने व दूसरे कामों में लग गए। ताकि उससे कुछ पैसे अर्जित कर परिवार का भरण पोषण कर सके। बताया कि बीते चार-पांच वर्षों से भारत-चीन के रिश्ते में खटास व संबंध बिगड़ने व चीनी सामान पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकल एवं वोकल की अपील व पर्यावरण संरक्षण अभियान से उम्मीद जगी है। अन्य वर्षो की तुलना में इस बार दीये का आर्डर अच्छा खासा बाजार से आया है। लोगों में इसके प्रति रुचि जगने लगी है। इस वजह से उनमें भी जीविकोपार्जन को लेकर उम्मीद की किरण नजर आने लगी है। कुम्हार जाति के लोगों की मानें तो सरकार यदि कुम्हारों के इस कला प्रतिभा, मूर्ति निर्माण आदि को प्रोत्साहित कर इसके व्यवसाय के लिए सहयोग एवं बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में ठोस पहल करे तो दम तोड़ रहे इस प्रदूषण रहित पारंपरिक व्यवसाय को जीवनदान मिल सकता है। व्यवसाय से जुड़े परिवार अपनी माली हालत में सुधार लाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।