हठधर्मिता प्रकृति और मानव दोनों के लिए घातक : राम भरोस मीणा

लेखक:- राम भरोस मीणा
प्रकृति प्रेमी व स्वतंत्र लेखक हैं।
Mobile – 7727929789
Email – lpsvikassansthan@gmail.com
www.daylifenews.in
” हिमालयी क्षेत्रों में विकास प्रकृति के अनुकूल हो, ज्यादा छेड़ छाड़ प्रकृति से बर्दास्त नहीं हो सकती “।
” प्रकृति से खिलवाड़ मानव की हठधर्मिता को बयां करता है, यदि अपने विकास की नितियों में बदलाव नहीं किया तो उसे एक भयंकर त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है “।
अगस्त महा में मौसम में बदलाव से एक तरफ़ देश में बाढ़ के हालात पैदा होने से जन जीवन प्रभावित हो रहा है, दुसरी तरफ हिमालयी क्षेत्र में फ्लैश फ्लड, क्लाउड बर्स्ट, भूस्खलन जैसे हालातों में सैकड़ों लोग जान गंवा चुके, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान राज्यो में बाढ़ ने सब चोपट कर दिया, आखिर यह सब प्रकृति का प्रकोप या मानव की हठधर्मिता से हुऐ प्राकृतिक संसाधनों के साथ छेड़छाड़ से उपजी त्रासदी। त्रासदी तो है ही चाहें मानव की हठधर्मिता, अनैतिक विकास, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ या बदलते पारिस्थितिकी सिस्टम से उपजी हों, खैर जो भी हो, इंसान का हाथ जरुर काम कर रहा है, नकार नहीं जा सकता, लेकिन जिम्मेदारी प्रकृति को ही लेनी पड़ेगी, व्यक्ति स्वार्थी है छेड़छाड़ करेगा और अंतिम विनाश तक करता रहेगा, उसे विकास चाहिए, विकास भी पर्वतीय क्षेत्रों, नदियों के बहाव क्षेत्रों, समुंदरी क्षेत्रों, जोहड़ तथा झील भराव वाले क्षेत्रों में जहां हम प्राकृति प्रदत संसाधनों का आसानी से इस्तेमाल, शोषण कर सकें।
अब बात हम धराली गांव, कल्लू की सेज घाटी में फटे बादलों, मणिमहेश यात्रा में उपजे अवरोध , थराली – धराली से किश्तवाड़ तक फटे बादलों, जम्मू के कटड़ा अर्धकुंवारी में हादसे, रावी नदी में आएं उफ़ान से करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के डुबने या फिर राजस्थान के सवाईमाधोपुर करौली क्षेत्रों में हुई तबाही की हो। अब सोचना चाहिए कि तबाही हुई, आखिर क्यों हुई ? कहीं विकास का सहयोग नहीं रहा ? बस यही समझना होगा।
हिमालय सब पर्वत मालाओं से नया पर्वत है, कठोरता नहीं है, मिट्टी की पकड़ सही नहीं है, एकदम ऊंची ऊंची चोटियां जहां इंसान क्या जानवरों के पांव फिसल जातें, उस भुमि पर चौड़ी सड़कों का निर्माण, बहुमंजिली इमारतों का निर्माण, नालों को अवरूद्ध करने जैसे कार्यों के होने, पंजाब जैसे मैदानी क्षेत्रों में नदी समान नहरों का निर्माण, महानदियों के उपर बांध, पानी रोको परियोजनाओं का निर्माण, राजस्थान में बिहड़ जंगलों का समतलीकरण, ऊंचे पहाड़ समान सड़कों का निर्माण, बगैर प्लानिंग के शहरों का निर्माण करने से स्वाभाविक हल्की भारी बारिश में बाढ़ के हालात पैदा नहीं होंगे तो क्या होगा। प्रकृति ने पिछले तीन दशकों में कहीं सूद ली है। अपने रास्ते भुल चुके नदी नाले पुनः वहीं से बहना चाहेंगे, अपने बगैर प्लानिंग के आबाद शहरों, कस्बों, गांवों, ढाणीयों कों महसूस कराएंगे की यहां झील भराव क्षेत्र था, नदी थी, नाला था, रेत के टीले थें, जानवरों का आवासीय क्षेत्र था। यदि फिर भी नहीं मानता तो समझिए यह “अभी तो ट्रेलर, फिल्म बाकी” है। जब प्रकृति अपने पर आयेगी तब प्रलय के सिवाय कुछ नहीं बचेगा। इसलिए हम उसे मजबुर ना करें कि वह अपने आक्रामक तेवरों के साथ बदलता लेने को उतारूं हों।
प्रकृति ने जो बनाया उसे हम सहजता से, नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उपयोग करें, जितना आवश्यक हो उतना काम लें, उन सभी संसाधनों का उपयोग सीमित करें, जिनके उपभोग से प्राकृतिक असंतुलन होने की आशंकाएं ज्यादा हों, दुसरी तरफ हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते ट्यूरिज्म को रोका जाए, पहाड़ी क्षेत्र में सड़कों का निर्माण केवल राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्थाओं के लिए जहां आवश्यकता हो वहीं किया जाए, गांव शहरों को प्रकृति के अनुकूल बढ़ावा दिया जाए जिससे अनावश्यक जन हानि से बचा जा सके, नदी नालों के साथ छेड़छाड़ नहीं हो अन्यथा वह समय दुर नहीं जों व्यक्ति को एक बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ेगा और जों पाया वह खोना पड़े। (लेखक के अपने निजी विचार है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *