मल्लिकार्जुन खरगे के कर्नाटक के राजनीति में लौटने के सुगबुगाहट

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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कम से कम दो बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री का पद पाने से चूके कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के फिर वापिस अपने इस राज्य की राजनीति में लौटने के सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इसकी वजह यह है कि पिछले दो सालों से राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारामिया तथा उप मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच लड़ाई रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। शिवकुमार मुख्यमंत्री जल्दी से जल्दी इस पद को पाने लिए कोई कसर नहीं छोड़ नहीं रहे है। उधर राज्य के दूसरी बने मुख्यमंत्री बने सिद्धारामिया यह पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं। वे हर हाल में अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करना चाहते है।
राज्य के इन दोनों बड़े नेताओं की रोजाना की लड़ाई से तंग हो होकर पार्टी के पूर्व अध्यक्ष तथा वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी ने पिछले दिनों न केवल इन दोनों नेताओं को बल्कि अन्य सीनियर नेताओं को दिल्ली में बुलाकर समझाया बल्कि डांट तक दिया कि वे रोज रोज के इस झगड़े को सार्वजानिक रूप से सामने लाना बंद करें क्योंकि इससे पार्टी की छवि लगातार ख़राब होती जा रही है। राहुल गाँधी का यह भी कहना था कि अगर इन दोनों नेताओं के झगडे बंद नहीं हुए तो पार्टी हाई कमान किसी तीसरे नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की सोच सकती है। जल्दी ही पार्टी के हलकों में यह बात फ़ैल गई कि पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को वापिस राज्य की राजनीति भेजा जा सकता है। हालाँकि इस बाद शिवकुमार ने मुख्यमंत्री पद के अपने दावे पर कोई बात नहीं कही लेकिन सिद्धारामिया ने फिर दोहराया कि वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे।
अगर डेढ़ दशक की राज्य की राजनीति को देखा जाये तो खरगे दो बार मुख्यमंत्री का पद पाने से चूक चुके है। 2013 में जब कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो खरगे मुख्यमंत्री पद सबसे बड़े दावेदार थे। वे पार्टी का बड़ा चेहरा थे तथा दलित समुदाय से आते है। उन्होंने बहुत पहले ही बौद्ध धर्म अपना लिया था। लेकिन यह पद सिद्धारामिया को मिला जो अन्य पिछड़ा वर्ग से आते है। यह वर्ग राज्य की कुल आबादी का लगभग 60 प्रतिशत है। चूँकि खरगे राज्य में पार्टी के बड़े नेता थे इसलिए उनको दिल्ली में लाकर मनमोहन सिंह सरकार में रेल मंत्री बना दिया। तब से वे राज्य के राजनीति से दूर होते गए। 2014 में जब कांग्रेस पार्टी लोकसभा का चुनाव हार गई तो खरगे को सदन में पार्टी का नेता बना दिया गया। हालाँकि वे कर्नाटक से आते है लेकिन कन्नड़ के अलावा तेलुगु और मराठी भी बोल सकते है। उनकी हिंदी इतनी अच्छी है कि जब वे हिंदी बोलते में हैं तो कोई नहीं कह सकता कि गैर हिंदी इलाके के है।
2023 में जब कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में फिर सत्ता में आई तो तब खरगे राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे तथा उनको पार्टी का अध्यक्ष भी निर्वाचित का लिया गया था। वे एक ही समय राज्यसभा में पार्टी के नेता और पार्टी के अध्यक्ष भी थे। इसलिए उनके राज्य के मुख्यमंत्री बनने के संभावना के बराबर थी। हालाँकि वे वापिस कर्नाटक लौटना चाहते थे लेकिन पार्टी हाई कमान इससे सहमत नहीं थी। उस समय शिवकुमार, जो उस समय राज्य पार्टी के अध्यक्ष थे, मुख्यमंत्री पद के बदे दावेदार थे। राज्य पार्टी के नेता यह मान कर चलते है कि पार्टी को सत्ता में लेन में शिवकुमार की बड़ी भूमिका थी। लेकिन पार्टी हाई कमान एक बार फिर सिद्धारामिया को ही मुख्यमंत्री बनाना तय किया। शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। यह भी तय हुआ के वे लोकसभा चुनाव तक राज्य पार्टी के अध्यक्ष भी बने रहेंगे।
ऐसा माना जाता है कि जब सिद्धारामिया को मुख्यमंत्री बनाया गया तो उनको यह कह दिया गया था कि ढाई साल बाद वे मुख्यमंत्री का पद शिवकुमार को सौंप देंगे। ढाई साल का यह काल दिसम्बर में ख़त्म हो रहा है। हालाँकि सिद्धारामिया के समर्थक यह कहते है कि ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ था। इसलिये पिछले कुछ महीनों से शिवकुमार और उनके समर्थक पार्टी हाई कमान पर यह दवाब बनाया रहे है कि अब समय आ गया है कि शिवकुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी जाये।
पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है इतने ऊँचे पदों पर रहने के बाद खरगे राज्य की राजनीति में आकर मुख्यमंत्री का पदपा ने की गलती नहीं करेंगे। खरगे के पुत्र प्रियंक खरगे इस समय राज्य सरकार में मंत्री है। वे राज्य पार्टी के महासचिव भी रहे चुके है। इसलिए मल्लिकार्जुन खुद मुख्यमंत्री बनने की बजाये अपने बेटे का नाम इस पद के लिए आगे बढ़ा सकते है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

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