

लेखक : डॉ कमलेश मीना
सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र जयपुर राजस्थान। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र जयपुर, 70/80 पटेल मार्ग, मानसरोवर, जयपुर, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।
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‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष, ‘वंदे मातरम्’ की भावना और भारत के इतिहास में इसकी अद्वितीय भूमिका का जश्न मनाने के लिए एक राष्ट्रीय स्मारक पहल है। ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं है; यह भारत की सामूहिक चेतना है और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों का नारा था। भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’, जिसे बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने रचा था, ऐसा माना जाता है कि यह 7 नवंबर, 1875 को अक्षय नवमी के दिन लिखा गया था।
1 अक्टूबर को, मंत्रिमंडल ने ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर देशव्यापी समारोहों को मंजूरी दी ताकि नागरिकों, विशेषकर हमारे युवाओं और छात्रों को इस गीत की मौलिक, क्रांतिकारी भावना से जोड़ने के लिए एक प्रभावशाली आंदोलन को बढ़ावा दिया जा सके। ये समारोह इस शाश्वत संदेश का सम्मान करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि इसकी विरासत का पूरी तरह से जश्न मनाया जाए और यह अगली पीढ़ी के दिलों में समाहित हो। ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने पर देशभर में उत्सव मनाया जा रहा है। 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखे गए इस गीत ने भारत की आजादी की लड़ाई में अमर भूमिका निभाई। यह गीत आज भी मातृभूमि के प्रति समर्पण, एकता और स्वाभिमान का प्रतीक है।
भारत के इतिहास में कुछ तारीखें अमर हैं, जो देश की आजादी के लिए दिए गए संघर्षों और बलिदानों को जीवंत रखती हैं।
देश के राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ 7 नवंबर को अपने अस्तित्व के 150 वर्ष पूरे कर लिए। सात नवंबर 1875 को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखी गई यह रचना भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बन गई थी। यह गीत केवल एक कविता नहीं, बल्कि भारत की एकता, त्याग और मातृभूमि के प्रति अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। इसी गीत ने आजादी के संघर्ष में लाखों देशवासियों को नई ऊर्जा दी थी। आइए आज इस राष्ट्रीय गीत के 150 वर्ष पूरे होने पर इसके सफर पर एक नजर डालते हैं। ‘वंदे मातरम’ को पहली बार 1875 में बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित किया गया था। सन् 1882 में इसे बंकिम चंद्र की प्रसिद्ध कृति आनंदमठ में शामिल किया गया। वहीं, इस गीत को संगीत में ढालने का काम रवींद्रनाथ टैगोर ने किया। 1896 में कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में यह गीत पहली बार सार्वजनिक रूप से गाया गया। सात अगस्त 1905 को इसे पहली बार राजनीतिक नारे के रूप में इस्तेमाल किया गया, जब बंगाल विभाजन के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे थे।
कैसे बंगदर्शन पत्रिका में प्रकाशित एक गीत देश का राष्ट्रगीत बन गया। उपन्यास आनंदमठ में संन्यासियों का एक समूह ‘मां भारती’ की सेवा को अपना धर्म मानता है। उनके लिए ‘वंदे मातरम’ केवल गीत नहीं, बल्कि पूजा का प्रतीक है। उपन्यास में मां की तीन मूर्तियां भारत के तीन स्वरूपों को दर्शाती हैं। अतीत की गौरवशाली माता, वर्तमान की पीड़ित माता और भविष्य की पुनर्जीवित माता। इस पर अरविंदो ने लिखा है कि यह मां भीख का कटोरा नहीं, बल्कि सत्तर करोड़ हाथों में तलवार लिए भारत माता है। ‘इंकलाब जिंदाबाद’ से लेकर ‘भारत माता की जय’ तक, ये शब्द आज भी हर भारतीय को गर्व महसूस कराते हैं। इस कड़ी में, ‘वंदे मातरम’ का सबसे ऊपर है। यह वह गीत है, जिसे बंकिम चंद्र चटर्जी ने रचा और जिसे बाद में भारत के राष्ट्रीय गीत का दर्जा मिला। जिस समय भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन था, बंकिम चंद्र चटर्जी सरकारी सेवा में कार्यरत थे। इसी दौरान में, ब्रिटिश शासन ने एक ऐसा आदेश जारी किया जिसके तहत भारत में ‘गॉड सेव द क्वीन’ नामक विदेशी गीत गाना अनिवार्य कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार का यह अड़ियल फैसला बंकिम चंद्र चटर्जी को बिल्कुल स्वीकार नहीं था। उन्हें यह असहनीय लगा कि भारत की धरती पर एक विदेशी शासक के प्रशंसा में गीत गाया जाए। विरोध और राष्ट्रीय स्वाभिमान की इसी भावना ने बंकिम चंद्र को ‘वंदे मातरम’ गीत की रचना के लिए प्रेरित किया। ब्रिटिश हुकूमत के इस कदम से आहत होकर, उन्होंने यह निश्चय किया कि वे एक ऐसा गीत लिखेंगे जो सिर्फ भारत भूमि का गौरवगान करेगा। इस संकल्प को पूरा करते हुए, उन्होंने 7 नवंबर 1875 में ‘वंदे मातरम’ कविता की रचना की। देशप्रेम से ओत-प्रोत यह कविता सबसे पहले उनके विख्यात उपन्यास ‘आनंद मठ’ में प्रकाशित हुई। उनकी यह अमर रचना उस समय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल सेनानियों के लिए असीम शक्ति और प्रोत्साहन का स्रोत बन गई।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (1838-1894) बंगाल के महान साहित्यकार और विचारक थे। उन्होंने दुर्गेशनंदिनी, कपालकुंडला, देवी चौधरानी जैसी रचनाओं के माध्यम से समाज में स्वाभिमान और राष्ट्रप्रेम का भाव जगाया। वंदे मातरम के जरिए उन्होंने भारतीय जनमानस को यह सिखाया कि मातृभूमि ही सर्वोच्च देवी है। उनका यह गीत आधुनिक भारत के राष्ट्रवाद की वैचारिक नींव बन गया। 1905 के स्वदेशी आंदोलन में यह गीत आजादी का नारा बन गया। कोलकाता से लेकर लाहौर तक लोग सड़कों पर ‘वंदे मातरम’ के जयघोष से ब्रिटिश शासन को चुनौती देने लगे। बंगाल में बंदे मातरम एक समाज बना। इसमें रवींद्रनाथ टैगोर जैसे नेता भी शामिल हुए। ब्रिटिश सरकार ने जब स्कूलों और कॉलेजों में इस गीत पर रोक लगाई, तो विद्यार्थियों ने गिरफ्तारी और दंड की परवाह किए बिना इसे गाना जारी रखा। यही वह दौर था जब वंदे मातरम हर भारतीय के दिल की आवाज बन गया।
साल 1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ट में भीकाजी कामा ने जब पहली बार भारत का तिरंगा फहराया, तो उस पर वंदे मातरम लिखा था। इंग्लैंड में फांसी से पहले मदनलाल धींगरा के अंतिम शब्द थे ‘वंदे मातरम’। दक्षिण अफ्रीका में गोपालकृष्ण गोखले का स्वागत भी इसी गीत से किया गया। विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने भी इसे स्वतंत्रता का संदेश मानकर अपनाया। इन दिनों ये गीत हर उस भारतवासी के दिल में बस गया था, जो भारत को गुलामी की बेड़ियों से आजाद कराना चाहते थें।
1950 में संविधान सभा ने सर्वसम्मति से वंदे मातरम को भारत का राष्ट्रीय गीत घोषित किया। तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था वंदे मातरम ने स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, इसे ‘जन गण मन’ के समान सम्मान दिया जाएगा। इसके बाद से यह गीत देश के गौरव, एकता और राष्ट्रभावना का प्रतीक बन गया। वहीं, 150 साल बाद भी आज वंदे मातरम हर भारतीय के हृदय में गूंजता है। यह गीत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। यह हमें याद दिलाता है कि भारत की ताकत उसकी एकता और संस्कृति में है। इस अभियान का उद्देश्य नई पीढ़ी को यह संदेश देना है कि मातृभूमि की सेवा ही सच्ची देशभक्ति है।
इस गीत के शुरुआती दो पैरा संस्कृत भाषा में थे, जबकि बाकी की रचना बंगाली में की गई थी। इस गीत को सुर और ताल देने का श्रेय महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर को जाता है, जिन्होंने इसे सबसे पहले 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया था। बाद में, अरबिंदो घोष ने इसका अंग्रेजी अनुवाद किया और आरिफ मोहम्मद खान ने इसका उर्दू अनुवाद किया।
आजादी के बाद, 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ के साथ ही ‘वंदे मातरम’ को भी भारत के राष्ट्रीय गीत का सम्मानजनक दर्जा दिया गया। भारत सरकार के आधिकारिक जानकारी के अनुसार, राष्ट्रीय गीत का आदर और स्थान राष्ट्रगान के बिल्कुल समान ही माना जाता है।
ऐसा है हमारा राष्ट्री गीत-:
