लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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दक्षिण के राज्य आन्ध्र प्रदेश में दल बदल का इतिहास पुराना है। लेकिन इस राज्य में दल बदल देश के अन्य राज्यों से अलग है। सामने तौर पर जब किसी सत्तारूढ़ दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं होता तो इसके नेता विपक्षी दलों के विधायकों को तोड़ने की हरचंद कोशिश करते है, ताकि उनकी सरकार की स्थिरता बनी रहे। लेकिन इस राज्य में सत्तारूढ़ दल के पास बड़ा बहुमत होने के बावजूद विपक्ष के विधायक सत्तारूढ़ दल में जाने को लालायित रहते है। इसका एक ही मतलब निकाला जा सकता है कि ऐसे विधायक सत्ता पक्ष के साथ रह कर कुछ लाभ उठा सकें।
2014 में जब आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगाना बनाया गया तो विभाजित आन्ध्र प्रदेश में तेलुगु देशम पार्टी की सरकार थी। इसके पास स्पष्ट बहुमत था। उस समय राज्य का प्रमुख विपक्षी दल वाईएसआर कांग्रेस पार्टी थी जिसके पास 175 सदस्यों वाले सदन में 67 सदस्य थेम। यदयपि तेलुगु देशम पार्टी को और अधिक विधायकों की जरूरतनहीं थी। लेकिन वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के बहुत से विधायक सत्तारूढ़ दल में जाना चाहते। इस सरकार के अगले पांच सालों के दौरान 23 वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के विधायक सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए। चूँकि तेलुगु देशम पार्टी के कार्यकाल में बहुत अच्छे काम भी हुए थे इसलिए दल बदलने वाले विधायकों को यह उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें अगले चुनावों में अपना उम्मीदवार बनायेगी और वे चुनाव जीत भी जायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2019 के विधान चुनावों में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी भारी बहुमत से सरकार में आई। इसने कुल 175 सीटों में से 151 सीटों पर जीत दर्ज की। इतने बड़े बहुमत के बाद इस पार्टी को और विधायकों की जरूरत नहीं थी लेकिन इस बावजूद तेलुगु देशम पार्टी का दर्जन विधायक एक-एक करके सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए।
वाईएसआर कांग्रेस पार्ट के अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी 2019 चुनावों के बाद राज्य के मुख्यमंत्री बने। सरकार के पहले कुछ महीनो के बाद ही सरकार की छवि ख़राब होने लगी। राज्य की एक की बजाये तीन राजधानियाँ बनाने की उनकी जिद ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई। पार्टी के कई नेता इन बातों को लेकर उनसे नाराज होते चले गए। लेकिन फिर भी इस बात के संभावना बनी रही कि 2024 के विधानसभा चुनावों के बाद यही पार्टी फिर सत्ता में आ सकती है। लेकिन उधर तेलुगु देश पार्टी के सुप्रीमो और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडी ए में शामिल हो गये। एक स्थानीय दल जन सेना पार्टी के नेता पवन कल्याण भी एनडीए में आ गए। इससे सारी राजनीतिक बिसात ही बदल गई। चुनावो में एनडीए गठ्बंधन को 164 सीटें मिली वहीं वाईएस आर कांग्रेस केवल 11 तक सिमट गई। ऐसी स्थिति में एनडीए को और सदस्यों के समर्थन की जरूरत नहीं थी लेकिन इसके बावजूद वाई एस आर कांग्रेस पार्टी के 4 सदस्य सत्तारूढ़ दल के साथ हो गए हैं, हालाँकि दल बदल कानून से बचने के लिए वे अभी तक वे औपचारिक रूप से तेलुगु देशम पार्टी में शामिल नहीं हुए।
राज्य विधानसभा के चुनावों से पूर्व वाई एस आर कांग्रेस पार्टी के राज्य सभा में 11 सदस्य थे। लेकिन अब इनकी संख्या घटकर केवल 8 रह गई है। कारण इसके तीन सदस्यों ने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है। एनडीए की तरफ से उनको यह आश्वासन दिया गया कि उन्हें जल्दी ही इन सीटों के उप चुनावों के जरिये फिर से राज्यसभा का सदस्य बना दिया जायेगा इनमें से एक तो जगन मोहन रेड्डी का नज़दीकी रिश्तेदार भी है इसी प्रकार वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के चुने गए चार लोकसभा सदस्यों में एक या दो भी अपनी सदस्यता छोड़ने के तैयारी में है। हालाँकि इस समय संसद के दोनों सदनों में एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत है फिर वह चाहती है उन्हें और सदस्यों का समर्थन मिल जाये ताकि सरकार वक्फ बोर्ड तथा एक देश एक चुनाव जैसे कानूनों को संसद से आसानी से पास करवा सकें।
आन्ध्र प्रदेश के राजनीति के जानकारों का कहना है कि जगन मोहन रेड्डी के कामकाज करने के तौर तरीकों से उनकी पार्टी में बड़ा अंसतोष था। उनकी बहुत नज़दीक समझे वाले वलदे पार्टी के नेता इससे से नाखुश थे जिसके चलते पार्टी के कई नेता एक-एक करके पार्टी छोड़ते जा रहे है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)