दीपोत्सव का त्यौहार

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दिवाली का त्यौहार आया है। मन के आंगन में खुशियों की सौगात लाया है। भारतीय संस्कृति व परंपरागत मूल्यों के अनुसार मनाएं। खुशी अंतर मन से महसूस की जाती है। त्यौहार हमारी सद्भावना को बढ़ाते हैं अपने परंपरा के अनुसार अगर आप दिवाली मनाएंगे तो यह आपके दैनिक आचरण में समाहित हो जाएंगे। परंपरागत मूल्यों के अनुसार त्यौहार मनाने से सद्भाव, मेल मिलाप का भाव बनता है, हमेशा आपके मन में चिर स्थाई होगा। वही भाव प्राणी मात्र के लिए होगा। आपके मन को बेहद खुशी व संतोष प्रदान करेगा यही सद्भाव हमारे सामाजिक वातावरण को बदलेगा सद्भाव का वातावरण बनेगा। खुशियां आपके घर आंगन में 12 महीने दीपावली की तरह जगमग करेगी।
वर्तमान समय में दीपावली मनाने का आधुनिक तरीका न सिर्फ हमारे मूल्यों का पतन कर रहा है बल्कि आपसी मेल मिलाप भी कम हो रहा है तो हमारा दायित्व और बढ़ जाता है कि त्योहार को सादगी से मनाया ताकि जो आर्थिक विषमता अपने समाज में फैली हुई है उसका बेहूदा प्रदर्शन ना हो। अपने घरों की दहलीज को पीली मिट्टी से लीपे। सफेद चूने से माडने मांडे। प्लास्टिक के स्टीकर दिवाली की चमक को फीकी करते हैं। महालक्ष्मी भी इनसे प्रसन्न नहीं होती है। यह कृत्रिमता का प्रतीक है। मिट्टी से लीपे आंगन, मांडने व रंगोली आपके घरों की शोभा को प्राकृतिक आभा देंगे। अपने हाथों से बनाने पर जो खुशी मिलेगी उसका आनंद अलग ही होगा। मिट्टी के दीए जलाएं। मोमबत्ती और बिजली के बल्बों की रोशनी ना करें। पुराने जमाने में देसी घी के दिए जलाए जाते थे जिससे ऑक्सीजन उत्पन्न होती थी जो पर्यावरण को स्वच्छ व शुद्ध बना देते हैं। महंगाई के इस युग में देसी घी के दिये तो संभव नहीं है पर तेल के तो जलाये जा ही सकते हैं और इससे प्रजापत समाज को रोजगार भी मिलता है। त्योहार मन की प्रसन्नता के लिए होते हैं। भौतिकवाद की चकाचोंध में न खोए।
कुछ क्षण की खुशी के लिए आप पटाखे पर भी बेहिसाब पैसा खर्च करते हैं जो आपकी जेब पर भारी पड़ता है। लेकिन इससे पूरा वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है। अस्थमा के मरीजों को परेशानी होती है व्यक्तियों को हार्ट अटैक आ सकता है। तेज आवाज से बच्चे बहरे हो सकते हैं। दीपावली जैसे खूबसूरत त्यौहार को जहरीला बना देता है ध्वनि प्रदूषण से बेचैनी होती है। पटाखों पर खर्च करने के बजाय इन पैसों से गरीबों में मिठाई बांटे, चंद लम्हों की खुशियां उन्हें भी दें।विकलांगों को, नेत्रहीनों को दान दें ताकि आने वाली दीपावली पर वे भी अपनी आंखों से दिवाली की रोशनी देख सके। अपने हाथों से दिए सजा सके यह आत्मिक संतोष आपको आजीवन खुशी देगा।
अपने आसपास नजर डालें कुछ समय निकाले त्यौहार को पारिवारिक व व्यक्तिगत पर्व ना बनाएं। आपके आसपास ऐसे कई घर होंगे जब त्यौहार पर चूल्हा ही नहीं जला होगा, मिठाई भी नहीं होगी, दीपक नहीं जले होंगे। त्यौहार उनका भी मने, उनके घरों का चूल्हा भी जले, दीपक जले वे भी मिठाई खाएं ऐसा प्रयास हो आपका तभी लक्ष्मी प्रसन्न होगी। त्यौहारों के दिनों में मांग अत्यधिक होने से मिठाइयां मिलावटी मिलती है और पुरानी मिलती है काफी लंबे समय से ही मिठाईयां बननी शुरू हो जाती है। घर पर ही देसी मिठाइयां व नमकीन बनाएं थोड़ी सी सूझबूझ व मेहनत के साथ आपके हाथों की प्यार की मिलावट इसके स्वाद, को दुगना कर देगी। वह स्वास्थ्य को भी हानि नहीं पहुंचेगी।
डिजिटल युग है सोशल मीडिया और फोन पर बधाई का आदान-प्रदान न करें। “एक दूसरे के घर जाएं हार्दिक बधाई दें और घर आने का निमंत्रण दें”
आधुनिकता का प्रदर्शन ना करें। अनावश्यक उपहार का लेनदेन ना करें। यह हमारी आर्थिक विषमताओं को बढ़ाते हैं। वर्तमान समय में जो अराजकता, गरीबी अमारी का देश में माहौल है, अपने त्यौहार पर भाईचारे, एकता की मिसाल देकर सामाजिक सद्भाव को बढ़ाएं गरीबी अमारी का भेदभाव मिटाए। हमारे त्यौहार हमें अपनी मिट्टी से जोड़े रखते हैं, आपसी रिश्तों को मजबूत करते हैं, गुलाब के फूलों की तरह खुशबू देते हैं। दिवाली रोशनी का त्यौहार है जो अंधकार जाति व धर्म के नाम पर हमारे दिलों में भरा गया है उसे मिटाए। जलते हुए दिए की तरह हर जगह उजाला फेले यही प्रयास हो। हमारे त्यौहार मनाने का यही बुनियादी कारण है ब्रहसत्य है। ये अटल रहेंगे। इनकी प्रासंगिकता बनी रहेगी। सबसे मुख्य बात राम को ग्रहण करें, रावण को नही। आपकी दिवाली खुशहाल व मंगलमय हो। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखिका : लता अग्रवाल चित्तौड़गढ़।

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