आन्ध्र प्रदेश में शराब के कारोबार का फिर निजिकरण

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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लगभग छ: साल के बाद दक्षिण के राज्य आन्ध्र प्रदेश में एक बार फिर शराब की बिक्री निजी हाथों में आ गई है। इस नई नीति को लागू करने के पीछे तर्क यह दिया गया है कि इससे पड़ोसी राज्य तेलंगाना से आने वाली अवैध शराब की तस्करी रुक जायेगी। इसके साथ ही राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी।
2019 के विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ था। उस समय का सत्तारूढ़ तेलुगु देशम पार्टी चुनाव हार गई थी। राज्य में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी। जगन मोहन रेड्डी राज्य के नए मुख्यमंत्री बने। इस पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में कहा था कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो शराब का कारोबार सरकार अपने हाथ में ले लेगी। शराब के खपत को हतोत्साहित करने के लिए शराब बिक्री की दुकाने कम कर दी जाएँगी। नई शराब नीति की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा था कि यह नीति अगले पांच साल तक जारी रहेगी। शराब की सरकारी दुकानों पर केवल सीमित ब्रांड की ही शराब ही मिलेगी। इसके साथ पड़ोसी राज्य से शराब की अवैध तस्करी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाये जायेंगे।
इस नीति से राज्य में शराब की बिक्री काफी कम हुई और सरकार को इस पर मिलने वाला आबकारी कर भी बहुत कम हो गया। लेकिन शराब के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि वास्तव में इस नीति से शराब की बिक्री घटी नहीं बल्कि और भी बढ़ गई थी। क्योंकि अविभाजित आन्ध्र प्रदेश से बने तेलंगाना, जहाँ शराब का कारोबार निजी हाथों में था, से शराब की तस्करी में कई गुना वृद्धि हो गई। सरकारी आंकडे बताते है कि पिछली सरकार के पांच साल के कार्यकाल में आन्ध्र प्रदेश में पड़ोसी राज्य से अवैध रूप से आई लगभग 2 करोड़ लीटर शराब पकड़ी गई। पर शराब के कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि पकड़ी गई शराब राज्य में अवैध रूप से आई शराब का मात्र 10 प्रतिशत ही थी। बाकि शराब पीने वालों तक पहुँच गई। इससे राज्य सरकार को लगभग 42,000 करोड़ रूपये के राजस्व का नुकसान हुआ, जिसका सीधा असर राज्य का आर्थिक स्थिति पर पड़ा।
पिछले साल के अंत में राज्य हुए विधानसभा चुनावों में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी बुरी तरह से चुनाव हार गई। तेलुगु देशम पार्टी फिर सत्ता आई तथा चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस पार्टी ने बीजेपी और जन सेना पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। अपने चुनाव घोषण पत्र में इस गठबंधन ने 6 कल्याणकारी योजनायें लागू करने का वायदा किया था। इन्हें लागू करने के लिए राज्य सरकार को बड़ी राशि के जरूरत थी। नई सरकार ने राज्य की अमरावती में बन रही राजधानी योजना को फिर से शुरू करने के लिए भी बहुत धन चाहिए था। पिछले 6 महीनों से इस बात का चिंतन हो रहा था कि राज्य का राजस्व कैसे बढाया जाये। आखिर यह हुआ की राज्य में शराब के कारोबार का निजीकरण ही एक ऐसा रास्ता है जिससे राजस्व में बढ़ोतरी होगी तथा आम जन भी इसका विरोध नहीं करेगा। यह तय किया गया कि निजी शराब कारोबारियों को लगभग 38 हज़ार दुकानों के लाईसेंस दिये जाएँ . हरियाणा की तरह बड़े बड़े माल में शराब की बिक्री की अनुमति भी दी जाये। नई नीति 2026 लागू रहेगी सरकार का अनुमान है कि इससे पड़ोसी राज्य से अवैध रूप से आने वाली शराब रुक जाएगी। सरकार ने दावा किया है चालू वित्त वर्ष के बचे महीनों में ही 3800 करोड़ की अतिरिक्त आये होगी। इस नीति की मजेदार बात यह है। लाईसेंस के लिए आवेदन देने वालों को लाईसेंस नहीं मिलने पर भी उनके द्वारा जमा करवाई गई राशि वापिस नहीं की जायेगी। कुल मिलकर आबकारी बिभाग को एक लाख से ऊपर आवेदन मिले। जबकि लाटरी के जरिये 3800 को ही लाईसेंस मिले। केवल इस मद से सरकार को लगभग 2000 करोड़ रूपये की आय हुई। सरकार की नई आबकारी नीति हरियाणा सरकार की आबकारी नीति से मिलती जुलती सी है। नई खुली शराब की दुकानों पर सस्ती कीमत की शराब बेची जा रही है जबकि महंगी शराब केवल बड़े-बड़े माल में खुली दुकानों पर ही मिल रही है। सरकार ने कई और शराब निर्माता फर्मों को अपने ब्रांड राज्य में बेचने की अनुमति भी दे दी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

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