पितृ दिवस की सार्थकता का सवाल

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आज पितृ दिवस है। दरअसल पितृ दिवस कहें या फादर्स डे कहें का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि हम अपने पिता जो हमारे पहले शिक्षक ही नहीं,मार्गदर्शक और संरक्षक होते हैं, को उनके प्यार, सहयोग,त्याग और समर्पण के लिए उनका हृदय से धन्यवाद दें और उनके जीवन पर्यन्त आभारी रहें। पिता की संतुष्टि ही पितृ दिवस की सार्थकता है। पिता हमेशा संतान की उत्तरोत्तर प्रगति की कामना करता है लेकिन वही संतान उसकी सेवा तो दूर उससे हर क्षण मुक्ति की कामना करती है। ऐसी संतान ढूंढने के लिए आपको कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, वह विलक्षण क्षमता युक्त प्राणी आपको अपने आस-पास ही मिल जायेंगे। बढ़ते वृद्धाश्रम इसके जीवंत प्रमाण हैं। यह विचारणीय है कि पिता जिसने संतान के सुख की खातिर अपना सर्वस्व होम कर दिया, उसे अपने जीवन के अंतिम दौर में संतान के स्नेह और समय की आकांक्षा रहती है लेकिन संतान पिता के सुख-दुख की चिंता से परे उनकी अवस्था को जानते-समझते हुए अपने सुख और ऐश्वर्य भोग की यात्रा में ही लिप्त रहती है और पिता अपनी शय्या पर लेटे-लेटे ईश्वर से शीघ्र मुक्ति की प्रार्थना करता है। यह मौजूदा दौर की कड़वी हकीकत है। ऐसे विरले सौभाग्यशाली पिता होते हैं जिन्हें सेवाभावी संतान प्राप्त होती है। वे पिता धन्य हैं और वह संतति स्तुति योग्य। ऐसी संतति के लिए हर दिन पितृ दिवस है। इसलिए पितृ दिवस को किसी दिवस विशेष की सीमा में बांधना न्यायोचित नहीं है।

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