सांभर नगरपालिका के कार्मिकों की राजनीतिक दम पर बल्ले बल्ले

महिला कार्मिकों के प्रति सॉफ्ट कॉर्नर
शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील। लोकल लीडरशीप करने वाले नेताओं को भले ही आम जनता के दुख दर्द की तकलीफों से भले ही कोई लेना-देना ना हो, लेकिन बताया जा रहा है कि दोनों और के कुछ कथित नेताओं का नगरपालिका के कार्मिकों पर पूरा आशीर्वाद बना हुआ है। इन्हीं इने-गिने नेताओं के कारण ही पालिका के यदि कुछ कार्मिक पारदर्शिता से काम करना भी चाहे तो उन्हें या तो काम नहीं करने दिया जाता है या फिर उन्हें हर तरह के प्रेशर में डालकर मन मुताबिक काम करने के लिए बाध्य तक कर दिया जाता है। सेटिंग करके महत्वपूर्ण कामों का जिम्मा यानी वर्क डिस्ट्रीब्यूशन बदलवाकर ऐसे कार्मिकों को दे दिया जाता है जो इनकी फाइलों में कमी होने के बावजूद भी लिखी जाने वाली आर्डर शीट पर बाबू लघु हस्ताक्षर करके अधिशाषी अधिकारी के माध्यम से उस फाइल को ओके करवा सके। बताया जा रहा है कि व्यवस्था के नाम पर अव्यवस्था होती जा रही है। तमाम जानकारियां आमजन से निकल कर आ रही है, जो सार्वजनिक रूप से मजबूरीवश किसी को बताने में इसलिए डरते हैं कि उनका काम कहीं अटक नहीं जाए, क्योंकि उनके पास कोई अप्रोच नहीं है। बताया जा रहा है कि उनकी मजबूरी का कथित कार्मिक जो की भ्रष्टाचार सिस्टम का हिस्सा बने हुए हैं गिद्ध दृष्टि गड़ाए मौके का फायदा उठा रहे हैं। ऐसे तथाकथित दोगले नेताओं की शह पर यह नहीं होता हो ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता है, यदि सिस्टम का वे हिस्सा भी नहीं है तो समझ में यह नहीं आ रहा है कि कथित भ्रष्ट कार्मिकों के खिलाफ सरकार तक आवाज क्यों नहीं पहुंचा रहे हैं या पहुंचाना नहीं चाहते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण स्थानीय नगरपालिका सांभर में मिल जाएंगे जिनकी डीएलबी डायरेक्टर और सरकार तक शिकायतें होना बताया जा रहा है, लेकिन सेटिंग के चलते इनका बाल भी बांका तक नहीं हुआ है। इसका मोटा उदाहरण तो इसी से लगाया जा सकता है कि यहां के चेयरमैन जिन पर भ्रष्टाचार के तहत एसीबी में मामला दर्ज हुआ था लेकिन यह विचारणीय प्रश्न है कि वे अकेले ही भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बने हो ऐसा तो संभव नहीं हो सकता है, इसमें कहीं ना कहीं अप्रत्यक्ष रूप पालिका के उन कार्मिकों की जिन पर आज तक उंगलियां उठ रही है के खिलाफ जांच का विषय क्यों नहीं उठाया गया? यह बात अलग है कि अब कांग्रेस के अध्यक्ष भाजपा के अध्यक्ष हो गए हैं। महिला कार्मिकों की तो बल्ले बल्ले है। बताया जा रहा है कि वह हेड क्वार्टर पर नहीं ठहरती है। शाम को 4:00 बजे तक अपने घरों की ओर प्रस्थान कर जाती हैं या उन्हें जाने की छूट अन्य कार्मिकों की मेहरबानी के चलते भी मिल जाती है। आरटीआई में मांगी गई सूचना निश्चित अवधि के बाद भी नहीं मिलने के कई उदाहरण सामने आए हैं। अगर यह सही नहीं है तो फिर क्या कारण है कि निर्माण स्वीकृति व नामांतरण के लिए अनावश्यक विलम्ब, सफाई व्यवस्था, सड़कों के बदतर हालात, महत्वपूर्ण सर्किलों की अनदेखी, वाहन पार्किंग की अव्यवस्था, सब्जी मंडी में सुविधाओं का टोटा, सार्वजनिक शौचालयों व सुलभ शौचालय की दुर्दशा क्यों नहीं सुधर रही है, यानी इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि सिस्टम में कहीं तो गड़बड़ी है नहीं तो क्या मजाल भ्रष्टाचार के आरोपों में शामिल रहे पूर्व अधिशाषी अधिकारी शिकेश कांकरिया ने कुछ समय में ही 250 से अधिक पट्टे बना दिए, बताया जा रहा है कि इनमें कुछ सरकारी भूमि के भी शामिल हैं। ऐसे अनेक और मामले भी बताए जा रहे हैं, जिनकी एसीबी यदि जांच करें तो परत-दर-परत खुल जाएगी और सब कुछ गंगाजल की तरह साफ हो जाएगा।

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