तिरुपति मंदिर की पुरानी व्यवस्था विवादों के घेरे में

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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लगभग दो महीने पहले देश का सबसे प्रसिद्ध और धनी तिरुपति तिरुमला मंदिर वहां के लड्डू प्रसादम शुद्धता को लेकर विवादों के घेरे में आया था। इस लड्डू की जाँच के बाद यह बात सामने आई कि इस में उपयोग होने वाला देसी घी न केवल मिलावटी है बल्कि इसमें पशुओं की चर्बी भी मिली हुई है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। कोर्ट ने इस लड्डू की शुद्धता के जाँच के लिए एक विशेष समिति का गठन किया जिसमें दो अधिकारी सीबीआई के भी शामिल हैं।
यह जाँच अभी चल रही थी इसी बीच एक इस मंदिर के पिछले प्रबंधन को लेकर भी कई सवाल समाने आये है। मंदिर की पिछली प्रबंध समिति के कार्यकाल में लिए गए कई फैसलों पर सवाल उठाये जा रहे है। ये सवाल खास करके कर्मचारियों की भर्ती को लेकर है। ऐसे पहली बार हुआ बताया जाता है कि मंदिर की प्रबंधन समिति ने गैर हिन्दू लोगों की भर्ती की जिससे यह मंदिर अपवित्र हो गया है।
सरकार की देखरेख में चलने वाले इस मंदिर के प्रबन्धन के लिए एक 23 सदस्यों वाला एक ट्रस्ट है। इसका प्रशासक आईए एस अधिकारी ही होता है। ट्रस्ट का सालाना बजट 5000 करोड़ रूपये से भी अधिक है। इसके कर्मचारियों के संख्या 16,000 के आस पास है आम तौर पर राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ इसकी प्रबंध व्यवस्था में बदलाव होता है। नई सरकार अपने पसंद के लोगों को इस ट्रस्ट का सदस्य और अध्यक्ष बनाती है।
पांच साल पहले जब राज्य में वाईएसआर पार्टी सत्ता में आई और जगन मोहन रेड्डी राज्य के मुख्यमंत्री बने तो मंदिर के प्रबंधन में बदलाव किया गया। जगन मोहन रेड्डी के परिवार के बारे में कहा जाता है कि इसके आधे सदस्य ईसाई और आधे हिन्दू हैं। कौन हिन्दू धर्म को मानता और कौन ईसाई धर्म को इसके बारे आम आदमी को कोई जानकारी नहीं है। जगन मोहन रेड्डी ने सत्ता संभालते ही ट्रस्ट के सदस्य और अध्यक्ष को बदल दिया। नए अध्यक्ष सुब्बा रेड्डी बनाए गए जो रिश्ते में जगन मोहन रेड्डी का मामा लगते हैं। वे इस समय राज्यसभा के सदस्य है। उनके कार्यकाल में मंदिर के प्रबंधन के लिए नए कर्मचारी भर्ती किये गए। नए कर्मचारियों में लगभग 50 ऐसे कर्मचारी भर्ती किये गए जो हिन्दू नहीं थे। वे या तो ईसाई थे या फिर किसी और धर्म, जिसमें मुसलमान भी शामिल हैं, के थे। लगभग एक हज़ार साल पुराने इस मंदिर में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी गैर हिन्दू को कर्मचारी के रूप में भर्ती किया गया। उस समय कुछ लोगों ने इसका विरोध किया था लेकिन सुब्बा रेड्डी ने किसी की भी नहीं सुनी। उनका तर्क था कि ट्रस्ट के नियमों में कही नहीं लिखा है कि यहाँ किसी गैर हिन्दू को नौकरी नहीं दी जा सकती।
कुछ पिछले साल के अंत में जब राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और तेलुगु देशम और बीजेपी की मिली जुली सरकार बनी तो मंदिर के व्यवस्थाओं की समीक्षा की गई। पुराने प्रशासक को हटाकर नया प्रशासक नियुक्त किया। नए प्रशासक ने पिछले पांच सालों प्रबंध व्यवस्था में हुई अनियमितताओं के बारे में सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की। इसकी के चलते लड्डू प्रसादम में मिलावटी घी की उपयोग की बात सामने आई। सरकार ने हाल ही में ट्रस्ट का पुनर्गठन किया है। ट्रस्ट के सभी सदस्य भी बदल दिए गए है। ट्रस्ट के नए अध्यक्ष बी आर नायडू है, जो मुख्यमंत्री चन्द्रबाबू नायडू के करीबी बताये जाते हैं। वे एक धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति है। वे महीने में कम से कम एक बार तिरुपति मंदिर जाते हैं। ऐसा वे पिछले कई साल से करते आ रहे है। उनकी इस मंदिर में अटूट आस्था है
पद संभालने के कुछ दिनों बाद उन्होंने अपने स्तर पर मंदिर के काम काज की समीक्षा की। उनका दावा है कि सुब्बा रेड्डी के कार्यकाल में मंदिर ट्रस्ट के नियमों को ताक पर रख फैसले किये गए। सदियों पुरानी प्रम्प्रायों को बदल दिया गया। गैर हिन्दुओं की भर्ती से देश का यह प्रसिद्ध मंदिर अपवित्र हो गया है। अब वे इस मंदिर की पवित्रता को बरकरार रखने के लिए कोई कसर नहीं रखेंगे। उन्होंने यह साफ़ कर दिया कि अगले कुछ महीनों में यहाँ कोई गैर हिन्दू कर्मचारी नहीं रहेगा। वे सरकार से बात करके या तो वे इन गैर हिन्दू कर्मचारियों का कहीं और तबादला करवा देंगे या फिर उनको वी आर एस लेने की सलाह दी जाएगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

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