बेहद ख़तरनाक है फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम नामक यह फंगस : ज्ञानेन्द्र रावत

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
www.daylifenews.in
फंगस केवल फसलों का ही दुश्मन नहीं है, वह इंसानों की भी जान के लिए बेहद ख़तरनाक है। एक साइंस जर्नल के मुताबिक यह फंगस कृषि आतंकवाद का ख़तरनाक हथियार है। इस फंगस से प्रभावित फसल के सेवन से मनुष्य और पशुओं की जान भी खतरे में पड़ सकती है। यह एक ऐसा फंगस है जो विभिन्न अनाजों के विकास को प्रभावित करता है। इससे उपज भी कम हो जाती है। एक बार संक्रमित होने के बाद यह फंगस फसल के परिपक्व होने के साथ फैलता चला जाता है। यह फंगस छोटे अनाज के तने और जड़ों जैसे पौधों के अनेक ऊतकों, उनके अवशेषों में जीवित रहने और नये पौधों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है। यह माइकोटाक्सिन पैदा करता है जो इंसानों और पशुओं के लिए भी जो इसका सेवन करते हैं, हानिकारक होता है। बीते दिनों अमरीकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने एक बड़ी जैविक आतंकी साज़िश को नाकाम करते हुए अमेरिकी मिशीगन यूनीवर्सिटी में शोध कर रही एक चीनी शोध वैज्ञानिक युनकिंग जियांग को गिरफ्तार किया है जो अमेरिका में ख़तरनाक जैविक फंगस फुसेरियम ग्रेमिनिएरम लेकर आई। वैसे फंगस विभिन्न तरह के रोग जैसे कि हेड ब्लाइट, रूप रौट और सीडलिंग ब्लाइट पैदा करता है। इसकी अधिकांश प्रजातियां मृदाकवक हैं।जबकि फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम नामक यह फंगस गेहूं, चावल, मक्का और जौ में हेड क्लाइंट रोग फैलाता है। इससे मुख्यत: वोमिटोक्सिन नामक पदार्थ पैदा होता है जो अनाज को दूषित करता है। इससे निकले विषाक्त द्रव्य से हर साल जहां अरबों डालर की फसल‌ बरबाद‌ होती है, वहीं फसल की उपज भी कम होती है, नतीजतन कृषि आय प्रभावित होती है। गौरतलब है कि एफबीआई ने पिछले साल जुलाई में जियान के ब्याय फ्रैंड लियू को उसके बैग में मिले लाल पौधे के पदार्थ के बारे में गोलमोल जबाव देने के बाद डेट्रायट हवाई अड्डे से वापस चीन भेज दिया गया था। उसने शुरू में नमूनों के बारे में अनभिज्ञ होने का नाटक किया लेकिन बाद में उसने कहा कि वह मिशीगन यूनीवर्सिटी की प्रयोगशाला में अनुसंधान के लिए सामग्री का उपयोग करने की योजना बना रहा था। इसके बाद उसने अपनी गर्ल फ्रेंड जियान के हाथों छिपाकर इस ख़तरनाक फंगस को मिशीगन यूनीवर्सिटी की लैब तक पहुंचाया। दरअसल लियू पहले मिशीगन यूनीवर्सिटी की लैब में काम करता था। फिलहाल वह चीनी यूनीवर्सिटी में कार्यरत हैं। वहीं इस फंगस को चीन से अमरीका लाया था। एफबीआई निदेशक ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा है कि चीन अमरीकी संस्थानों में घुसपैठ की साज़िश कर रही है ताकि खाद्य सुरक्षा तंत्र के जरिये बहुत बड़ी आबादी को नुक़सान पहुंचाया जा सके। इस स्ट्रेन के अनधिकृत आयात से अधिक आक्रामक या कीटनाशक प्रतिरोधी वैरिएंट आने का खतरा बढ़ जाता है। इसके कारण नियंत्रण के उपाय कम प्रभावी होते हैं।

असलियत यह है कि यह खतरनाक फंगस भारत में भी पाया जाता है। अमेरिकी नेशनल‌ लाइब्रेरी आफ मेडिसिन की 2022 की रिपोर्ट की मानें तो उत्तर भारत में गेहूं की फसल में कई बार हेड ब्लास्ट के लक्षण देखे गये हैं। वह बात दीगर है कि हर बार समय रहते उस पर नियंत्रण पा लिया गया है।‌ इसके यहां सक्रिय होने के पीछे जलवायु परिवर्तन अहम कारण है। गेहूं की फसल के लिए खासकर इसे बहुत बड़ा खतरा माना जाता है। आईसीएआर के 2021 में किये एक सर्वे के दौरान हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु में किए व्यापक रोग- सर्वेक्षण में इस फंगस के बारे में खुलासा हुआ था। इससे गेहूं के दाने में हेड क्लाइंट या स्टैंड की समस्या हुयी थी। यही नहीं 2021.और 2022 के बीच रबी के सीजन में कर्नाटक कृषि विश्वविद्यालय द्वारा किए एक सर्वे में‌ कर्नाटक के उत्तरी हिस्सों में हेड ब्लाइट की समस्या देखी गयी थी। असलियत में अमेरिका में चीनी वैज्ञानिक द्वारा फंगस फ्यूजेरियम ग्रेमिनीअरम की तस्करी की घटना ने जहां वैश्विक कृषि सुरक्षा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, वहीं भावी भविष्य की चेतावनी भी है कि इस तरह मिट्टी, बीज और फसलें भी न केवल आतंकवाद के हथियार बन सकते हैं,‌वहीं यह फंगस अनाज को सड़ा भी सकता है जिससे इंसान ही क्या मवेशियों के भी जान के लाले पड़ सकते हैं। चूंकि यह इतना सूक्ष्म होता है , इसलिए आसानी से पकड़ में नहीं आता और हवा, मिट्टी और बीज के जरिये अपना विस्तार करता है। इसके शुरूआत में लक्षण सामान्य रूप से फसली रोग जैसे होते हैं। इंसानों में जबतक इसका पता चलता है तब तक बहुत देर हो जाती है।इस तरह यह जैविक युद्ध का मौन हथियार साबित हो सकता है। वैज्ञानिक इसे ‘एग्रो टैररिज्म ‘ यानी कृषि आतंकवाद बता रहे हैं। असलियत में फसलों को बर्बाद करने या नष्ट करने की खातिर जैविक एजेंट का इस्तेमाल कृषि आतंकवाद कहलाता है। यह तरीका आसानी से पकड़ में भी नहीं आता है। इसका मुख्य मकसद अर्थ व्यवस्था बर्बाद करना और समाज में भय पैदा कर बिखराव का माहौल बनाना है।
चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसकी अर्थ व्यवस्था में कृषि का योगदान लगभग 17 फीसदी से ज्यादा है और देश की आधी से ज्यादा आबादी खेती से जुड़ी है, इसलिए भारत भी चीन के निशाने पर हैं। जबकि पंजाब, राजस्थान और हिमाचल जैसे सीमावर्ती राज्य चीन और पाकिस्तान से सटे हुए हैं और दोनों ही देश दुश्मन देश हैं जिन्हें भारत की बहबूदी फूटी आंख नही सुहाती है। अब बंग्लादेश भी चीन और पाकिस्तान की राह पर है। गौरतलब है कि 2016 में बंगलादेश से ही भेजें गये जहरीले फंगस मैग्नपार्थ ओराइजा पाथोटायप ट्रिटिकम ने पश्चिम बंगाल के दो जिलों में तबाही मचाई थी। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इस फंगस का जहर काफी ख़तरनाक है। यह मनुष्य के शरीर में दूषित भोजन ( रोटी, अनाज, पास्ता, बीयर) से या प्रसंस्करण के दौरान, दूषित अनाज से धूल को सांस के माध्यम से त्वचा के संपर्क से प्रवेश करता है। यह मुख्यतः जठरात्र और प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करता है। इसके शिकार शिशु, बच्चे और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग होते हैं। इसके असर से इंसान को उल्टी, दस्त, बुखार, हार्मोनल असंतुलन, प्रजनन संकट, त्वचा में जलन और कोशिकाओं को भारी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा पशुओं का विकास बाधित हो सकता है। उनमें भूख की कमी, बांझपन की समस्या,लिवर और किडनी खराब होने का खतरा बना रह सकता है। वह बात दीगर है कि भारत में कृषि अनुसंधान परिषद और कृषि विश्वविद्यालयों में फंफूंदरोधी गेहूं की उन्नत किस्मों पर अध्ययन जारी है,रोग प्रतिरोधक बीजों का ट्रायल किया जा रहा है लेकिन इसके साथ साथ जैविक सुरक्षा मानकों व दिशा-निर्देशों को सख्त बनाना, अंतरराष्ट्रीय प्रयोगशालाओं से निरंतर सहयोग-परामर्श के अलावा मौसम आधारित पूर्वानुमान प्रणाली और फंफूंद का आधुनिक निगरानी तंत्र विकसित किया जाना बेहद ज़रूरी है तभी कुछ सीमा तक इस पर नियंत्रण संभव है। उस हालत में जबकि गंभीर जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य के तहत इसके दुष्प्रभावों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है और ना ही द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी द्वारा ब्रिटेन की फसल को नुक़सान पहुंचाने की गरज से कोलोराडो पोटेटो बीटल नामक कीट छोड़े जाने के इतिहास को भुलाया जा सकता है। जरूरत हे जागरूकता और जरूरी प्रभावी चिकित्सकीय उपचार की तभी इस पर नियंत्रण की उम्मीद की जा सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *