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जयपुर। “लोकतंत्र में लोकमत ही सर्वाधिक कारगर होता है। उसकी साधना ही सफलता का सर्वोत्तम मार्ग है, जो अहिंसा-सत्य- शांति के मार्ग से ही संभव है। इस दृष्टि से ही 29 जनवरी 2025 को ‘गांव बंद आंदोलन’ का 45,537 गांव में आह्वान किया गया था। परिणामत: गांव-गांव तक चर्चा के कारण लोकमत संग्रह की ओर कदम बढ़ा है। इस अत्यंत प्रभावशाली ब्रह्मास्त्र के सफल संचालन हेतु निरंतर सक्रियता की आवश्यकता है। जिसके लिए समर्पित भाव से कार्य करने वाले निष्ठावान कार्यकर्ताओं का समूह अपरिहार्य है, जो प्रथम पुरूषीय विचार से ही संभव है। विधानसभावार पूर्णकालिक पुरोधा लोकमत जागरण करने वालों की श्रृंखला तैयार करेगा, और यही वैकल्पिक सकारात्मक राजनीति की आधारशिला बनेगा। धन के स्थान पर जन आधारित चुनाव के द्वारा जन प्रतिनिधित्व की भावना को साकार करेगा। समान आर्थिक हितो के आधार पर किसान बनकर ही मत के उपयोग करने के संकल्प को मंत्र के रूप में ग्रहण करना समीचीन है। राष्ट्रभक्तों के लिए व्यवस्था परिवर्तन समय की प्रमुख मांग है, उसी से ही धनपतियों को पोषित करने वाले भ्रष्टाचार एवं भेदभाव पूर्ण अन्याय को समाप्त कर किसान केंद्रित राजनीति एवं ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था स्थापित हो सकेगी। स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी करने का पछतावा नहीं रहेगा क्योंकि यह संग्राम अधूरे स्वतंत्रता संग्राम को पूर्णता की ओर ले जाएगा।
किसान एवं देश की समृद्धि समानार्थी शब्द है। इसी से “किसानो की खुशहाली के बिना आजादी अधूरी है” “खुशहाली के दो आयाम – खेत को पानी – फसल को दाम” का उदघोष धरातल पर उतर आएगा।
तात्कालिक रूप से सरसों का मूल्य किसानों द्वारा निर्धारित करने की दिशा में सरसों सत्याग्रह आरंभ करना अपरिहार्य हो गया है राजस्थान में संपूर्ण देश के उत्पादन की 48% से अधिक सरसों का उत्पादन वाला राजस्थान प्रथम राज्य है। इसके अतिरिक्त हरियाणा उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश जैसे राज्य भी सरसों उत्पादक है। गत वर्ष सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5650 रुपए प्रति क्विंटल होते हुए भी किसानों को सरसों के दाम 4600 रुपए प्रति क्विंटल तक ही प्राप्त हुए थे। इस वर्ष सरसों के बाजार में 5500 रुपए प्रति क्विंटल तक के भाव है जबकि घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 5950 रुपए प्रति क्विंटल है, बाजार के भाव सरसों की आवक आरंभ होते ही 5000 रुपए प्रति क्विंटल तक से भी नीचे चले जाते हैं, भारत सरकार खाद्य तेल के आयात पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपए व्यय करती है किंतु देश के सबसे उत्पादक किसानों को वह मूल्य भी सुनिश्चित नहीं कर पाती है जिन्हें न्यूनतम के रूप में घोषित किया जाता है । इसके अतिरिक्त पाम ऑयल जैसे अखाद्य पदार्थ को खाद्य तेल के नाम पर आयात शुल्क शून्य तक कर देते हैं। सरसों के तेल बनाने वाले उद्योग सरसों के तेल में पाम आयल जैसे अखाद्य पदार्थ की मिलावट करते रहते हैं दुष्परिणामत: सरसों के मूल्य कम होते जाते है। इसके लिए देश के 8 राज्यों के 101 किसानों ने 06 अप्रैल 2023 को दिल्ली के जंतर मंतर पर 1 दिन का उपवास कर सरसों सत्याग्रह भी किया था, तब भी सरकार ने सार्थक करवाई नहीं की इसलिए सरसों उत्पादक किसानों ने सर्वसम्मति से अपनी सरसों 6000 रुपए प्रति क्विंटल से कम दामों पर नहीं बेचने के लिए संकल्प का प्रस्ताव पारित किया है। प्रथम चरण में यह अवधि 15 मार्च तक रहेगी, 16 मार्च को समीक्षा के उपरांत आगे की रणनीति घोषित की जाएगी। इसी संदर्भ में किसानो की सरसों गिरवी रखकर केंद्र एवं राज्य सरकारों से वर्ष 2007 से बने हुए कानून के अनुसार किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की 80% राशि बिना ब्याज उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए जिससे संसद में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया वह वक्तव्य पूर्ण हो सके जिसमें किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में उनकी उपज बेचने के लिए विवश नहीं होना पड़े।
जयपुर के किसान भवन में किसान महापंचायत के द्वारा बुलाई गई समान विचारधारा वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की अध्यक्षता में संपन्न हुई! जिसमें राजस्थान के संयोजक सत्यनारायण सिंह, प्रदेश अध्यक्ष मुसद्दीलाल यादव, महामंत्री सुंदरलाल भावरिया, युवा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर चौधरी, प्रदेश मंत्री बत्तीलाल बैरवा, युवा प्रदेश महामंत्री पिंटू यादव एडवोकेट, समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष सवाई सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता प्रो गोपाल मोडानी, आप पार्टी के राजस्थान के पूर्व सचिव देवेंद्र शास्त्री, किसान यूनियन के अध्यक्ष ओम बेनीवाल, मरुधरा किसान यूनियन के डी.के. जैन, एमएसपी विशेषज्ञ मनज़िन्दर सिंह अटवाल सहित जिला अध्यक्ष, तहसील अध्यक्षो ने भागीदारी की। इस बैठक में 29 जनवरी को हुए गांव बंद आंदोलन की समीक्षा एवं भावी रणनीति पर चर्चा हुई! इसके साथ ही फसलों का घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्ति की दिशा में ₹6000 प्रति क्विंटल से कम दामों में सरसों नहीं बेचने के संकल्प के लिए प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया। इसी दिशा में चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य हेतु राजस्थान, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के प्रतिनिधियों के साथ बैठक आयोजित करने का निर्णय लिया गया! 28 फ़रवरी तक सभी जिला कलेक्टरों के माध्यम से सरकारों को ज्ञापन प्रेषित करने का निर्णय भी लिया गया जिसमें निर्धारित मात्रा से अतिरिक्त अवैध तौल जो 250 ग्राम से लेकर 1 किलोग्राम प्रति क्विंटल तक किया जा रहा है, उसे रोकने का मुद्दा भी प्रमुख रहेगा।
सरसों को ₹ 6000 प्रति क्विंटल से कम दाम पर नहीं बेचने के अभियान को जिला स्तर पर जनजागरण के द्वारा गति दी जाएगी! इस संबंध में ग्राम सभायों के आयोजन को भी प्राथमिकता दी जावेगी।