
लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद हैं।
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जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का असर इंसान ही नहीं, पशु-पक्षी सहित सभी पर दिखाई दे रहा है। इस बार तो फरवरी के पहले हफ्ते से ही गर्मी का एहसास होना शुरू हो गया था। इस बार देश की राजधानी सहित देश के कई हिस्सों में फरवरी महीने में ही एक बार तापमान 29.7 डिग्री छू चुका था जो महीने के आखिर में 40 डिग्री के पार पहुंच गया। यही नहीं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र के विदर्म इलाके में, तेलंगाना, तटीय आंध्र, ओडिशा, केरल और दमन दीव के कुछ इलाकों में पारा 35 से लेकर 38 डिग्री तक दर्ज किया गया। तापमान में यह बढ़ोतरी अलनीनो या ला नीना का भी असर नहीं था जैसा कि बीते कुछ सालों में माना जाता रहा है। ऐसा लगता है कि इस बार गर्मियों में तापमान सामान्य से काफी अधिक रहने के आसार हैं जिसके संकेत फरवरी से ही मिलने शुरू हो गये हैं। मौसम विज्ञान विभाग की मानें तो इस बार मार्च से मई तक दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों को छोड़कर पूरे देश में अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा और उष्ण लहर का प्रकोप भी ज्यादा रहेगा। मौसम विभाग के अनुसार मार्च महीने में भी औसत तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। इस दौरान न सिर्फ गर्मी का प्रकोप अधिक रहेगा बल्कि हीट वेव के दिनों में भी इजाफा होगा। फरवरी महीने में तापमान में 1.34 डिग्री की बढ़ोतरी हुयी जो 1901 के बाद सर्वाधिक है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से सौर ऊर्जा सोखने की क्षमता में बढ़ोतरी हुयी। उसके अनुसार जनवरी 2025 में दुनिया का तापमान औद्यौगिक काल 1850–1900 से पहले के मुकाबले 1.75 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रहा। यह अब तक का सबसे गर्म जनवरी रहा। इसका कारण धरती के ऊर्जा संतुलन का बिगड़ना रहा है। ऊर्जा संतुलन बिगड़ने का अर्थ है कि धरती सौर ऊर्जा सोख तो रही है परंतु उसे फिर से उसकी छोड़ने की क्षमता बिगड़ गयी है। यही वजह है कि धरती कहीं अधिक तेजी से गरम हो रही है। यह ग्लोबल वार्मिंग के खतरे का और बढ़ने का संकेत है। इस बारे में नासा के पूर्व वैज्ञानिक जैम्स ई हैनमेन की मानें तो धरती के लिए ऊर्जा का एकमात्र स्रोत सूर्य है जो एक स्थिर दर पर ऊर्जा प्रदान करता है। धरती की ऊर्जा स्थिरता इस ऊर्जा के अंतरिक्ष में वापस लौटने पर निर्भर करती है। असलियत में सौर ऊर्जा को वापस अंतरिक्ष में फिर लौटाने की धरती की क्षमता घट रही है। आंकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि मार्च 2000 और फरवरी 2010 के दौरान धरती 29.2 फीसदी सौर ऊर्जा अंतरिक्ष को वापस लौटा रही थी। उसकी तुलना में साल 2024 में धरती की यह क्षमता घटकर 28.6 फीसदी रह गयी। इसमें ऊर्जा की बढ़ोतरी ने सूर्य के प्रकाश को प्रतिबंधित करने वाली बर्फ के पिघलने की अहम भूमिका है जिसके कारण धरती सूर्य के प्रकाश से मिलने वाली ऊर्जा को अंतरिक्ष में वापस नहीं भेज पा रही है। यह बढ़ते खतरे की चेतावनी है। ऐसे हालात में ग्लोबल वार्मिंग को कम करने की कोशिशों को दोगुना करने की बेहद जरूरत है।
मौसम के इस बदलाव के चलते फरवरी महीने के आखिर में देश के तटीय इलाके, मुंबई, कोंकण, तटीय कर्नाटक के कुछेक हिस्सों में लू चलने की संभावना व्यक्त की गयी थी। फरवरी महीने में लू की स्थिति को दुर्लभ माना गया जबकि इससे पहले 2023 में गुजरात के भुज में 16 फरवरी को 40.4 डिग्री तापमान दर्ज किया गया था। यह अच्छा संकेत नहीं है। आईएमडी के महानिदेशक एम महापात्रा की मानें तो गर्मी दक्षिण से उत्तर की ओर फैलती है। पारा बढ़ने के साथ सबसे पहले पश्चिमी तट के हिस्से गरम होने लगते हैं। अक्टूबर -दिसम्बर में मौसम 1.01 डिग्री प्रति शताब्दी की दर से गरम हो रहा है। इसके बाद जनवरी-फरवरी के सर्दियों के महीनों में पारा 0.73 डिग्री सेल्सियस की दर से बढ़ रहा है। फरवरी महीने में 40.4 डिग्री सेल्सियस पारा कन्नूर हवाई अड्डे पर दर्ज किया गया जो 1901 के बाद सबसे अधिक था। यही नहीं इस दौरान जम्मू-कश्मीर ,लद्दाख, गिलगिट, बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद के हिस्सों में भी अधिकतम तापमान सामान्य से 5 डिग्री या उससे अधिक दर्ज किया गया। बहरहाल हालात सबूत हैं कि मौसम का यह बदलाव जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे का संकेत है। दुनिया के शोध-अध्ययन इस बात के प्रमाण हैं कि जलवायु परिवर्तन अधिक अनिश्चित हो सकता है। क्योंकि जलवायु प्रणाली स्वाभाविक रूप से छोटे स्थानिक पैमानों पर अधिक प्रभाव डालती है। वायुमंडल, महासागर और भूमि की सतह में होने वाली प्रक्रियाएं इस बारे में ज्यादा मात्रा में अनिश्चितता पैदा करती हैं। वह यह कि कोई भी क्षेत्र वैश्विक स्तर पर होने वाले तापमान बढ़ोतरी पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देगा। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी का अध्ययन जो एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, में कहा गया है कि दक्षिण एशिया, भूमध्यसागरीय, मध्य यूरोप और उप सहारा के कुछ इलाकों सहित कई क्षेत्र 2060 तक तीन डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने की राह पर हैं। अध्ययनकर्ता वैज्ञानिक प्रोफेसर नोआह डिफेनबाग ने चेतावनी दी है कि यह पहले के अध्ययन से अलग और जल्दी है जिससे कमजोर पारिस्थितिकी तंत्र और समुदायों के लिए जोखिम बढ़ता जा रहा है। उनके अनुसार दुनिया के 34 इलाकों में 2040 तक तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी होने का अंदेशा है जबकि 31 क्षेत्रों में 2040 तक दो डिग्री की बढ़ोतरी और 2060 तक 26 क्षेत्रों में तीन डिग्री की बढ़ोतरी की प्रबल संभावना है। इसलिए न केवल वैश्विक तापमान वृद्धि पर बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर भी होने वाले बदलावों पर ध्यान देने की जरूरत है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में तेजी से बर्फ की चादर पिघलने से महासागरीय प्रक्रियाएं प्रभावित होंगी और जिसका असर वायुमंडल पर पड़ेगा। इसे झुठलाया नहीं जा सकता। यही नहीं अमेरिका के वैज्ञानिक, ग्लेशियरों के अध्ययन कर्ता प्रोफेसर मौरी पैल्टो ने नासा के उपग्रह चित्रों के विश्लेषण के बाद खुलासा किया है कि दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एवरेस्ट जो समुद्र तल से 8849 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, पर जमी बर्फ में 150 मीटर की कमी आई है। और तो और एवरेस्ट पर 6100 मीटर से ऊपर ग्लेशियर पिघल रहा है। यह गर्म जलवायु का परिचायक है। इस बारे में पैल्टो का कहना है कि हर शीत ऋतु की शुरुआत में थोड़ी बहुत बर्फबारी होती है लेकिन बर्फ का आवरण अधिक समय तक नहीं बना रहता जिससे पता चलता है कि माउंट एवरेस्ट पर 6000 मीटर से ऊपर ग्लेशियरों का पिघलना जारी है। हाल की सर्दियों में गर्म और शुष्क मौसम बना हुआ है जिसकी वजह से बर्फ का आवरण कम हो रहा है। यह आपदाओं का संकेत है।
एक नये शोध में खुलासा हुआ है कि ऐसे हालात में 24 फीसदी प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है,वहीं सर्दी की देरी और समय पूर्व बढ़ रहे तापमान से इंसान ही नहीं बेजुबान प्रवासी पक्षियों के प्रवास पर भी असर पड़ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी सर्दियों में हजारों मील का सफर तय कर भारत आये प्रवासी पक्षियों ने फरवरी के मध्य में ही गर्मी की आहट महसूस कर समय से पहले अपनी वापसी शुरू कर दी। कारण बढ़ते तापमान से न सिर्फ इनका प्रवास प्रभावित हुआ है, बल्कि इनके भोजन को भी प्रभावित किया है। कोरियाई अध्ययन और शोध सबूत हैं कि इसके दुष्परिणाम स्वरूप जहां डेंगू के प्रसार को बढ़ावा मिलेगा, गर्भावस्था में मृत बच्चों के जन्म, जन्म सम्बन्धी जटिलताओं और बच्चे के व्यवहार सम्बन्धी खतरा बढ़ने की आशंका है। एम्स के मनोचिकित्सा विभाग का मानना है कि मौसम में हो रहे बदलाव और समय पूर्व गर्मी से हारमोन में आ रहे बदलाव से मूड स्विंग यानी स्वभाव में गुस्सा बढ रहा है। 39 से 45 बरस के बीच की आयु के लोग इससे ज्यादा प्रभावित पाये गये हैं। जे एन यू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जाने-माने अर्थशास्त्री अरुण कुमार का मानना है कि दरअसल असामान्य और समय पूर्व तापमान बढो़तरी से जहां फसलों की पैदावार कम रहने की आशंका है जिसका असर आम आदमी की जेब पर पड़ना स्वाभाविक है, वहीं खाद्य पदार्थों के दाम असामान्य रूप से कई गुणा बढ़ सकते हैं। राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान की एसोशिएट प्रोफेसर राधिका पांडे कहती हैं कि ऐसे में सरकार को नीतिगत बदलाव करना जरूरी हो गया है। इसलिए जरूरी है कि सतत विकास के रास्ते में पर्यावरण और कार्बन उत्सर्जन की अनदेखी न की जाये जिसके चलते पर्यावरण की गुणवत्ता, जैव विविधता, स्वास्थ्य, दैनिक जीवन से सम्बन्धी आवश्यकताओं और कुपोषण जैसी समस्याएं विकराल रूप धारण कर सकती हैं। इस बारे में इजराइल के रीचमैन यूनिवर्सिटी के स्कूल आफ सस्टेनेबिलिटी के प्रमुख असर तजावोर का कहना है कि हमने पिछले बीस बरसों में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में काफी बदलाव पाये हैं जिसके कारण कई क्षेत्रों की उपेक्षा की गयी है।इनसे छुटकारा पाने हेतु और संतुलित तथा समावेशी प्रगति हासिल करने की दिशा में सतत विकास के लक्ष्यों के तहत तत्काल कार्रवाई बेहद जरूरी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)