सांभर में हेरिटेज के लायक संपत्तियों को सरकार की मेहरबानी का इंतजार

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जयपुर-जोधपुर रियासत काल की प्राचीन इमारतें खंडहरों में हो रही तब्दील
शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील। महाभारत एवं अनेक धार्मिक ग्रंथो में सांभर के इतिहास का वर्णन इस बात का पुख्ता सबूत है की यहां की ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी को किसी भी दृष्टिकोण से कम नहीं आंका जा सकता है। जयपुर और जोधपुर दो रियासत काल देख चुकी इस नगरी के पुख्ता प्रमाण यहां की प्राचीन इमारतों को देखकर सहजता से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसका इतिहास कितना गौरवशाली रहा है। आजादी के बाद वर्ष 1952 में राजस्थान प्रांत के गठन के पश्चात सांभर को पृथक रूप से सबसे पुराने उपखंड के रूप में पहचान मिली। विभिन्न संस्कृतियों का संगम स्थल सांभर झील नगरी में दैत्य गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी के नाम से सरोवर को तीर्थ स्थल के रूप में देशभर में मान्यता प्राप्त है। चौहान शासको की कुलदेवी मां शाकंभरी का अति प्राचीन मंदिर, संत दादू दयाल की तपोभूमि, देश की एकमात्र मुख्य पीठ सिंधी समाज का साथ पुरसनाराम दरबार, अजमेर ख्वाजा साहब के सगे लाडले पोते ख्वाजा हुसामुद्दीन चिश्ती की मजार (दरगाह ) इसके अलावा बहुत से धार्मिक स्थल इसके वजूद को कायम रखे हुए हैं। इसके वजूद को नष्ट होने से बचाने के लिए 1952 से लेकर आज तक जितने भी सांसद व विधायक बने उनकी लापरवाही और उदासीनता ही इसके पतन का मुख्य कारण रहा है। अंग्रेजों व राजा महाराजाओं की ऐतिहासिक इमारते जो हेरिटेज के लायक है, नालायक राजनेताओ के कारण खंडहरों में तब्दील हो रही है। पुराना जेल भवन, पुराना एसडीएम कोर्ट, दरगाह के नजदीक पुराना तहसील भवन, पुरानी कोतवाली का भवन, पुराने न्यायिक भवन व पुराना कोर्ट परिसर स्थित प्राचीन सिद्ध गणेश मंदिर का भवन, प्राचीन विशाल दरवाजा देखरेख के अभाव में जर्जर होकर खंडहरों में तब्दील होते जा रहे हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने एक दफा हेरिटेज में लायक संपत्तियों की सूची तैयार कर उन्हें पुनः इस लायक बनाए जाने का मन बनाया था लेकिन लालफीताशाही में यह सब कुछ दबकर दफन हो गया। सांभर की संपन्नता को किसका श्राप लगा यह तो पता नहीं है लेकिन बताया तो यह भी जाता है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के सांभर आने के दौरान उनके साथ कथित राजनीतिक दुर्व्यवहार से उनकी भावनाएं काफी आहत हुई और तभी से इस सांभर के पतन का क्रम चलता आ रहा है जिसके थमने का सिलसिला आज भी खत्म नहीं हुआ है। यहां की लोकल लीडरशिप हर राजनीतिक पार्टियों की इतनी थर्ड क्लास है की उनकी कहीं चलती नहीं है। यही कारण है कि आम जनता की आस अब यहां की हेरिटेज के लायक तमाम इमारतों के रखरखाव के अलावा विकास के दृष्टिकोण से सरकार की मेहरबानी के अलावा प्रशासनिक सक्रियता के इंतजार पर टिकी हुई है।

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