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सांभरझील। राजस्थान के अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान का इतिहास यूं तो किसी से छिपा नहीं है लेकिन सांभर (इतिहास में दर्ज पुराना नाम सपादलक्ष) में 1166-1192 में चौहान वंश के राजा रूप में शासन किया था, उस काल में इसकी राजधानी उत्तर पश्चिम भारत के वर्तमान राजस्थान के अजमेर में थी। बता दें कि इतिहासकारों के अनुसार वासुदेव चौहान ने 551 ईस्वी में सांभरझील के आसपास चौहान वंश की स्थापना की थी। पृथ्वीराज चौहान की नगरी का गौरव होने के बावजूद आजादी के बाद से लेकर आज तक इनकी कहीं पर भी सांभर में प्रतिमा स्थापित नहीं लग सकी है। छिछली राजनीति के चलते ऐसे महान योद्धाओं के इतिहास की जानकारी से सांभर पर्यटन नगरी में आने वाले लोगों को प्रमाणिकता के साथ जानकारी उपलब्ध कराने के लिए भी कोई खाका तक नहीं खींचा गया है। दुर्भाग्य की बात तो यह भी है कि आज तक नगर पालिका के बोर्ड में बैठने वाले तमाम राजनीतिक दलों के चेयरमैन व पार्षदों की ओर से दिल से ऐसी कोई प्रशासनिक और राजनीतिक गतिविधियों को अंजाम नहीं दिया गया जिससे पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा स्थापित करने का रास्ता निकल सके। जीतने वाले सांसदों और विधायकों के गले में पुष्पहार पहनाकर खुश होने वाले तथाकथित दोगली राजनीति करने वाले नेताओं के कारण ही सांभर में महापुरुषों की प्रतिमा लगाए जाने का सपना आम जनता का सरकार नहीं हो सका है। यद्यपि औपचारिकता निभाने के लिए दो-तीन बार यह प्रस्ताव निवर्तमान बोर्ड के कार्यकाल के दौरान लिया तो गया था लेकिन प्रशासनिक इच्छा शक्ति का अभाव और सरकार के राजनीतिक पेच में फंसने के कारण प्रतिमा लगाने का मामला फाइलों में दफन हो गया। प्रतिमा तो नहीं लग सकी लेकिन राजनेताओं ने अपना मानसिक बोझ उतारने के लिए उनके नाम से सर्किल बनाकर प्रतिमा लगाए जाने का मामला हमेशा हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में ही डाल दिया। यह बताना जरूरी है कि पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा लगाए जाने के लिए नया बस स्टैंड के नजदीक सांभर नावा, सांभर, फुलेरा तिराहे पर जहां आज पृथ्वीराज सर्किल बनाया गया है उस जगह मूर्ति लगाने का प्रस्ताव लिया गया था लेकिन टेक्निकल प्वाइंट का अड़ंगा लगाकर या यूं कहें राजनीतिक कारणों से इसे कैंसिल कर आम जनता को भरोसा दिला दिया कि शीघ्र ही नया प्रस्ताव लिया जाकर अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की प्रतिमा लगाई जाएगी लेकिन आज कई साल बीत गए यह सपना अब अधूरा ही रह गया है।