तेलंगाना में आरक्षण बढाने पर रोक

लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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दक्षिण के तेलंगाना प्रदेश में जब पिछले विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो उसने पहले कुछ दिनों में जो बड़े निर्णय किये उसमें एक यह था कि राज्य में जातीय जनगणना करवाई जायेगी। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष तथा वर्तमान में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी काफी समय से यह कहते आ रहे है कि जिनकी जितनी आबादी उनको नौकरियों में उतना ही हक। उनका कहना है कि अन्य पिछड़ा वर्ग को उनकी आबादी की तुलना में कम आरक्षण मिल रहा है। वे यह भी कहते आ रहे है कि अगर केंद्र में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई तो वर्तमान में अधिकतम 50 प्रतिशत की सीमा को बढ़ा दिया जाएगा। संविधान की व्याख्या करते हुए बहुत पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि किसी भी तरह आरक्षण किया जाये लेकिन इस कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।
संविधान में शुरू से ही अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जन जातियों के लिए 15 तथा 7.50 प्रतिशत तय कर दिया गया था। यह कुल आरक्षण 22.50 प्रतिशत था। उस समय अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए किसी प्रकार के आरक्षण का प्रावधान नहीं था। बाद में केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के नजरिये से मंडल आयोग गठित किया.आयोग ने इस वर्ग को सरकारी सेवाओं में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सिफारिश की। हालाँकि आयोग ने माना कि देश में पिछड़ा वर्ग की आबादी कही अधिक है। क्योंकि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय हो चुकी थीइसलिए आयोग ने 27 आरक्षण देने की सिफारिश कर दी। आरक्षण का यह मामला लम्बे समय तक ठन्डे बसते में पड़ा रहा। 1989 में जब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार आई और वी .पी सिंह प्रधान मंत्री बने तो उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 आरक्षण देने का निर्णय किया। इस निर्णय को लेकर भारी विरोध हुआ। लम्बा आन्दोलन हुआ। कई जगह यह हिंसा में बदल गया। इस आरक्षण के विरोध में कुछ युवकों ने आत्मदाह भी किया। मंडल आयोग के विरोधियों ने कहना था कि यह आरक्षण उच्च जातियों की नौकरियां पर कुठाराघात से कम नहीं।
इसके कुछ दिन बाद ही यह मांग शुरू हो गई कि अन्य पिछड़ा वार्ग को इससे से भी अधिक आरक्षण मिलना चहिये। राज्यों में कुछ और पिछड़ी जातियों ने अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल किये जाने की मांग की। 2003 में जब केंद्र में बीजेपी नीत एन डी. ए. सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो राजस्थान में जाट समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में शामिल कर दिया गया। इसी प्रकार कई राज्यों में कुछ पिछड़ी को जातियों अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दे दिया गया।
अगले चरण में कुछ राज्यों ने कानून के जरिये अन्य पिछड़ा वर्ग को अधिक आरक्षण देने की असफल कोशिशें की। कुछ वर्ष पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार न बीजेपी गठबंधन से इसलिए अलग हो गए क्योंकि वे राज्य में जातीय जनगणना करवाना चाहते थे जब कि गठबंधन के बड़ी पार्टी बीजेपी इसके विरोध में थी। जनगणना हुई उसमें अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या 70 प्रतिशत के आस पास पाई गई। विधानसभा में विधेयक पारित करवा कर आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ा कर 70 कर दी गई . मामला जब पटना हाई कोर्ट पंहुचा तो उसने बिना लम्बी बहस के इसे गैर संविधान करार दिया।
इसी प्रकार इस साल के शुरू में तेलंगाना में जातीय जनगणना करवाई गई जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग को 69 प्रतिशत पाया गया। राज्य सरकार ने विधानसभा से एक विधेयक पारित कर अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ा 42 प्रतिशत कर दिया। यह भी तय किया गया कि यह आरक्षण स्थानीय निकायों के चुनावों पर भी लागू होगा। राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव अगले साल जनवरी में होने है। कांग्रेस पार्टी इस आरक्षण के जरिये राजनीतिक लाभ उठाना चाहती थी। आरक्षण का यह मामला राज्य के हाई कोर्ट में पंहुचा। कोर्ट इसे संविधान के विरुद्ध बताया तथा राज्य सरकार के संबधित कानून पर रोक लगा दी। हाई कोर्ट के इस निर्णय को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीमे कोर्ट ने अपने फैसले में राज्य के हाई कोर्ट के निर्णय को सही बताया।
अब तेलंगाना में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस पार्टी ही सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के विरुद्ध आन्दोलन कर रही है। राज्य में सरकारी दल की ओर से एक दिन बंद भी आयोजित किया गया। इस आन्दोलन के जरिये कांग्रेस पार्टी आम जन को यह बताना चाहती है कि उनकी सरकार तो आरक्षण बढ़ाना चाहती है लेकिन कोर्ट ही इसमें बाधा डाल रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

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