मदद ना करें

यह एक सच्ची घटना है। दिल दहलाने वाली है। बरसों बाद मेरी एक मित्र मेरे से मिलने आई और जोर-जोर से फूट फूट कर रोने लगी मैंने उसको गले लगाया चुप कराया। पानी पिलाकर चाय बनाई और रोने का कारण पूछा और जो उसने बताया मैं इतनी दुखी और आश्चर्यचकित हुई कि मेरे पास शब्द नहीं थे।
उसने बताया कि बरसों पुरानी बात है उसने एक अपरिचित व्यक्ति की अचानक दुर्घटना होने के कारण आर्थिक मदद कर दी। उस आदमी के बच्चे छोटे-छोटे थे और मदद करने वाला कोई नहीं था। परिचय हुए मुश्किल से दो-चार महीने हुए होंगे। फिर वह व्यक्ति जयपुर चला गया फोन पर बातचीत होती रही और धीरे-धीरे दोस्ती घनिष्ठता में बदल गई फिर मेरी मित्र को उस व्यक्ति से प्यार हो गया। लेकिन यह प्यार एक तरफा था क्योंकि उस व्यक्ति के बच्चे बड़े हो चुके थे कमाने लगे थे और सब तरफ से आर्थिक रूप से संपन्न हो चुका था। वह अपने परिवार में इतना मस्त रहता था कि मेरे को दुख सुख शेयर करने के लिए भी फोन के लिए बार बार कहना पड़ता था। क्योंकि वह सुखी था तो मेरी मित्र की तकलीफ को वह समझ नहीं पाया या जानबूझकर समझना नहीं चाहता था।
लेकिन वक्त ने कुछ ऐसा कर दिया की मेरी मित्र पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा और वह बिल्कुल अकेली हो गई। यहां तक कि वह डॉक्टर को दिखाने अस्पताल गई तो अस्पताल से ही उसने अपने उस मित्र को फोन किया कि मेरी हालत ठीक नहीं है कृपया आप जल्दी से जल्द मेरे से मिले उधर से जवाब आया मेरे बेटे का प्रोजेक्ट पूरा करना है उसके बाद आऊंगा। वह अस्पताल में रोने लगी। 8 दिन बाद जवाब आया मेरा कोई काम अधूरा है वह पूरा हो जाएगा उसके बाद आऊंगा। मेरी सहेली की हालत इतनी खराब थी कि वह दिन भर अकेली पड़ी पड़ी रोती रहती थी। उसको अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने भावुकता में आकर ऐसे व्यक्ति की मदद क्यों की। जिसको उसकी पीड़ा का एहसास ही नहीं हो रहा है। पहले ही दुखी थी और इस दुख ने उसे अंदर तक तोड़ के रख दिया। उस वक्त उसे अपने मित्र के सहारे की सख्त जरूरत थी।
उसने मेरे से आग्रह किया आप अखबारों में लिखती हैं तो मेरा यह संदेश लोगों तक पहुंच जाए की भूल कर भी किसी अजनबी व्यक्ति की मदद ना करें और अगर आप मदद करने की गलती कर चुके हैं तो उसे रिश्ता जोड़ने की दूसरी गलती कदापि ना करें। उस को हादसा समझ कर भूल जाए। चाहे आपने उसकी जान बचाई है लेकिन उससे कोई उम्मीद ना रखें उसका भरा पूरा परिवार है। वह आपके दर्द को महसूस नहीं करेगा। अपना काम छोड़कर आपके पास नहीं आएगा आपको तसल्ली देने के लिए। यह कह कर वह वापस जोर-जोर से रोने लगी।
मैंने उससे कहा – वक्त का खेल है किसी का दोष नहीं है । कालचक्र है लौटकर उसी व्यक्ति के पास जाएगा और तुम्हारे एक-एक आंसू की कीमत उसको चुकानी पड़ेगी। ईश्वर सब देखता है ।सब हिसाब किताब रखता है। वक्त आने पर जो उसने तुम्हे दिया है वह लौटकर उसी के पास जाएगा। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।

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