
असामाजिक तत्व उखाड़ ले गए जालियां और बिजली के बोर्ड, जिम्मेदारों ने भी मुंह मोड़ा
शैलेश माथुर की रिपोर्ट
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सांभरझील। अंग्रेजों के जमाने का पुराना जेल भवन जो की संरक्षित यादगार की सूची में अंकित करने लायक है, विगत करीब डेढ़ दशक से वीरान पड़ा है। राजस्थान प्रांत का गठन होने के बाद यह नजूल संपत्ति पंजिका में दर्ज हुआ और उसके बाद राजस्व विभाग को संपत्ति का हकदार माना गया। 2010 तक यह जेल भवन जेल प्रशासन को विचाराधीन कैदियों को रखने के लिए सुपुर्द किया हुआ था। राजपथ के अंतिम छोर पर पुरानी कोतवाली परिसर में ही पुराना उपखंड कार्यालय भी है। इसके ठीक सामने पुराना मुंसीफ कोर्ट और लोक अपर लोक अभियोजक का दफ्तर व प्राचीन गणेश मंदिर भी है।

यह तमाम संपत्तियां जो आज के वर्तमान मूल्यांकन के हिसाब से करोड़ों रुपए की संपत्ति तो है ही साथ ही ऐतिहासिक इमारतें की यादगार भी है। जिस विभाग को यह संपत्ति यानी नजूल संपत्ति को अपना कार्यालय संचालन करने के लिए दी गई थी वह भी अब यहां से शिफ्ट हो चुके हैं। लेकिन आज भी संपत्तियां राजस्व विभाग के नजूल संपत्ति में दर्ज है यानी जिला कलेक्टर की ओर से इन संपत्तियों के रखरखाव और संरक्षण की जिम्मेदारी उपखंड अधिकारी के अधीन होती है। नवीन एसडीम कोर्ट, जेल भवन, न्यायालयों की बिल्डिंग बनकर उसमें शिफ्ट हो गई और तभी से पुराने भवन सुनसान पड़े हैं। असामाजिक तत्वों ने इन संपत्तियों को बेजा नुकसान पहुंचाया।

पुरानी जेल भवन की सबसे ज्यादा दुर्गति हो रही है जहां महिला और पुरुष बंदियों को अलग-अलग रखने के दो खंड है। जेल भवन का भारी भरकम लोहे का दरवाजा आज से करीब 10 साल पहले ही कोई उखाड़ कर ले गया था जिसका आज तक कोई अता पता नहीं है। भवन के अंदर जिसको भी जो चीज मिली लेकर चलता बना यहां तक की बिजली के बोर्ड और स्विच तक भी उखाड़ दिए गए। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुराना जेल भवन की एक मोटी दीवार जर्जर होकर सड़क की दूसरी तरफ बड़ा छेद हो गया है। आश्चर्य का विषय है कि यहां के तमाम दोनों दलों के नेताओं को ऐतिहासिक स्मारकों की दुर्दशा को लेकर न तो को चिंता है और न ही जिम्मेदार प्रशासन इस ओर दृष्टिपात कर रहा है। यद्यपि एक बार उपखंड कार्यालय को दुर्दशा से बचाने के लिए इसके चारों तरफ जली लगाकर औपचारिकता निभा दी गई। इंन तमाम प्राचीन इमारतों की अंदर से कोई साफ सफाई नहीं हो रही है और चारों तरफ गंदगी का आलम है।