सामाजिक न्याय की योद्धा अनुप्रिया

लेखक : अतुल मलिकराम
राजनीतिक रणनीतिकार
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कुछ सवाल एक नहीं, अनेक बार उठते रहे हैं, जैसे स्वतंत्रता के बाद दलित स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुला दिया गया, जिन्हें याद रखा गया, उनकी पहचान भी मिटाने की कोशिश की जा रही है। दलित पिछड़े समाज को आज भी देश के कई हिस्सों में अछूत की नजर से देखा जाता है। खुद को ऊंची जाति-बिरादरी के समझने वाले कुछ असामाजिक तत्व आज भी गरीब, शोषित और वंचित वर्ग की आवाज एवं हकों को दबाने में लगे हुए हैं, और अपने मनमाने ढंग से एक वर्ग विशेष पर अपना विशेषाधिकार जमा रहे हैं। इसका एक ताजा उदाहरण मिर्जापुर जिले के विंध्याचल थाना क्षेत्र के कुरौठी पांडेय गांव में पिटाई से घायल एक शख्स के रूप में देखने को मिला है। जबरन घर में घुसकर शराब पी गई, और जब गृहस्वामी ने ऐसा करने से रोका, तो उसकी बेटी को उठाकर ले जाने लगे। विरोध किया तो इस कदर पिटाई हुई कि लहूलुहान युवक को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। हालांकि, इन सब के बीच एकमात्र सुखद चीज रही, केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल का पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचना। इस दौरान मौके पर खड़े पुलिस अधिकारियों को उनकी ड्यूटी याद दिलाने का जो अंदाज उन्होंने दिखाया, कोई दो राय नहीं कि पिछड़े समाज के हर एक व्यक्ति के लिए हर वक्त खड़े रहने का जो वचन वे देती आई हैं, उसे एक बार फिर चरितार्थ कर दिखाया।
सोशल मीडिया पर वायरल चल रहे वीडियो में उनके गुस्से, संवेदना और सामाजिक न्याय के प्रति उनके समर्पण को साफ देखा जा सकता है। उन्होंने केवल पुलिस को ही नहीं बल्कि बहु-बेटियों के खिलाफ जीरो टॉलेरेंस पर काम करने वाली केंद्र व राज्य सरकार को भी निशाने पर लिया। उनकी ‘दो घंटे का समय दे रही हूं, कार्रवाई नहीं हुई तो मुख्यमंत्री के पास मामला जायेगा’ चेतावनी वाली वीडियो क्लिप, निश्चित ही कमजोर वर्ग के लाखों करोड़ों लोगों के दिल में सेव हो चुकी है। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार है, जब वे पिछड़े वर्ग के संघर्षों में साथ खड़ी नजर आई हैं। अपने कतरीबन 15 साल के सक्रिय राजनीतिक करियर में वे लगभग हर मौके पर पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग के हितों को सर्वोपरि रखकर चलती दिखी हैं।
नौकरियों में पिछड़े और दलितों की अनदेखी का मुद्दा हो या एक अलग पिछड़ा वर्ग मंत्रालय गठित करने की मांग, न्यायिक नियुक्तियों में आरक्षण या ओबीसी कमीशन को संवैधानिक दर्जा देने की मांग से लेकर पिछड़ा वर्ग स्वाभिमान के लिए संघर्षरत रहने वाली सशक्त महिला नेता की छवि तक, उन्होंने बीजेपी के साथ विचारों का मतभेद रहने के बावजूद, वर्ग विशेष के मुद्दे को संसद के अंदर और बाहर धैर्य और साहस का परिचय देते हुए उठाया है।
2013 में यूपी लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में त्रिस्तरीय आरक्षण लागू करने की मांग को लेकर उनका व्यापक संघर्ष, पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को भलीभांति याद होगा, इस दौरान उन्हें तीन बार गिरफ्तार भी किया गया और कई मुकदमें ठोके गए। इन सारे संघर्षों को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने सामाजिक न्याय की दिशा में पीडीए के मुद्दों को उठाने और उनके हक में लड़ाई लड़ने के मामले में किसी योद्धा से कम की भूमिका नहीं निभाई है और यह सिलसिला अब भी जारी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)

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