कविता पर्यावरण
संकलन : राम भरोस मीणा
प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद्
Mobile : 7727929789
Email : lpsvikassansthan@gmail.com
daylifenews.in
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे सब पेड़ों में पायें हैं
पेड़ लगा पालन करना, नहीं आंक्सिजन घट जाएगा ।
कहे प्रकृति प्रेमी सुनो भाई लोगों, इक दिन प्राणों पर संकट आएगा ।।
पेड़ काटे स्वयं कटे, जंगल काटे वंश मिट जाएं ।
कहे प्रेमी पेड़ के, दरख़्त पालें वंश बड़ते जाएं ।।
पेड़ पालें कष्ट मिटे, धन धान्य से सम्रद्धि होय।
कहे प्रकृति प्रेमी पेड़ काटे रोग बड़े, कर्ज ना दूर होय।।
पेड़ आम आंवला निम्बू नारंगी से लक्ष्मी जी घर आतीं हैं ।
कहें प्रकृति प्रेमी बरगद पीपल नीम बिल्वपत्रों से खुशहाली होती है।।
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे सब पेड़ों में पायें हैं ।
कहें प्रकृति प्रेमी ईशु राम अल्लाह वाहेगुरु इनमें समायें है।।
खेजड़ली से लक्ष्मी ख़ुश हो, बिल्वपत्र से शिवशंकर हों राज़ी ।
पीपल में श्याम समावे तो बरगद से खुश हो अविनाशी।।
धरती आकाश समुंद्र मेलें हुएं, मचा आह कार ।
जीव जीवों को सता रहा अब सोचा जरुर जाएं।।
वायु पानी मिट्टी सब दूषित कर दिया दे विकास को नाम ।
जंगल सिमटा रहें नदियां मर रहीं पहाड़ पहुंचे पाताल।।
मां की आत्म मर रहीं ना दे कोई ध्यान ।
मिट्टी में बदबू हुई़ वायु जल दुर्लभ होते जाएं।।
खेत खलिहान सब उजड़ रहे जब पेड़ दिये कटाएं ।
रहीं सही नमीं गयी जब सुर्य ताप बढतों जाएं।।
जंगल उजाड़ उधोग लगाया फिर धुआं हुई़ तेज़ ।
मानव आपस में लड़ रहे कारण जाना ना एक ।।
दान पुण्य किए, तीरथ किए अनेक ।
पौध रोपण न किए, तो सब कुछ हुआं बेकार ।।
पूजा पाठ उम्र भर किया, उपदेश दिया हजार।
पेड़ पौधों का जिक्र ना करें, तो सब कुछ है बेकार।।
पेड़ पौधे वायु देते, उपहार दिए अपार ।
मरने पर लकड़ी दिए, और दिया रोजगार।।
फल फूल पत्ते उनके, छाल दवा के आवे काम।
जन्म मरण काम आवे, याद आवे बलिदान ।।
आक्सीजन के हब्ब बनें , आएं धनवान लोग।
बड पीपल गूलर नीम लगें, आम आदमी सूखी होय।।
आनन्द की कामना सब करें, कर्म ना करें कोए ।
जे पेड़ बचाने में जुट गए , आनन्द ही आनन्द होए।।
कुल्हाड़ी चलें पेड़ कटे, आरी चलें जंगल कट जाए।
मुर्ख बनें बाग उजड़े, लूं चलें शरीर जल जाए।।
जंगल कटे बादल रुठे, पानी पाताल पहुंच जाए।
पेड़ सींचे हरियाली बने, नदियों में जल आजाएगा।।
झरना नाले नदियां बहें, तालाबों में पानी आएं।
जब पेड़ संघन लगा इल्या, बुंद बुंद धरती में समाय।